[धारा 173 सीआरपीसी] पुलिस एक अभियुक्त के खिलाफ अंतिम रिपोर्ट दायर कर सकती है और दूसरे के खिलाफ आगे जांच कर सकती है: केरल हाईकोर्ट
LiveLaw News Network
8 July 2020 1:11 PM IST
केरल हाईकोर्ट ने माना है कि जांच अधिकारी को एक से अधिक अभियुक्तों से जुड़े अपराध में जांच आगे बढ़ाने और पकड़े गए आरोपी के खिलाफ अंतिम रिपोर्ट दाखिल करने की अनुमति है। उसे फरार आरोपी के गिरफ्तार होने तक इंतजार करने की आवश्यकता नहीं है।
मामले में पिता-पुत्र की एक जोड़ी पर अपराध का आरोप लगाया गया था। बेटे के फरार होने के बाद, मामले में एक आरोपी, पिता के खिलाफ अंतिम रिपोर्ट दायर की गई थी। ट्रायल कोर्ट ने उसे भारतीय दंड संहिता की धारा 323, 324 और 341 के तहत दंडनीय अपराध का दोषी पाया; आरोपपत्र में दर्ज अन्य अपराधों के लिए उसे बरी कर दिया। जिला और सत्र न्यायालय ने मामले में दोष रद्द कर दिए और अपील की अनुमति दे दी।
इस स्तर पर, दूसरे आरोपी (पुत्र) ने धारा 482 CrPC के तहत याचिका दायर करके हाईकोर्ट का दरवाजा खटखटाया, और मांग की कि उसके खिलाफ आपराधिक कार्यवाही पर रोक लगाई जाए, इस तथ्य के बावजूद कि वह फरार था, उसे अंतिम रिपोर्ट में आरोपी के रूप में पेश किया जाना चाहिए था, जिसे जांच अधिकारी नहीं कर पाए।
उसने दलील दी की, जांच अधिकारी याचिकाकर्ता के खिलाफ अपराध की जांच आगे करने और बाद में एक और अंतिम रिपोर्ट दर्ज करने का अधिकार सुरक्षित नहीं रख सकते।
इस दलील से असहमत होते हुए, कोर्ट ने कहा कि जिस मामले में एक से अधिक आरोपी हों, और उनमें से कुछ फरार हैं, ऐसे मामले में जांच अधिकारी से यह उम्मीद नहीं की जाती कि वह तब तक इंतजार करें, जब तक कि फरार आरोपी गिरफ्तार न हो जाए, ताकि संबंधित मामले की उसकी भागीदारी की जांच आगे बढ़ सके।
जस्टिस अशोक मेनन ने कहा कि रिकॉर्ड पर उपलब्ध सबूतों के आधार पर वह उन अभियुक्तों के खिलाफ, जिन्हें पहले ही गिरफ्तार किया जा चुका है, अंतिम रिपोर्ट दायर करने के लिए स्वतंत्र हैं।
याचिकाकर्ता ने एक और दलील दी थी कि उपरोक्त प्रावधानों के तहत किसी एक अभियुक्त के खिलाफ जांच पूरी करने और अंतिम रिपोर्ट दाखिल करने का मतलब है कि जांच समाप्त हो चुकी है, और इसलिए, सीआरपीसी की धारा 173 की उप-धारा (8) के परिकल्पित आगे की जांच को आवश्यक रूप से जांच को फिर से खोलना कहा जाना चाहिए; ऐसा नई और ताजी सामग्री, होने पर ही स्वीकार्य है, जो पहले उपलब्ध नहीं थीं, खोजी जा रही थीं।
कोर्ट ने इस संबंध में कहा, "इस चरम रुख को स्वीकार करना या सहमत होना संभव नहीं है। जहां एक से अधिक आरोपी हों, यह पूरी तरह से संभव है कि एक आरोपी के खिलाफ जांच पूरी हो सकती है; जबकि एक फरार, अनाम या गुमानाम अभियुक्त के खिलाफ जांच अधूरी रह सकती है या शुरू होना भी बाकी रहा सकता है। ऐसी स्थिति में, बिना किसी देरी के जांच पूरी करने के लिए धारा 173, सीआरपीसी के तहत कानूनी जनादेश है, और जैसे ही जांच पूरी होती है, पुलिस मजिस्ट्रेट के समक्ष रिपोर्ट दर्ज कर सकती है, और मजिस्ट्रेट रिपोर्ट का संज्ञान ले सकता है।
यदि फरार, अनाम या गुमनाम आरोपी के खिलाफ बाद में जांच पूरी हो जाती है और उसके खिलाफ पुलिस रिपोर्ट दर्ज की जाती है, तो इसका मतलब किसी भी तरह से आरोपी व्यक्ति या उन लोगों के खिलाफ जांच को फिर से खोलना नहीं है, जिनके संबंध में पुलिस पहले से एक रिपोर्ट दाखिल कर चुकी है। इस संदर्भ में दोबारा खोलने के सिद्धांत को लाना अनुचित है। कानून पुलिस रिपोर्ट दाखिल होने को मामले का समापन नहीं मानता है..."
कोर्ट ने कहा कि धारा 173 एक ही जांच के आधार पर एक से अधिक आरोप-पत्र या अंतिम रिपोर्ट दाखिल करने पर कोई रोक नहीं लगाती है।
कोर्ट ने कहा, "न तो जांच अधिकारी को संशोधित चार्जशीट दाखिल करने का अधिकार है और न ही समान सामग्रियों के आधार पर ऐसा करने पर कोई रोक है। सीआरपीसी की धारा 173 की उप-धारा (2) (i) के अनुसार, जांच पूरी होने के तुरंत बाद, थाना प्रभारी न्यायिक मजिस्ट्रेट को..राज्य सरकार की ओर से निर्धारित प्रपत्र में एक रिपोर्ट देंगे।
धारा 173 (8) को केवल इसलिए यह साफ करने के लिए जोड़ा गया है कि जांच अधिकारी को पुलिस रिपोर्ट मजिस्ट्रेट के समक्ष देनी है, उसे मामले में आगे जांच करने और अतिरिक्त सबूत आने बाद अंतिम रिपोर्ट प्रस्तुत करने से वंचित नहीं किया गया है।"
कोर्ट ने याचिकाकर्ता की इस दलील को खारिज कर दिया कि अपीलीय कोर्ट द्वारा एक आरोपी को बरी किए जाने के कारण अभियोजन मामले का मूल आधार खो चुका है और अभियोजन पक्ष अब उसी जांच के आधार पर याचिकाकर्ता के खिलाफ कार्यवाही नहीं कर सकता है।
कोर्ट ने कहा, "यह ध्यान में रखना होगा कि याचिकाकर्ता के खिलाफ जांच अभी तक पूरी नहीं हुई है और अंतिम रिपोर्ट अभी तक दायर नहीं की गई है। याचिकाकर्ता के खिलाफ और सबूत इकाट्ठा किए जाने की संभावना है। फरार दूसरा आरोपी पहले आरोपी के बरी होने का लाभ नहीं ले सकता है।"
केस टाइटल: सुशील राज बनाम केरल राज्य
केस नं: Crl.MC.No.1797 of 2017
कोरम: जस्टिस अशोक मेनन
वकील: एडवोकेट वीटी रघुनाथ
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