दामाद को ससुर की संपत्ति में कोई कानूनी अधिकार नहींः केरल हाईकोर्ट
LiveLaw News Network
4 Oct 2021 5:13 PM IST
केरल हाईकोर्ट ने हाल ही में कहा है कि एक दामाद का अपने ससुर की संपत्ति और भवन में कोई कानूनी अधिकार नहीं हो सकता, भले ही उसने भवन के निर्माण के लिए कुछ राशि खर्च की हो।
न्यायमूर्ति एन. अनिल कुमार की पीठ ने जुर्माना लगाते हुए दूसरी अपील को खारिज कर दिया और कहा कि,
''जब संपत्ति वादी के कब्जे में है, तो प्रतिवादी दामाद यह दलील नहीं दे सकता है कि उसे वादी की बेटी के साथ विवाह के बाद परिवार के सदस्य के रूप में अपनाया गया था और संपत्ति में उसका अधिकार है ... अगर दामाद का कोई निवास, यदि वादी के भवन में है तो वह प्रकृति में केवल अनुज्ञात्मक है। इसलिए, दामाद का अपने ससुर की संपत्ति और भवन पर कोई कानूनी अधिकार नहीं हो सकता है, भले ही उसने भवन के निर्माण पर कुछ राशि खर्च की हो।''
पृष्ठभूमिः
वादी (यहां प्रतिवादी) ने ट्रायल कोर्ट के समक्ष एक मूल वाद दायर किया,जिसमें प्रतिवादी (उसके दामाद,यहां अपीलार्थी) को वादी की संपत्ति में अतिक्रमण करने या उसके शांतिपूर्ण कब्जे और उक्त संपत्ति के आनंद में हस्तक्षेप करने से रोकने के लिए स्थायी निषेधाज्ञा जारी करने की मांग की थी। यह संपत्ति उपहार डीड के आधार पर वादी को मिली थी।
वादी की पत्नी और बेटी ने भी प्रतिवादी के खिलाफ सुरक्षा आदेश के लिए याचिका दायर की थी। हालांकि मामलों का निपटारा कर दिया गया था, परंतु प्रतिवादी का व्यवहार असहनीय हो गया, जिसने वादी को उसके प्रवेश पर रोक लगाने के लिए एक स्थायी निषेधाज्ञा प्राप्त करने के लिए मजबूर किया। यह तर्क दिया गया कि प्रतिवादी का संपत्ति पर कोई अधिकार नहीं है।
दूसरी ओर प्रतिवादी (यहां अपीलार्थी) ने तर्क दिया कि उसने वादी की इकलौती पुत्री से विवाह किया है और इस प्रकार उसे विवाह के बाद व्यावहारिक रूप से परिवार के सदस्य के रूप में अपनाया गया था। इन आधारों पर, उसने कहा कि उसे घर में रहने का अधिकार है।
ट्रायल कोर्ट ने हालांकि माना कि वादी उक्त संपत्ति का मालिक है और दामाद को वादी के उक्त भवन के कब्जे में हस्तक्षेप करने का कोई अधिकार नहीं है।
हालांकि एक अपील दायर की गई थी, पहली अपीलीय अदालत भी इस निष्कर्ष पर पहुंची कि प्रतिवादी के पास उक्त भवन पर वादी के शांतिपूर्ण कब्जे में हस्तक्षेप करने का कोई अधिकार नहीं है। तदनुसार अपील खारिज कर दी गई।
इससे क्षुब्ध होकर प्रतिवादी ने हाईकोर्ट में नियमित दूसरी अपील दायर की।
निष्कर्ष
न्यायालय के समक्ष विचार के लिए प्राथमिक प्रश्न यह था कि क्या दामाद अपने ससुर की संपत्ति और भवन में किसी कानूनी अधिकार का दावा कर सकता है?
कोर्ट ने कहा कि वादी संपत्ति और इमारत के लिए कर का भुगतान कर रहा है। वह उक्त बिल्डिंग में रह भी रहा है। यह भी मानना मुश्किल पाया गया कि प्रतिवादी परिवार का सदस्य है। अदालत ने कहा कि वादी के परिवार में उसकी पत्नी और बेटी है।
''प्रतिवादी वादी का दामाद है। उसके लिए यह दलील देना शर्मनाक है कि उसे वादी की बेटी के साथ शादी के बाद परिवार के सदस्य के रूप में अपनाया गया था।''
इसलिए, यह माना गया कि जब वादी के कब्जे में संपत्ति है, तो दामाद यह दलील नहीं दे सकता है कि उसे वादी की बेटी के साथ विवाह के बाद परिवार के सदस्य के रूप में अपनाया गया था और संपत्ति पर उसका अधिकार है।
यह दोहराया गया कि अगर दामाद का कोई निवास, यदि वादी के भवन में है तो वह प्रकृति में केवल अनुज्ञात्मक है। इसलिए अदालत ने फैसला सुनाया कि दामाद का अपने ससुर की संपत्ति और भवन पर कोई कानूनी अधिकार नहीं हो सकता है, भले ही उसने भवन के निर्माण पर कुछ राशि खर्च की हो।
निचली अदालत और प्रथम अपीलीय अदालत के फैसलों को बरकरार रखते हुए हाईकोर्ट ने कहा कि,
''इस न्यायालय को प्रथम अपीलीय न्यायालय के निर्णय और निचली अदालत की डिक्री में कोई त्रुटि नहीं मिली है। इस प्रकार, यह आरएसए जुर्माने के साथ खारिज की जाती है।''
अपीलकर्ता की ओर से एडवोकेट ब्लेज़ के जोस और मामले में प्रतिवादी की ओर से एडवोकेट वी.टी माधवन उन्नी ने पैरवी की।
केस का शीर्षकः डेविस राफेल बनाम हेंड्री थॉमस
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