विवाह विफल रहा है, इसके बावजूद पति/पत्नी का आपसी सहमति से तलाक देने से इनकार करना क्रूरता के समान : केरल हाईकोर्ट

LiveLaw News Network

15 Feb 2022 5:22 PM GMT

  • केरल हाईकोर्ट

    केरल हाईकोर्ट

    केरल हाईकोर्ट ने माना है कि इस तथ्य के बावजूद कि विवाह विफल हो चुका है, यदि पति-पत्नी में से कोई एक आपसी सहमति से तलाक देने से इनकार कर रहा है तो यह दूसरे पति या पत्नी के साथ क्रूरता करने के अलावा और कुछ नहीं है।

    जस्टिस ए. मोहम्मद मुस्तक और जस्टिस सोफी थॉमस की खंडपीठ ने कहा कि एक बार जब अदालत यह राय बनाने में सक्षम हो जाती है कि असामंजस्य के कारण, विवाह विफल हो गया है और पति-पत्नी में से एक आपसी अलगाव के लिए सहमति नहीं दे रहा है तो अदालत बहुत अच्छी तरह से उस आचरण को क्रूरता के रूप में मान सकती है।

    कोर्ट ने कहा कि

    ''तलाक पर कानून अलगाव के कारण के रूप में गलती और सहमति दोनों को पहचानता है। जब दोनों पक्ष विचारों के अंतर्निहित मतभेदों के कारण एक सार्थक वैवाहिक जीवन जीने में असमर्थ हैं और एक पक्ष अलगाव के लिए तैयार है और दूसरा पक्ष आपसी अलगाव के लिए अपनी सहमति नहीं दे रहा है,तो यह तथ्य अलगाव की मांग करने वाले जीवनसाथी के लिए मानसिक पीड़ा और क्रूरता का कारण बनेगा।''

    बेंच ने इस बात पर जोर दिया कि अगर रिश्ता पूरी तरह से खराब हो चुका है तो कोई भी व्यक्ति दूसरे व्यक्ति को कानूनी बंधन और रिश्ते में बने रहने के लिए मजबूर नहीं कर सकता है।

    वर्तमान मामले में पत्नी ने प्रतिवादी-पति के पक्ष में क्रूरता के आधार पर दी गई तलाक की डिक्री को चुनौती देते हुए एक अपील दायर की थी। एक अन्य अपील पति द्वारा दायर की गई थी,जिसमें उनके बच्चे की स्थायी कस्टडी की मांग वाली याचिका को खारिज करने के आदेश को चुनौती दी गई है।

    पति की ओर से पेश अधिवक्ता मजीदा एस ने पत्नी के कथित रूप से झगड़ालू रवैये का प्रमुख रूप से हवाला दिया।

    हालांकि, पत्नी का प्रतिनिधित्व करने वाले अधिवक्ता जैकब पी. एलेक्स, जोसेफ पी. एलेक्स और मनु शंकर पी ने उनकी ओर से किसी भी प्रकार के दुर्व्यवहार से इनकार किया और तर्क दिया कि पति आवश्यक देखभाल और भावनात्मक समर्थन देने में विफल रहा है और उसने गर्भावस्था के दौरान भी अपनी पत्नी का ख्याल नहीं रखा।

    पक्षों को सुनने और दलीलों और सबूतों को देखने के बाद अदालत ने यह राय बनाई कि उनके बीच कोई भावनात्मक बंधन या अंतरंगता विकसित नहीं हुई थी। बेंच ने यह भी कहा कि वे शादी के शुरुआती चरण से ही असंगति/असामंजस्य भरा जीवन जी रहे थे। शायद, शादी के समय वे एक-दूसरे से काफी दूर के स्थानों पर रह रहे थे, इसलिए इस तरह का आपसी लगाव विकसित करने में बाधा उत्पन्न हुई है।

    ''वैवाहिक संबंध समय के साथ मजबूत बनते हैं,जो स्वाद, दृष्टिकोण, मनोभाव आदि में अंतर के सामंजस्यपूर्ण संयोजन पर आधारित होते हैं। विवाह का प्रारंभिक चरण विवाह के लिए एक मजबूत नींव रखता है। प्रारंभिक चरण के दौरान बनाई गई समझ पक्षकारों को विवाह के बाद के चरण में उनके सामने आने वाले मतभेदों को सुलझाने में सक्षम बनाती है।''

    पीठ के ध्यान में यह भी लाया गया कि पत्नी ने जुनूनी ढंग से अपनी योजनाओं का एक चार्ज बनाया और प्रत्येक दिन के काम को लिखित रूप में सूचीबद्ध किया। पति ने ऐसी हस्तलिखित योजनाओं की प्रतियां प्रस्तुत की और तर्क दिया कि अगर थोड़ा सा भी काम इन योजनाओं के अनुसार नहीं होता था तो वह परेशान हो जाती थी।

    कोर्ट ने आगे कहा कि क्रूरता का आधार अनिवार्य रूप से दूसरे पक्ष के दोषों को इंगित करता है।

    ''कानूनी क्रूरता वास्तविक क्रूरता से अलग है। क्रूरता के लोकप्रिय अर्थ को क्रूरता के वैधानिक अर्थ के साथ नहीं जोड़ा जा सकता है। इस मामले का फैसला करते समय, हमने शुरुआत में ही पार्टियों की असंगति को इस कारण से रेखांकित किया है। अगर हम असंगति का उल्लेख नहीं करते हैं तो दिया गया निर्णय किसी एक पक्ष की बेगुनाही या दोष को साबित करेगा। असंगति से, हमारा मतलब है कि दोनों पक्ष अच्छा संबंध बनाने में विफल रहे हैं और किसी एक को अकेले इसके लिए जिम्मेदार नहीं ठहराया जा सकता है।''

    न्यायाधीशों ने यह भी माना कि वे इस खराब रिश्ते के लिए पत्नी को पूरी तरह से दोष नहीं दे सकते हैं क्योंकि मामले के तथ्यों से पता चलता है कि पक्षकारों के बीच कभी भी शांतिपूर्ण संबंध नहीं रहे हैं।

    यद्यपि पति ने इस आचरण को व्यवहार संबंधी विकार के रूप में जिम्मेदार ठहराया है, लेकिन किसी भी चिकित्सा साक्ष्य के अभाव में, न्यायालय ने इसे व्यक्तित्व विकार के रूप मानने से इनकार कर दिया।

    हालांकि, बेंच ने इस तथ्य को स्वीकार किया है कि, हो सकता है कि पत्नी के इस आचरण ने उनके रिश्ते के पतन में योगदान दिया हो।

    ''हर पल में जीने के बजाय शेड्यूल के आधार पर खुशी का पीछा करना, उसके द्वारा अपनाई गई दैनिक जीवन की दिनचर्या प्रतीत होती है। वह इस तथ्य के प्रति यथार्थवादी नहीं थी कि वैवाहिक सद्भाव का रहस्य शेड्यूल या रूटीन का हठ से पालन करवाने में नहीं बल्कि जीवन को उसी तरीके से स्वीकार करने में है,जैसा कि वह हमारे सामने आता है।''

    यह भी नोट किया गया कि पति को अपनी पत्नी का यह व्यवहार असहनीय लगा।

    ''यदि एक पक्ष का आचरण और चरित्र दूसरे पति या पत्नी के लिए दुख और पीड़ा का कारण बनता है, तो पति या पत्नी के प्रति क्रूरता का तत्व सामने आएगा, जो तलाक के अनुदान को उचित ठहराता है। यदि पक्षकार अपने तरीकों को सुधार नहीं सकते हैं, तो कानून उस पक्ष के प्रति बेखबर नहीं रह सकता है जो उस रिश्ते में पीड़ित है।''

    यह भी दावा किया गया कि पत्नी के खिलाफ व्यवहार विकार के संबंध में दिया गया तर्क अनिवार्य रूप से पार्टियों के बीच मौजूद असंगति का प्रतिबिंब है। दुर्व्यवहार की घटनाओं का हवाला देते हुए क्रूरता के अनुमानित कॉज पर पति इस संघर्षरत रिश्ते से बाहर निकलना चाहता है।

    कोर्ट ने कहा कि कुछ न्यायालयों में,असंगति तलाक के लिए एक मान्यता प्राप्त आधार है। कोर्ट ने असंगति की अवधारणा को विस्तार से बताया और कहा कि दोनों पक्ष वैवाहिक जीवन के प्रति अपने दृष्टिकोण में सामंजस्य स्थापित करने में असमर्थ रहे हैं।

    ''हमने इस मामले में उपरोक्त टिप्पणियों को स्पष्ट रूप से इस कारण से संदर्भित करना उचित समझा क्योंकि दोनों पक्ष संबंध बनाने में एक-दूसरे के सामने नहीं झुके और विवाह वफल हो गया। यदि पति या पत्नी में से एक आपसी अलगाव के लिए सहमति नहीं देता है, तो असंगति एक ऐसा कारक है जिसे क्रूरता के आधारों पर विचार करते समय ध्यान में रखा जा सकता है, हालांकि असंगति को तलाक के आधार के रूप में मान्यता नहीं दी जाती है।''

    उक्त कारणों से, और यह देखते हुए कि दोनों पक्ष युवा हैं और 2017 से अलग रह रहे हैं, बेंच ने माना कि फैमिली कोर्ट ने इस कपल को तलाक देकर सही किया है।

    इसके अलावा, कस्टडी याचिका के संबंध में, यह माना गया कि चूंकि 5 साल का बच्चा जन्म से ही अपनी मां के साथ रह रहा है, और चूंकि पति उसकी कस्टडी प्राप्त करने के लिए उत्साहित नहीं है, इसलिए बच्चे की कस्टडी उसकी मां के पास ही रहेगी।

    हालांकि, यह स्पष्ट किया गया कि उक्त याचिका को खारिज किए जाने से, पति के किसी भी मुलाक़ात के अधिकार या बच्चे के साथ संपर्क बनाने के अधिकारों के लिए फैमिली कोर्ट में एक नई याचिका दायर करने पर कोई प्रभाव नहीं पड़ेगा।

    केस का शीर्षक- बीना एम.एस. बनाम शिनो जी. बाबू

    उद्धरण- 2022 लाइव लॉ (केरल) 78

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