हाई पावर्ड कमेटी के मानदंड के अनुसार आर्थिक अपराध के अंडरट्रायल कैदी नहीं हैंं अंतरिम ज़मानत के हकदार : दिल्ली हाईकोर्ट
LiveLaw News Network
11 Aug 2020 2:36 PM IST
दिल्ली हाईकोर्ट ने हाई पावर्ड कमेटी की 28 मार्च की बैठक के मिनट्स को रद्द करने से इनकार कर दिया है। यह कमेटी जेलों में भीड़ कम करने के लिए गठित की गई थी। कमेटी ने अपनी बैठक में उन कैदियों को अंतरिम जमानत के दायरे से बाहर रखा था,जो आर्थिक अपराध के आरोप में जेलों में बंद हैं या जिनके खिलाफ प्रवर्तन निदेशालय द्वारा जांच की जा रही है।
हालांकि न्यायमूर्ति अनु मल्होत्रा की एकल खंडपीठ ने कहा कि इस तरह के कैदियों को आपराधिक प्रक्रिया संहिता के संबंधित प्रावधानों के तहत जमानत मांगने की स्वतंत्रता है।
रेलिगेयर फिनवेस्ट घोटाले के आरोपी मालविंदर मोहन सिंह की ओर से दायर एक आपराधिक रिट याचिका पर सुनवाई करते हुए कोर्ट ने यह आदेश दिया है। इस याचिका में हाई पावर्ड कमेटी की 28 मार्च 2020 को हुई बैठक के मिनट्स को रद्द करने की मांग की गई थी। याचिका में कहा गया था कि यह मिनट्स अनैतिक और गैरकानूनी तरीके से जेल में बंद आर्थिक अपराध के अंडरट्रायल कैदियों के खिलाफ भेदभाव कर रही हैं।
मालविंदर सिंह ने बैठक के उक्त मिनट्स को रद्द करने की मांग करते हुए कहा था कि उसे या तो जमानत पर या फिर पैरोल पर रिहा कर दिया जाए।
हाई पावर्ड कमेटी ने अपनी बैठक के मिनट्स में कहा था कि अंतरिम जमानत का दावा करने संबंधी दी गई राहत से एक निश्चित श्रेणी के कैदियों को बाहर रखने का निर्णय कमेटी द्वारा प्रासंगिक कारकों पर विचार करने के बाद और उद्देश्य संतुष्टि के आधार पर ही लिया गया था। वहीं कमेटी ने मानदंड को अपराध के वर्ग/ श्रेणी को ध्यान में रखते हुए तय किया था,न कि कैदी-केंद्रित दृष्टिकोण के आधार पर।
समिति ने यह भी उल्लेख किया था कि इस मामले में उद्देश्य सुप्रीम कोर्ट के द्वारा पारित आदेश के आधार पर एक उचित वर्गीकरण करते हुए केवल कुछ कैदियों को रिहा करने का था,न कि सभी कैदियों को।
उक्त मिनट्स में यह भी उल्लेख किया गया था कि समिति का गठन अंतरिम जमानत पर रिहा करने के लिए किसी व्यक्तिगत मामले के गुण या अवगुणों को देखने के लिए नहीं किया गया था। बल्कि यह एक विशेष वर्ग को ध्यान में रखते हुए मानदंड बनाने के लिए गठित की गई थी, न कि किसी विशेष कैदी के लिए। इसलिए समिति की राय थी कि मालविंदर सिंह की तरफ से दायर प्रतिनिधित्व अनुपयुक्त था और इसलिए उसे खारिज कर दिया गया था।
कोर्ट ने माना है कि हाई पावर्ड कमेटी या उच्चाधिकार प्राप्त समिति का वह निर्णय बिल्कुल सही है,जिसके तहत इस महामारी के दौरान आर्थिक अपराध के अंडरट्रायल कैदियों को अंतरिम जमानत लेने की पात्रता से बाहर रखा गया था। कोर्ट ने कहा कि कमेटी का यह निर्णय मनमाना नहीं है।
इस प्रकार कोर्ट ने कहा कि-
'यह मानना आवश्यक है कि आर्थिक अपराध ऐसे अपराध हैं जो लोकतंत्र के ताने-बाने को तोड़ते हैं और राष्ट्र के अधिकारों और हितों की पूरी तरह अवहेलना करते हुए किए जाते हैं। साथ ही राष्ट्र के विश्वास और आस्था का उल्लंघन करते हैं। वहीं इस तरह के अपराध राष्ट्रीय अर्थव्यवस्था और राष्ट्रीय हित के खिलाफ होते हैं।'
अदालत ने कहा कि कमेटी ने आर्थिक अपराध और आतंकी अपराध को अन्य वर्गों के अपराधों से अलग करने के लिए एक स्पष्ट आपराधिक मनःस्थिति को आधार बनाया है,जो इस तरह के मामलों में पाई जाती है।
याचिका को खारिज करते हुए अदालत ने इस बात को भी उजागर किया कि आर्थिक अपराध के आरोपी याचिकाकर्ता और अन्य अंडरट्रायल कैदियों को सीआरपीसी के संबंधित प्रावधानों के तहत संबंधित अदालत के समक्ष जमानत अर्जी दायर करके जमानत का लाभ उठाने से नहीं रोका गया है।