विशेष विवाह अधिनियम के तहत मुस्लिम पुरुष द्वारा हिंदू महिला से किया गया दूसरा विवाह अमान्य : गुवाहाटी हाईकोर्ट

LiveLaw News Network

12 Sep 2021 5:00 AM GMT

  • विशेष विवाह अधिनियम के तहत मुस्लिम पुरुष द्वारा हिंदू महिला से किया गया दूसरा विवाह अमान्य : गुवाहाटी हाईकोर्ट

    Gauhati High Court

    गुवाहाटी हाईकोर्ट ने कहा कि विशेष विवाह अधिनियम की धारा चार किसी मुस्लिम पुरुष द्वारा एक हिंदू महिला के साथ अनुबंधित दूसरी शादी का बचाव नहीं करती, अत: ऐसा विवाह अमान्य होगा।

    विशेष विवाह अधिनियम की धारा चार के अनुसार, विशेष विवाहों के अनुष्ठापन से संबंधित शर्तों में से एक यह है कि किसी भी पक्ष का जीवनसाथी जीवित नहीं होना चाहिए।

    इस मामले में याचिकाकर्ता महिला एक मुस्लिम पुरुष की दूसरी पत्नी है। उसने अपने पति की मृत्यु पर पेंशन और अन्य पेंशन लाभ न मिलने से व्यथित होकर अदालत का दरवाजा खटखटाया।

    इस मामले में मुद्दा यह है कि क्या याचिकाकर्ता हिंदू होने और अपने पति से विवाहित होने के कारण विशेष विवाह अधिनियम, 1954 के तहत एक मुसलमान पति की पेंशन और अन्य पेंशन लाभों की हकदार होगी?

    अधिनियम की धारा चार और मोहम्मद सलीम अली (मृत) बनाम शमशुदीन (मृत) सुप्रीम कोर्ट के फैसले का भी जिक्र करते हुए, अदालत ने कहा कि विशेष विवाह अधिनियम की धारा चार एक मुसलमान पुरुष द्वारा अनुबंधित दूसरी शादी का बचाव नहीं करती है।

    न्यायमूर्ति कल्याण राय सुराणा ने कहा,

    "ऐसा प्रतीत होता है कि मुस्लिम कानून के सिद्धांतों के तहत मूर्ति पूजा करने वाले के साथ मुस्लिम व्यक्ति का विवाह न तो वैध है और न ही शून्य विवाह है, बल्कि केवल एक अनियमित विवाह है। मुल्ला द्वारा मुस्लिम कानून के सिद्धांतों की धारा 22 के अनुसार (20वां संस्करण) विवाह की क्षमता स्वस्थ दिमाग के प्रत्येक मुसलमान से संबंधित है जिसने विवाह अनुबंध में प्रवेश किया था। याचिकाकर्ता मुसलमान नहीं होने के कारण मुस्लिम कानून के तहत मुस्लिम व्यक्ति से विवाहित नहीं मानी जा सकती। वर्तमान मामले में यह देखा गया कि याचिकाकर्ता की शादी प्रथागत मुस्लिम कानून के अनुसार नहीं हुई थी, लेकिन उसकी शादी विशेष विवाह अधिनियम, 1954 के तहत हुई थी और उक्त अधिनियम की धारा 4 (ए) के प्रावधान विवाह को शून्य बताते हैं। इसके अलावा, याचिकाकर्ता अभी भी अपने हिंदू नाम का उपयोग कर रही है। इसके साथ ही यह दिखाने के लिए कोई रिकॉर्ड भी नहीं है कि याचिकाकर्ता ने शादी के बाद इस्लाम धर्म अपना लिया था।"

    इसके बचाव में याचिकाकर्ता ने तर्क दिया कि विशेष विवाह अधिनियम की धारा 24 के तहत पहली पत्नी की ओर से याचिकाकर्ता और उसके पति के बीच विवाह को अमान्य घोषित करना अनिवार्य है।

    कोर्ट ने कहा,

    "एक हिंदू याचिकाकर्ता ने विशेष विवाह अधिनियम, 1954 के तहत मुसलमान व्यक्ति से शादी की थी। इस तरह के विवाह के समय विशेष विवाह अधिनियम की धारा 4 (ए) की मिसाल स्पष्ट रूप से अनुपस्थित है। इसलिए, विवाह अमान्य होगा।"

    उसके दावे को खारिज करते हुए अदालत ने कहा कि याचिकाकर्ता का नाबालिग बेटा अब भी पेंशन और अन्य पेंशन लाभों पर अपने हिस्से का हकदार होगा।

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