'यह निजता के अधिकार का उल्लंघन है': चंडीगढ़ लोक अदालत ने डीएनडी सर्विस लेने के बाद भी प्रमोशनल मैसेज न रोकने के मामले में बीएसएनएल पर 37,000 रुपये जुर्माना लगाया

LiveLaw News Network

13 May 2021 8:45 AM GMT

  • यह निजता के अधिकार का उल्लंघन है: चंडीगढ़ लोक अदालत ने डीएनडी सर्विस लेने के बाद भी प्रमोशनल मैसेज न रोकने के मामले में बीएसएनएल पर 37,000 रुपये जुर्माना लगाया

    चंडीगढ़ की एक स्थायी लोक अदालत ने भारत संचार निगम लिमिटेड (बीएसएनएल) को निर्देश दिया है कि वह अपने एक उपयोगकर्ता को मुआवजे का भुगतान करें क्योंकि इस उपयोगकर्ता द्वारा डीएनडी सेवा का लाभ लेने के बावजूद भी उसके नंबर पर भेजे जा रहे प्रमोशनल मैसेज को रोका नहीं गया।

    अदालत ने कहा, ''यह आवेदक की निजता के अधिकार के उल्लंघन का मामला है, जिसने कॉल सर्विस द्वारा किए जाने वाले अवांछित कमर्शियल कॉल को रोकने के लिए अपने मोबाइल नंबर को डीएनडी के रूप में दर्ज किया था।''

    चंडीगढ़ के एक एडवोकेट, मनोज कुमार ने बीएसएनएल के खिलाफ शिकायत दर्ज कराई थी, जिसमें कहा गया था कि कंपनी उन्हें अनावश्यक रूप से परेशान कर रही है और उसके मोबाइल पर आने वाले प्रचार संदेशों को न रोककर उसकी गोपनीयता को बाधित कर रही है।

    शिकायतकर्ता ने बताया कि उसने पूर्ण डीएनडी सेवा खरीदी है और फिर भी, उन्हें प्रमोशनल मैसेज प्राप्त हो रहे हैं, जिनमें से एक प्रेषक एचपी-योजना है। उसने यह भी बताया कि जब उसने कॉमन कस्टमर केयर नंबर डायल किया, तो कर्मचारी ने यह कहते हुए उसकी शिकायत दर्ज करने से इनकार कर दिया कि अगर ऐसे प्रचार वाले संदेश बीएसएनएल खुद नहीं भेज रहा है तो इसमें बीएसएनएल कुछ नहीं कर सकता है।

    उसने तर्क दिया कि यह बीएसएनएल की तरफ से सेवाओं में कोताही का स्पष्ट प्रमाण है और ट्राई के नियमों व विनियमों का भी उल्लंघन है।

    दूसरी ओर कंपनी ने प्रस्तुत किया कि प्रचार संदेशों का भेजने वाला प्रेषक एचपी-योजना और इसका बीएसएनएल से कोई लेना-देना नहीं है। आगे कहा कि एनसीपीपीटीआरएआई पोर्टल ही डीएनडी वरीयताओं को देख रहा है और इन पर ट्राई द्वारा विचार किया जा रहा है , बीएसएनएल का इस मामले में कोई दायित्व नहीं है।

    आगे यह भी बताया कि शिकायतकर्ता ने कॉमन कस्टमर केयर नंबर डायल किया था जो ट्राई द्वारा शुरू किया गया था।

    हालांकि, बीएसएनएल की दलीलों से अदालत सहमत नहीं हुई क्योंकि अदालत का मानना था कि ट्राई नियामक प्राधिकरण है, जो केवल दूरसंचार संचार सेवाप्रदाताओं को विनियमित करने के उद्देश्य से स्थापित किया गया है।

    कोर्ट ने कहा कि,

    "बीएसएनएल मूल सेलुलर टेलीफोन सेवाप्रदाता है और बीएसएनएल के साथ पंजीकृत मोबाइल नंबर पर कमर्शियल मैसेज भी आ रहे हैं। इसलिए, एक बार जब आवेदक ने बीएसएनएल द्वारा प्रदान किए गए 1909 कस्टमर केयर नंबर पर शिकायत दर्ज करने की कोशिश की (जो कि पूरे वर्ष में 24 घंटे व सातों दिन के आधार पर ग्राहकों को सुविधा प्रदान करता है) तो प्रतिवादी द्वारा यह शिकायत तुरंत दर्ज की जानी चाहिए थी, यदि किसी व्यक्ति की ओर से नियमों आदि का कुछ उल्लंघन किया गया है, जो ग्राहक को अवांछित कमर्शियल मैसेज भेज रहा है और वर्तमान मामले में आवेदक को ये कॉल इस तथ्य के बावजूद प्राप्त हो रही हैं कि उसने अपना मोबाइल नंबर डीएनडी के रूप में पंजीकृत किया है।''

    न्यायालय ने आगे उल्लेख किया कि ''कोड ऑफ प्रैक्टिस फाॅर अनऑसॉलिटेड कमर्शियल कम्युनिकेशंस डिटेक्शन (Cop UCC-Detect)'' के नियमन -8 के अध्याय-IV के क्लॉज-डी के अनुसार - सिस्टम में शिकायतों को दर्ज करने के बाद उनको ध्यान में रखते हुए अनचाहे कमर्शियल काॅल के माध्यम टेलीमार्केटिंग का पता लगाने का कार्य सेवा प्रदाताओं का है ताकि अपने ग्राहक को उसकी गोपनीयता के उल्लंघन से बचाने की सुविधा प्रदान कर सके।

    यह माना गया कि बीएसएनएल इस संबंध में अपना कर्तव्य निभाने में विफल रहा है और इसलिए, वह शिकायकर्ता को 30000 रुपये के मुआवजे का भुगतान करने के लिए उत्तरदायी है। इसके अलावा 5,000 रुपये मानसिक उत्पीड़न और 2000 रुपये मुकदमेबाजी के खर्च के लिए भी देने का निर्देश दिया गया है।

    कोर्ट ने बीएसएनएल से कहा है कि वह शिकायतकर्ता को आगे मानसिक उत्पीड़न और निजता के अधिकार के उल्लंघन से बचाने के लिए अनचाहे कमर्शियल मैसेज तुरंत भेजना बंद करे।

    केस का शीर्षकः मनोज कुमार बनाम महाप्रबंधक, बीएसएनएल व अन्य

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