रिकॉर्ड पर कोई ऐसा मेडिकल साक्ष्य नहीं जो आरोपी को ड्रग एडिक्ट दर्शाता हो : दिल्ली हाईकोर्ट ने एनडीपीएस के तहत आरोपी को ज़मानत दी

LiveLaw News Network

4 Oct 2020 1:01 PM GMT

  • रिकॉर्ड पर कोई ऐसा मेडिकल साक्ष्य नहीं जो आरोपी को ड्रग एडिक्ट दर्शाता हो : दिल्ली हाईकोर्ट ने एनडीपीएस के तहत आरोपी को ज़मानत दी

    दिल्ली हाईकोर्ट ने नार्कोटिक ड्रग्स एंड साइकोट्रोपिक सब्सटेंस एक्ट (NDPS) की धारा 20 और 29 के तहत आरोपी एक व्यक्ति को जमानत देते हुए कहा है कि अभियोजन पक्ष कोई ऐसा चिकित्सीय साक्ष्य पेश नहीं कर पाया,जिससे इस बयान को समर्थन मिल सके कि आरोपी एक ड्रग एडिक्ट है।

    न्यायमूर्ति विभु बाखरू की एकल पीठ ने जमानत देते समय कहा कि यह मानने के लिए उचित आधार हैं कि अभियुक्त को उन अपराधों के मामले में बरी किया जा सकता है जिनके तहत उस पर मामला बनाया गया है।

    वर्तमान मामले में आरोपी व्यक्ति ने जमानत की अर्जी दायर की थी। उसे कथित तौर पर चरस की कमर्शियल क्वांटिटी की तस्करी करने के मामले में नारकोटिक्स कंट्रोल ब्यूरो द्वारा गिरफ्तार किया गया था।

    जमानत अर्जी का विरोध करते हुए एनसीबी ने एनडीपीएस अधिनियम की धारा 67 के तहत अभियुक्त द्वारा दिए गए 'स्वैच्छिक बयान' का हवाला दिया था। एजेंसी ने विभिन्न रिकवरी का भी हवाला दिया, जो अभियुक्त द्वारा धारा 67 के तहत दिए गए बयान के अनुसार बरामद की गई थी।

    अदालत ने हालांकि, इस तथ्य पर ध्यान दिया कि एनडीपीएस अधिनियम की धारा 67 के तहत दिया गया बयान स्वीकार्य हैं या नहीं? यह मामला 'तोफान सिंह बनाम तमिलनाडु राज्य' मामले में सुप्रीम कोर्ट की एक बड़ी बेंच के पास विचार के लिए भेजा गया है।

    अदालत ने आगे कहा कि भले ही धारा 67 के तहत दिए गए इस तरह के बयानों को स्वीकार्य माना जाए, परंतु वे कमजोर साक्ष्य होंगे और इनका उपयोग केवल अन्य सबूतों का समर्थन करने के लिए किया जा सकता है।

    अदालत ने इस तथ्य पर भी संज्ञान लिया कि आरोपियों में से एक आरोपी द्वारा दिया गया इकबालिया बयान उससे हुई रिकवरी के अनुरूप नहीं है।

    इन दलीलों पर विचार करने के बाद अदालत ने कहा किः

    'उपरोक्त तथ्यों को ध्यान में रखते हुए, इस न्यायालय का विचार है कि यह मानने के लिए उचित आधार हैं कि याचिकाकर्ता को बरी किया जा सकता है। यह भी सत्य है कि याचिकाकर्ता किसी अन्य आपराधिक मामले में शामिल नहीं है और यह मानने का कोई कारण नहीं है कि रिहा होने पर वह इसी तरह का अपराध करेगा।

    ऐसा लगता है कि अभियोजन पक्ष का मामला यह है कि याचिकाकर्ता ने अपनी लत को पूरा करने के लिए ड्रग का लेन-देन शुरू कर दिया था। लेकिन, जैसा कि पहले कहा गया है कि यह स्थापित करने के लिए रिकॉर्ड पर कुछ भी नहीं है कि याचिकाकर्ता एक ड्रग एडिक्ट है।'

    अदालत ने यह भी स्पष्ट किया कि इस आदेश में की गई टिप्पणियां केवल प्रथम दृष्टया हैं और पूरी तरह से इस तथ्य की जांच करने की गई हैं कि क्या याचिकाकर्ता को जमानत पर रिहा किया जाना चाहिए?

    वर्तमान मामले में याचिकाकर्ता का प्रतिनिधित्व श्री अक्षय भंडारी और श्री दिग्विजय सिंह ने किया था।

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