जजों के खिलाफ सोशल मीडिया पोस्टिंग को साजिश और संस्था के खिलाफ हमला माना जा सकता है: आंध्र प्रदेश हाईकोर्ट ने पांच आरोपियों को जमानत से इनकार किया

LiveLaw News Network

4 Dec 2021 1:47 PM GMT

  • जजों के खिलाफ सोशल मीडिया पोस्टिंग को साजिश और संस्था के खिलाफ हमला माना जा सकता है: आंध्र प्रदेश हाईकोर्ट ने पांच आरोपियों को जमानत से इनकार किया

    सु्प्रीम कोर्ट और हाईकोर्ट के जजों के खिलाफ कथित रूप से अपमानजनक पोस्ट करने के आरोप में पांच लोगों को जमानत देने से इनकार करते हुए आंध्र प्रदेश हाईकोर्ट ने कहा कि जजों के खिलाफ सोशल मीडिया का इस्तेमाल पूरी संस्था के खिलाफ साजिश और हमला माना जा सकता है।

    जस्टिस डी रमेश की खंडपीठ ने कहा कि जजों के खिलाफ लगाए गए आरोप न्यायालयों को बदनाम करने के दायरे में आते हैं।

    मामला

    पिछले साल चीफ जस्टिस प्रशांत कुमार मिश्रा और जस्टिस ललिता कन्नेगंती की खंडपीठ ने एक सांसद और एक पूर्व विधायक सहित 49 लोगों के खिलाफ स्वत: संज्ञान लेकर अवमानना ​​नोटिस जारी किया था। कोर्ट ने कहा उन्होंने जजों के खिलाफ अपमानजनक सोशल मीडिया पोस्ट की थी।

    हाईकोर्ट ने मामले की जांच सीबीआई को स्थानांतरित कर दी थी और जजों के खिलाफ अपमानजनक सोशल मीडिया पोस्ट की जांच करने का निर्देश दिया था।

    सीबीआई ने मामले में एक एफआईआर दर्ज की और याचिकाकर्ताओं के सोशल मीडिया पोस्ट की जांच की और आरोपों को उचित पाए जाने के बाद उन्हें अक्टूबर 2021 में गिरफ्तार कर लिया गया। जिसके बाद वे जमानत आवेदन के साथ हाईकोर्ट चले गए।

    सीबीआई ने याचिकाकर्ताओं को भारतीय दंड संहिता की धारा 153-ए, 504, 505 (2), 506, सूचना प्रौद्योगिकी अधिनियम, 2000 की धारा 67 के तहत मुकदमा दर्ज किया था। सीबीआई ने जमानत याचिका का विरोध करते हुए अदालत के समक्ष प्रस्तुत किया कि उसने निचली अदालत में पुलिस हिरासत की याचिका दायर की है और उस पर आदेश लंबित है। याचिकाकर्ता प्रभावशाली व्यक्ति हैं और यदि उन्हें जमानत दी गई तो गवाहों को प्रभावित करने की पूरी संभावना है।

    अवलोकन

    कोर्ट ने कहा कि हालांकि यह मामला अक्टूबर 2020 में सीबीआई को दे दिया गया था, यहां तक ​​कि सीबीआई को भी इन व्यक्तियों को गिरफ्तार करने में लगभग एक साल का समय लगा और यह खुद ही दिखाता है कि याचिकाकर्ता कैसे प्रभावशाली हैं।

    कोर्ट ने माना कि याचिकाकर्ता मामूली लेकिन साजिश के पीछे बड़े लोग हो सकते हैं।

    पक्षकारों की दलीलों और आरोपों की गंभीरता पर विचार करते हुए और इस तथ्य पर विचार करते हुए कि कुछ आरोपियों की गिरफ्तारी बाकी है और पूरी जांच अभी पूरी नहीं हुई है, अदालत याचिकाकर्ताओं को जमानत देने पर संतुष्ट नहीं थी। तदनुसार, आपराधिक याचिका खारिज कर दी गई थी।

    अन्य मामलों में यह देखते हुए कि 'जजों को कोसना कुछ लोगों का शौक बन गया है', आंध्र प्रदेश हाईकोर्ट ने हाल ही में फेसबुक, इंस्टाग्राम, ट्विटर और यूट्यूब से जजों के खिलाफ अपमानजनक सामग्री को हटाने का निर्देश दिया था।

    आदेश डाउनलोड करने के लिए क्लिक करें

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