साइबर क्राइम पीड़ित को गुवाहाटी हाईकोर्ट ने दी राहत, एसबीआई को अनाधिकृत तरीके से निकाली गई रकम को लौटाने का निर्देश दिया
Avanish Pathak
21 Sept 2023 3:46 PM IST
गुवाहाटी हाईकोर्ट ने सोमवार को स्टेट बैंक ऑफ इंडिया (एसबीआई) को एक साइबर अपराध पीड़ित के बैंक खाते में 4,44,699.17 रुपये लौटाने का निर्देश दिया। पीड़ित के बैंक खाते से यह राशि कई अनधिकृत लेनदेन के जरिए काट ली गई थी।
जस्टिस कल्याण राय सुराणा ने कहा कि याचिकाकर्ता संभवतः अनधिकृत लेनदेन, जिन्हें ठाणे में किया गया है, के कारण साइबर अपराध का शिकार हो गया।
उन्होंने नोट किया,
“…मामले में आठ मई 2012 से 17 मई 2012 तक की छोटी अवधि के बीच 35 (पैंतीस) लेनदेन हुए। राज्य सीआईडी इन लेनदेन में इस्तेमाल ठाणे जिले की 12 आईपी एड्रेस का पता लगाने में सफल रही, जिनमें से दो आईपी एड्रेस फर्जी थे। इसलिए, संभावना की प्रबलता यह है कि याचिकाकर्ता साइबर अपराध का शिकार बना है। प्रतिवादी संख्या 4 और 5 यह नहीं दिख सके हैं कि याचिकाकर्ता को इन सभी विवादित लेनदेन के लिए कोई एसएमएस अलर्ट जारी किया गया था।"
मामला
याचिकाकर्ता का एसबीआई में खाता है। उन्होंने आरोप लगाया है कि उनकी जानकारी या सहमति के बिना 8 मई से 17 मई 2012 के बीच उनके खाते में 4,44,699.17 रुपये का अनधिकृत ऑनलाइन लेनदेन किया गया।
उन्होंने दावा किया कि उन्हें अपने पंजीकृत मोबाइल नंबर पर इन लेनदेन के बारे में सूचित करने वाला कोई एसएमएस अलर्ट नहीं मिला। तदनुसार, उन्होंने मामले की सूचना बैंक और कानून प्रवर्तन अधिकारियों दोनों को दी।
याचिकाकर्ता ने तर्क दिया कि हालांकि उसके पास शुरू में 19 अंकों का एटीएम-सह-डेबिट कार्ड था, जिसमें ई-कॉमर्स क्षमता नहीं थी। कथित तौर पर उसकी ओर से कोई अनुरोध नहीं किए जाने के बाद भी उसे एक रिप्लेसमेंट कार्ड प्राप्त हुआ, जिसे बाद में उक्त अनधिकृत ऑनलाइन लेनदेन के लिए उपयोग किया गया था।
उन्होंने इस बात की जांच करने की मांग की कि इन लेनदेन के लिए एसएमएस अलर्ट उन तक क्यों नहीं पहुंचे और ब्याज सहित चुराई गई राशि वापस करने का अनुरोध किया।
असम के अतिरिक्त पुलिस महानिदेशक (सीआईडी) के पास एक शिकायत दर्ज की गई, जिन्होंने मामले की जांच की, लेकिन इसमें शामिल लोगों का पता नहीं लगाया जा सका। उन्होंने पाया कि साइबर अपराध की शुरुआत फर्जी नाम और पते से ठाणे में हुई थी। सीआईडी जांच से यह भी पता चला कि कुछ आईपी पते मामले से संबंधित थे, हालांकि उनमें से कुछ फर्जी थे। इंटरनेट सेवा प्रदाताओं की सीमित डेटा प्रतिधारण अवधि के कारण, जांच में मुश्किलों का सामना करना पड़ा।
इसके बाद, याचिकाकर्ता ने बैंकिंग लोकपाल के समक्ष एक शिकायत दायर की जिसे खारिज कर दिया गया क्योंकि निर्धारण के लिए दस्तावेजों और मौखिक साक्ष्य पर विचार की आवश्यकता होती।
इसलिए, याचिकाकर्ता ने हाईकोर्ट का दरवाजा खटखटाया और जांच की मांग की कि ऑनलाइन लेनदेन के लिए एसएमएस अलर्ट याचिकाकर्ता के पंजीकृत मोबाइल नंबर पर क्यों नहीं पहुंचे और लागू ब्याज के साथ 4,44,699.17 रुपये की राशि वापस करने का निर्देश मांगा।
याचिकाकर्ता ने प्रस्तुत किया कि उन्हें 08 मई से 17 मई 2012 के बीच प्राप्त एसएमएस अलर्ट केवल एटीएम लेनदेन के संबंध में थे, न कि किसी इंटरनेट लेनदेन के लिए, जिसकी सुवधि उस कार्ड में नहीं थी।
एसबीआई की ओर से पेश वकील ने कहा कि बैंक या उसके अधिकारी साइबर अपराध के लिए जिम्मेदार नहीं हैं, क्योंकि किसी को बैंक से प्रत्येक लेनदेन के लिए ओटीपी की प्रतीक्षा करने और फिर कार्ड विवरण, पिन नंबर आदि फीड करके ऑर्डर देने की आवश्यकता नहीं है।
यह स्वीकार किया गया कि याचिकाकर्ता का 19 अंकों वाला एटीएम कार्ड ऑनलाइन लेनदेन के लिए उपयुक्त नहीं था, लेकिन उन्होंने दावा किया कि याचिकाकर्ता ने धोखाधड़ी करने वाले किसी व्यक्ति को अपने कार्ड के विवरण और पिन का खुलासा किया होगा।
कोर्ट ने कहा कि राज्य सीआईडी की जांच के अनुसार, अपराध की शुरुआत महाराष्ट्र के ठाणे जिले से हुई थी और सीआईडी 12 आईपी एड्रेस में से 10 का पता नहीं लगा पाई है।
"सीआईडी ने न तो याचिकाकर्ता का मोबाइल जब्त किया और न ही 08 मई, 2012 और 17 मई, 2012 के बीच की अवधि के लिए सिम की सीडीआर एकत्र की। इसलिए, यह स्थापित करने के लिए याचिकाकर्ता के बयान की सत्यता को सत्यापित करने की कोई गुंजाइश नहीं है कि उसके पास सिम था या नहीं। एसएमएस अलर्ट मिला या नहीं और निकट भविष्य में मामले के आरोपियों का पता लगने की गुंजाइश कम है। प्रतिवादी संख्या 4 और 5 ने यह दिखाने के लिए कोई रिकॉर्ड प्रस्तुत नहीं किया है कि कथित धोखाधड़ी वाले लेनदेन के खिलाफ एसएमएस अलर्ट उनके कंप्यूटर सिस्टम से उत्पन्न हुआ और भेजा गया था।
अदालत ने आगे कहा कि बैंक ने याचिकाकर्ता को उसके एटीएम कार्ड के ई-कॉमर्स या इंटरनेट उपयोग के संबंध में एसएमएस अलर्ट भेजने का अपना रिकॉर्ड सुरक्षित नहीं रखा।
कोर्ट ने पाया कि 8 मई से 17 मई के बीच याचिकाकर्ता के खाते से 19 अंकों वाले एटीएम कार्ड के जरिए जो लेनदेन हुए थे, वे अनधिकृत और धोखाधड़ीपूर्ण प्रकृति के थे क्योंकि राज्य सीआईडी की जांच के अनुसार, उन्हें पता चला कि जिन आईपी एड्रेस के जरिए लेनदेन किया गया था, उनमें से 12 महाराष्ट्र के ठाणे जिले में स्थित थे।
कोर्ट ने कहा,
“इसलिए, याचिकाकर्ता पर उक्त लेनदेन के संबंध में 4,44,699.17 रुपये की कोई देनदारी नहीं पाई गई है। ये लेनदेन याचिकाकर्ता के बैंक खाते के विवरण में परिलक्षित होते हैं, जो प्रतिवादी संख्या 4 और 5 की ओर से दायर हलफनामे के साथ संलग्न है। इसलिए, प्रतिवादी संख्या 4 और 5 को याचिकाकर्ता के बचत बैंक खाते में उक्त राशि वापस करने की आवश्यकता है। हालांकि, यह उन व्यक्तियों से वसूलने की छूट है, जिनके खाते से उक्त धन या उसका कुछ हिस्सा निकाला गया था।”
इस प्रकार, न्यायालय ने एसबीआई को 60 दिनों के भीतर 4,44,699.17 रुपये की अनधिकृत लेनदेन की राशि को खाते में लौटाने का निर्देश दिया। कोर्ट ने कहा निर्धारित समय के भीतर राशि जमा नहीं करने पर 6% प्रति वर्ष की दर से ब्याज लगाया जाएगा।
साइटेशन: 2023 लाइवलॉ (Gau) 89
केस टाइटल: श्रीमती ज्योति बेजबरुआ गोस्वामी और 2 अन्य बनाम असम राज्य और 6 अन्य।
केस नंबर: WP (C) 3085/2013