सीआरपीसी के तहत ऐसी कोई प्रक्रिया नहीं है जहां एक जवाबी मामले की प्रकृति में एक शिकायत को लंबित प्राथमिकी के साथ जोड़ा जा सके: त्रिपुरा हाईकोर्ट

SPARSH UPADHYAY

28 Aug 2020 4:45 AM GMT

  • सीआरपीसी के तहत ऐसी कोई प्रक्रिया नहीं है जहां एक जवाबी मामले की प्रकृति में एक शिकायत को लंबित प्राथमिकी के साथ जोड़ा जा सके: त्रिपुरा हाईकोर्ट

    त्रिपुरा हाईकोर्ट (मुख्य न्यायाधीश अकील कुरैशी की बेंच) ने गुरूवार (20 अगस्त) को यह साफ़ किया है कि सीआरपीसी के तहत ऐसी कोई प्रक्रिया नहीं है जहां एक जवाबी मामले (Counter-case) की प्रकृति में एक शिकायत को उसी मामले से संबंधित, एक लंबित प्राथमिकी (FIR) के साथ जोड़ा जा सके।

    मामले की पृष्ठभूमि

    याचिकाकर्ता एक राजनीतिक संगठन की सदस्य है। उसके अनुसार उसने 'गणतन्त्रिक नारी समिति' द्वारा आयोजित एक प्रदर्शन में भाग लिया था, जो 1 जून, 2020 को मेलारमथ कालीबाड़ी के पास एच. जी. बसाक रोड पर हुआ था।

    उनके अनुसार, जब वह प्रदर्शन में भाग लेने वाले अन्य व्यक्तियों के एक समूह का हिस्सा थीं, तब सुबह लगभग 10:30 बजे पुलिस पार्टी सड़क पर पहुंची, जिसमें 2 (दो) पुलिस महिलाएं शामिल थीं, जिन दोनों का नाम मीना देबबर्मा था, लेकिन उनकी अलग रैंक थी।

    याचिकाकर्ता के अनुसार, उक्त पुलिस कर्मियों द्वारा बिना किसी कारण या उकसावे के उसके साथ मारपीट की गई। याचिकाकर्ता और अन्य प्रदर्शनकारियों को गिरफ्तार किया गया था। उक्त घटना के चलते याचिकाकर्ता ने 1 जून 2020 को पश्चिम अगरतला पुलिस स्टेशन के समक्ष शिकायत दर्ज कराई।

    अगले दिन यानी 2 जून 2020 को, याचिकाकर्ता ने पुलिस अधीक्षक, पश्चिमपुरा के पास भी एक ऐसी ही शिकायत दर्ज करायी। हालाँकि, ऐसी लिखित शिकायतों के बावजूद, पुलिस अधिकारियों ने याचिकाकर्ता द्वारा उक्त शिकायतों में लगाए गए आरोपों के आधार पर प्राथमिकी (FIR) दर्ज नहीं की।

    याचिकाकर्ता ने, इसलिए यह याचिका त्रिपुरा हाईकोर्ट में दायर की, जिसमें उसने उत्तरदाताओं नंबर 3 और 4 (पुलिस अधीक्षक, पश्चिम त्रिपुरा और प्रभारी अधिकारी, पश्चिम अगरतला पुलिस स्टेशन) के लिए एक दिशा निर्देश के लिए प्रार्थना की है कि दिनांक 1 जून, 2020 को उसके द्वारा दी गयी शिकायत के अनुसार, एक प्राथमिकी के रूप में और उसमें लगाए गए आरोपों का अन्वेषण शुरू किया जाए।

    राज्य की दलील

    त्रिपुरा सरकार के गृह उप सचिव, अरूप देब द्वारा 16 जुलाई, 2020 को एक हलफनामा--उत्तर दाखिल किया गया, जिसमें इस घटना के संबंध में लिया गया स्टैंड और याचिकाकर्ता की शिकायत पर बात रखी गयी।

    यह कहा गया कि 01/06/2020 को लगभग 10:31 बजे पश्चिम अगरतला पीएस में एक सूचना मिली थी कि सीपीआईएम पार्टी कार्यालय (भानु घोष स्मृति भवन) के सामने मेलारामनाथ में तख्तियों के साथ मौजूद महिलाओं का जमावड़ा लगा है।

    इस जमावड़े का मुद्दा महिलाओं के खिलाफ अपराध का विरोध करना था, हालाँकि सक्षम प्राधिकारी से ऐसी किसी भी सभा के लिए कोई पूर्व अनुमति नहीं ली गयी थी।

    ओसी वेस्ट अगरतला पीएस और महिला कर्मचारियों ने सभा को विधिपूर्वक तितर-बितर करवाने की कोशिश की, लेकिन सभा हिंसक हो गई और नारेबाजी करते हुए उन्होंने सार्वजनिक मार्ग को बंद कर दिया।

    यह देखते हुए, कार्यकारी मजिस्ट्रेट ने उन्हें खदेड़ने के लिए आगे बढ़ने की कोशिश की, लेकिन उन्होंने कार्यकारी मजिस्ट्रेट की उपस्थिति में पुलिस द्वारा दिए गए वैध आदेशों का पालन नहीं किया। इसके अलावा, उन्होंने ड्यूटी पर मौजूद पुलिस कर्मियों पर हमला किया और शारीरिक हमला किया।

    इसके बाद, इस संबंध में, ओ/सी वेस्ट अगरतला महिला पीएस में डब्ल्यूएसआई मीना देबबर्मा ने पश्चिम अगरतला पीएस में 01-06-2020 को एक एफआईआर दर्ज की और तदनुसार 353/270/332/34 आईपीसी के तहत एक एफआईआर दर्ज की गई (इस एफआईआर में मौजूदा याचिकाकर्ता को आरोपी बनाया गया है)।

    आगे यह कहा गया कि यह तथ्य सही नहीं है कि पुलिस, याचिकाकर्ता की शिकायत को नहीं देख रही है। बल्कि दिनांक 01-06-2020 को धरा 353/270/332/34 IPC के अंतर्गत उसी घटना के संबंध में मामला नंबर 2020WAG085 दर्ज किया गया था। इसलिए, याचिकाकर्ता की शिकायत को, जांच के लिए उपरोक्त एफआईआर के साथ टैग किया गया है और मामले की जांच जारी है।

    याचिकाकर्ता की दलील

    याचिकाकर्ता के लिए पेश वकील ने यह प्रस्तुत किया कि याचिकाकर्ता ने संज्ञेय अपराधों के बारे में एक शिकायत दर्ज की है। इसलिए, क्रिमिनल प्रोसीजर कोड की धारा 154 के तहत एफआईआर के रूप में उसी को दर्ज करने और अन्वेषण को अंजाम देने के लिए प्रतिवादी नंबर 4 बाध्य है।

    इस संदर्भ में उन्होंने ललिता कुमारी बनाम उत्तर प्रदेश एवं अन्य (2014) 2 एससीसी 1 के मामले में सुप्रीम कोर्ट के एक फैसले पर भरोसा किया।

    उनके द्वारा आगे यह कहा गया कि यह तथ्य कि याचिकाकर्ता और अन्य सह-प्रदर्शनकारियों के खिलाफ प्राथमिकी दर्ज की गई है, इस आधार पर याचिकाकर्ता की शिकायत को प्राथमिकी के रूप में स्वतंत्र रूप से दर्ज करने से इंकार नहीं किया जा सकता है।

    उन्होंने कहा कि याचिकाकर्ता के खिलाफ औपचारिक एफआईआर, जिसे उत्तरदाताओं द्वारा हलफनामे में जवाब में भेजा गया है, काउंटर-शिकायत की प्रकृति में है। इससे अधिकारियों को याचिकाकर्ता की प्राथमिकी दर्ज करने से इंकार करने की अनुमति नहीं होगी।

    एडवोकेट जनरल ने यह प्रस्तुत किया कि याचिकाकर्ता के खिलाफ एफआईआर दर्ज करने के बाद, याचिकाकर्ता की शिकायत को अलग से दर्ज करना आवश्यक नहीं है। याचिकाकर्ता के आरोपों की जांच की जाएगी जब पुलिस अधिकारियों द्वारा पश्चिम त्रिपुरा पुलिस स्टेशन में पहले से दर्ज एफआईआर में अन्वेषण किया जायेगा।

    न्यायालय का अवलोकन

    क्रिमिनल प्रोसीजर कोड के तहत ऐसी कोई प्रक्रिया नहीं है, जहां एक जवाबी मामले की प्रकृति में एक शिकायत को लंबित प्राथमिकी के साथ जोड़ा जा सके।

    जब याचिकाकर्ता ने पुलिस अधिकारियों में से कुछ के खिलाफ स्वतंत्र आरोप लगाये हैं और अगर ऐसी शिकायत संज्ञेय अपराध के कमीशन का खुलासा करती है, जैसा कि ललिता कुमारी के मामले में सुप्रीम कोर्ट द्वारा आयोजित किया जाता है, तो इसे प्राथमिकी के रूप में पंजीकृत किया जाना चाहिए।

    अंत में, प्रतिवादी नंबर 4 को यह निर्देश दिया गया कि वो याचिकाकर्ता के मामले को प्राथमिकी के रूप में दर्ज करे और उसकी शिकायत में लगाए गए आरोपों का अन्वेषण करे।

    आदेश की प्रति डाउनलोड करने के लिए यहांं क्लिक करेंं



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