जिला पुलिस प्रमुख को भेजा गया टॉप सिक्रेट कम्युनिकेशन लीक, केरल हाईकोर्ट ने डीजीपी को जांच के आदेश दिए
Avanish Pathak
21 Sept 2022 1:35 PM IST

केरल हाईकोर्ट
केरल हाईकोर्ट ने हाल ही में स्टेट पुलिस चीफ को यह जांच करने का निर्देश दिया कि डीजीपी द्वारा मलप्पुरम जिला पुलिस प्रमुख को भेजा गया एक 'टॉप सीक्रेट' संदेश कैसे सोने की तस्करी के एक मामले के आरोपी फसलू रहमान को मिल गया।
जस्टिस अनिल के नरेंद्रन और जस्टिस पीजी अजितकुमार की पीठ ने कहा कि राज्य पुलिस कोफेपोसा (COFEPOSA) एक्ट के तहत निवारक निरोधों की निष्पादन एजेंसी है, उसे निरोध आदेशों के निष्पादप पूर्ण गोपनीयता बनानी होती है और इस प्रकार, इस बात की विस्तृत जांच का निर्देश दिया कि चार जून 2022 का 'टॉप सीक्रेट' मैसेज याचिकाकर्ता के हाथ कैसे पहुंचा।
याचिकाकर्ता, इस मामले में सीमा शुल्क अधिनियम की धारा 135 के तहत दंडनीय मामले में आरोपी है। याचिकाकर्ता ने संयुक्त सचिव (COFEPOSA) द्वारा पारित निरोध आदेश को रद्द करान के लिए यह रिट याचिका दायर की है।
15 जुलाई को जब यह मामले कोर्ट मे उठाया गया तो एसिस्टेंट सॉलिसिटर जनरल एडवोकेट मनु एस ने बताया कि 'एक्स्ट.पी2' के रूप में चिह्नित दस्तावेज़ चार जून 2022 के 'टॉप सीक्रेट' मैसेज की कॉपी है। राज्य पुलिस प्रमुख, केरल ने जिला पुलिस प्रमुख, मलप्पुरम को संदेश भेजा था, जिसमें कूट भाषा में 'Redimi Note 9 Pro Aiquad Camera' लिखा गया था।
राजस्व खुफिया निदेशालय की ओर से पेश एडवोकेट जयशंकर वी नायर ने याचिका का विरोध करते हुए कहा कि याचिकाकर्ता के खिलाफ सक्षम प्राधिकारी द्वारा जारी किए गए निरोध आदेश का अब तक निष्पादित नहीं हो सका है, क्योंकि वह फरार है।
सुभाष पोपटलाल दवे बनाम यूनियन ऑफ इंडिया में सुप्रीम कोर्ट के फैसले का हवाला देते हुए, यह तर्क दिया गया था कि निष्पादन से पहले निरोध आदेश के खिलाफ चुनौती का दायरा बहुत सीमित है।
यह भी तर्क दिया गया था कि निरोध आदेश के निष्पादन पर ही संविधान के अनुच्छेद 22 और COFEPOSA एक्ट की धारा 3 के प्रावधानों के तहत निरोध आदेश की एक प्रति और हिरासत के आधार की जानकारी दी जा सकता है, उससे पहले नहीं।
नायर ने अदालत को यह भी बताया कि याचिकाकर्ता ने रिट याचिका के साथ 'टॉप सीक्रेट' संचार की एक कॉपी भी पेश की है, यह गंभीर चिंता का विषय है। वकील ने बताया कि डीजीपी द्वारा भेजे गए संदेश तीन बंदियों के हिरासत आदेशों को बताने वाला एक संचार है।
डीआरआई के वकील ने तर्क दिया, "एक बार जब एक बंदी को पता चलता है कि उसके सहयोगियों के खिलाफ इसी तरह के आदेश जारी किए गए हैं, तो पूरी संभावना है कि जानकारी दूसरों के साथ साझा करेगा और वे फरार हो सकते हैं।"
जिला पुलिस प्रमुख, मलप्पुरम ने जवाबी हलफनामे में प्रस्तुत किया कि पुलिस उपाधीक्षक, विशेष शाखा के माध्यम से एक जांच की गई थी और यह पाया गया था कि मांकड़ा स्टेशन हाउस ऑफिसर ने डिटेंशन ऑर्डर की एक कॉपी याचिकाकर्ता के सह-अभियुक्त को दते हुए गलती से पत्र सौंप दिया था।
कोर्ट ने हिरासत आदेश को रद्द करने के खिलाफ प्रतिवादियों द्वारा उठाए गए तर्कों का समर्थन किया हालांकि, याचिकाकर्ता को रिट याचिका वापस लेने की अनुमति दी।
अदालत ने लीक पर संज्ञान लिया और कहा कि जिला पुलिस प्रमुख द्वारा दिया गया स्पष्टीकरण बिल्कुल भी संतोषजनक नहीं है।
अदालत ने कहा, "यह राज्य पुलिस में संबंधित अधिकारियों की उदासीनता को दर्शाता है, जो हिरासत आदेश के निष्पादन के लिए जिम्मेदार हैं।"
न्यायालय ने कहा कि राज्य पुलिस, जो कि कोफेपोसा अधिनियम के तहत निवारक निरोधों में निष्पादन एजेंसी है, को निरोध आदेशों को क्रियान्वित करने में पूर्ण गोपनीयता बनाए रखनी है। कोर्ट ने मामले की जांच का आदेश देते हुए कहा कि दोषी पाए जाने वाले संबंधित अधिकारियों के खिलाफ उचित कार्रवाई की जाए।
अदालत ने कहा, "राज्य पुलिस प्रमुख की कार्रवाई रिपोर्ट 28.11.2022 को या उससे पहले इस अदालत के समक्ष दायर की जाएगी।"
केस टाइटल: फसलू रहमान बनाम यूनियन ऑफ इंडिया और अन्य।
साइटेशन: 2022 लाइव लॉ (केर) 496

