बच्चों के खिलाफ यौन हमले बढ़ रहे हैं, सभी मामलों की रिपोर्ट नहीं की जा सकती; अपराधियों को सख्त सजा दी जानी चाहिए: इलाहाबाद हाईकोर्ट

Shahadat

30 May 2023 4:02 AM GMT

  • बच्चों के खिलाफ यौन हमले बढ़ रहे हैं, सभी मामलों की रिपोर्ट नहीं की जा सकती; अपराधियों को सख्त सजा दी जानी चाहिए: इलाहाबाद हाईकोर्ट

    इलाहाबाद हाईकोर्ट ने हाल ही में देखा कि बच्चों के खिलाफ होने वाले यौन अपराधों में खतरनाक और चौंकाने वाली वृद्धि हुई है।

    जस्टिस संजय कुमार सिंह की पीठ ने यह देखते हुए कि सभी यौन हमले रिपोर्ट नहीं किए जा रहे हैं, इस प्रकार कहा,

    "...यह इस कारण से है कि बच्चे बलात्कार के कृत्य से अनभिज्ञ हैं और प्रतिरोध करने में सक्षम नहीं हैं। इसलिए वे 'लालची जानवरों' के लिए आसान शिकार बन जाते हैं, जो लड़कियों और बच्चियों को लुभाने की बेईमान, धोखेबाज और कपटी कला का प्रदर्शन करते हैं।"

    गौरतलब है कि कोर्ट ने आगे कहा कि ऐसे अपराधी, जो सभ्य समाज के लिए खतरा हैं, उन्हें निर्दयतापूर्वक और कठोरतम सजा दी जानी चाहिए।

    पीठ ने इस प्रकार भारतीय दंड संहिता (आईपीसी) की धारा 376एबी और पॉक्सो एक्ट की धारा 5एम/6 के तहत दर्ज मामले में आरोपी को जमानत देने से इनकार करते हुए कहा, जिसने कथित तौर पर 7 साल की बच्ची को 10 रुपये देने का लालच देकर उसका यौन उत्पीड़न किया था। आरोपी को जनवरी 2022 में गिरफ्तार किया गया।

    अभियुक्त के वकील ने तर्क दिया कि उसे इस मामले में गलत तरीके से फंसाया गया और अभियोजन पक्ष के आरोप को पीड़िता की मेडिकल जांच रिपोर्ट द्वारा समर्थित नहीं किया गया, क्योंकि उसके शरीर पर कोई चोट नहीं पाई गई और उसका हाइमन पेरिनेम बरकरार है।

    दूसरी ओर, एडिशनल गवर्नमेंट एडवोकेट ने आवेदक की जमानत याचिका का विरोध करते हुए कहा कि पीड़िता ने सीआरपीसी की धारा 161 और 164 के तहत अपने बयान में आवेदक के खिलाफ बलात्कार के गंभीर आरोप लगाए हैं।

    इस पृष्ठभूमि में अदालत ने कहा कि 7 वर्षीय पीड़िता ने सीआरपीसी की धारा 164 के तहत अपने बयान में विशेष रूप से आरोपी के खिलाफ आरोप लगाए हैं।

    इसके अलावा, मोदी टेक्स्टबुक ऑफ मेडिकल ज्यूरिसप्रुडेंस एंड टॉक्सिकोलॉजी, 23वें एडिशन का हवाला देते हुए कोर्ट ने कहा कि यह अच्छी तरह से स्थापित है कि बलात्कार का अपराध बनने के लिए वीर्य के उत्सर्जन के साथ लिंग का पूर्ण प्रवेश और हाइमन का टूटना आवश्यक नहीं है।

    कोर्ट ने यह भी कहा कि सुप्रीम कोर्ट ने अपने विभिन्न फैसलों में यह माना कि अदालतें यौन उत्पीड़न की पीड़िता की एकमात्र गवाही पर भरोसा कर सकती हैं, जिससे आरोपी को दोषी ठहराया जा सके, जहां उसकी गवाही आत्मविश्वास को प्रेरित करती है और विश्वसनीय पाई जाती है।

    इसके अलावा, पॉक्सो एक्ट की धारा 29 के तहत आरोपी आवेदक के खिलाफ तैयार की गई धारणा का उल्लेख करते हुए पीठ ने मामले के समग्र तथ्यों और परिस्थितियों पर विचार करते हुए आवेदक को जमानत पर रिहा करने से इनकार कर दिया।

    केस टाइटल- राजेश बनाम यूपी राज्य और 3 अन्य [आपराधिक विविध जमानत आवेदन नंबर- 10336/2022]

    केस साइटेशन: लाइवलॉ (एबी) 167/2023

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