'केरल में नशीली दवाओं के इस्तेमाल की दर काफी ज्यादा', केरल हाईकोर्ट ने स्कूल और कॉलेजों में ड्रग्स का इस्तेमाल रोकने के लिए दिशा निर्देश जारी किए
LiveLaw News Network
11 Feb 2021 1:23 PM IST
केरल उच्च न्यायालय ने यह देखते हुए कि "केरल में नशीली दवाओं के इस्तेमाल की दर काफी ज्यादा है", युवाओं और छात्रों को नशीली दवाओं का इस्तेमाल करने से रोकने के लिए कई दिशा-निर्देश जारी किए हैं।
कोर्ट के दिए दिश निर्देशों में सबसे ज्यादा उल्लेखनीय यह है कि राज्य सरकार ने सभी शैक्षणिक संस्थानों में कैंपस पुलिस यूनिट की स्थापना की है ताकि कैंपस में नशीली दवाओं के इस्तेमाल को रोका जा सके। न्यायालय ने कैंपस यूनिट के गठन का आदेश दिया, क्योंकि यह पाया गया कि कानून प्रवर्तन एजेंसियां शैक्षणिक संस्थानों में नियमित जांच नहीं कर पा रही थीं।
न्यायालय ने यह भी आदेश दिया कि शैक्षिक संस्थानों में नारकोटिक ड्रग्स एंड साइकोट्रॉपिक सबस्टेंस एक्ट, 1985 को लागू करने के लिए राज्य सरकार को कानून को पुलिस और आबकारी अधिकारियों के लिए आसान बनाने के उपाय करने चाहिए।
कोर्ट ने कहा, "एनडीपीएस अधिनियम, 1985 की धारा 32 बी (डी) इस तथ्य के संबंध में है कि अपराध एक शिक्षण संस्थान या सामाजिक सेवा सुविधा में या ऐसे संस्थान या सुविधा के नजदीक किया जाता है, या ऐसी जगह पर किया जाता है, जिसका बच्चे और छात्र शैक्षिक, खेल और सामाजिक गतिविधियों के लिए उपयोग करते हैं, आक्रामक कारकों में से एक है, जिससे अपराध के लिए निर्धारित न्यूनतम जुर्माना से अधिक लगाना औचित्यपूर्ण हो सकता है।"
चीफ जस्टिस एस मणिकुमार और जस्टिस एएम शफिक की खंडपीठ ने स्टेट स्पेशल ब्रांच की एक चौंकाने वाली रिपोर्ट का उल्लेख किया कि राज्य में लगभग 400 संस्थान नशीली दवाओं के इस्तेमाल से प्रभावित हैं और ऐसे शिक्षा संस्थानों में से 74.12% स्कूल, 20.89% कॉलेज और पेशेवर संस्थान, और 4.97% अन्य संस्थान जैसे कि आईटीआई, पॉलिटेक्निक आदि हैं।
स्पेशल ब्रांच की रिपोर्ट में आगे कहा गया कि कॉलेज परिसरों में पाए गए अधिकांश मामलों में, जब्त किया गया गांजा एक किलो से नीचे है, जो जमानती है, और यह एक व्यक्ति को नशीली दवाओं के दुरुपयोग के लिए प्रोत्साहित करता है। मादक और सिंथेटिक दवाओं के अलावा छात्र व्हाइटनर, स्याही, फेविकोल, वार्निश और सॉल्यूशन, जैसे हानिकारक रसायनों को उपयोग कर रहे हैं। कोर्ट ने कहा कि ये पदार्थ बीमारी का कारण बनेंगे और छात्रों के अंगों को स्थायी रूप से नुकसान पहुंचा सकते है। चूंकि उपरोक्त पदार्थ एनडीपीएस अधिनियम के दायरे में नहीं आते हैं, इसलिए कोई कानूनी कार्रवाई शुरू नहीं की गई है।
कोर्ट ने नशीली दवाओं के इस्तेमाल पर रोक लगाने के लिए निम्न दिशा निर्देश जारी किए:
-राज्य सरकार को कैंपस पुलिस यूनिट की स्थापना का निर्देश दिया जाता है, क्योंकि कानून प्रवर्तन एजेंसियां शैक्षणिक संस्थानों के अंदर नियमित जांच नहीं कर रही हैं। शैक्षिक संस्थानों में एनडीपीएस अधिनियम, 1985 को लागू करने के लिए राज्य सरकार पुलिस और आबकारी कर्मियों को इसे आसान बनाने के लिए भी उपाय करे।
-राज्य सरकार को गृह मंत्रालय, आबकारी, स्वास्थ्य, कानून, शिक्षा विभाग और राज्य मानसिक स्वास्थ्य प्राधिकरण, सामाजिक न्याय विभाग के प्रमुख अधिकारियों की बैठक बुलानी चाहिए और किशोरों और युवाओं के बीच मादक द्रव्यों के सेवन और उपरोक्त सुझावों के कार्यान्वयन के लिए कार्यक्रम बनाना चाहिए।
-विश्वविद्यालयों/ कॉलेजों/ स्कूल प्राधिकारियों को शिक्षण परिसरों को नशा मुक्त बनाने के लिए कर्तव्यों और जिम्मेदारियों के चार्टर के रूप में दिशा निर्देश दिए जाएं।
-केरल पुलिस को स्टूडेंट पुलिस कैडेट्स, एनसीसी, एनएसएस और अन्य ऐसे ही संगठनों की सेवाएं लेनी चाहिए...
-केरल पुलिस को एक विशेष योजना शुरू करनी चाहिए ताकि यह सुनिश्चित किया जा सके कि शिक्षण संस्थानों और विश्वविद्यालयों का परिसर नशामुक्त हो।
-पुलिस को काउंसलिंग और पुनर्वास तंत्र स्थापित करने चाहिए, जिससे पहले से ड्रग्स और नशीले पदार्थों का सेवन कर रहे छात्रों को बचाया जा सके और इस मामले में विश्वविद्यालय अधिकारियों, प्रभावित छात्रों और उनके माता-पिता के सहयोग लिया जा सकता है।
कोर्ट ने कहा कि दिशा निर्देशों को इस फैसले की प्रति प्राप्त होने की तारीख से तीन महीने की अवधि के भीतर, कानून के अनुसार कड़ाई से पालन किया जाना चाहिए।
खंडपीठ ने एक पूर्व आईपीएस अधिकारी एन रामचंद्रन के एक पत्र के आधार पर शुरू किए गए एक स्वतः संज्ञन मामले का निपटारा करते हुए निर्देश जारी किए, जिसमें स्कूलों और कॉलेजों में ड्रग्स के बड़े पैमाने पर दुरुपयोग पर प्रकाश डाला गया।
स्कूलों और कॉलेजों में नशीली दवाओं की बिक्री की समस्या से निपटने के लिए, न्यायालय ने निम्नलिखित उपायों को अपनाने का सुझाव दिया-
a) ड्रग पेडलर्स से निपटने के स्थानीय पुलिस स्कूलों और कॉलेजों के आसपास के इलाकों पर विशेष ध्यान देगी।
b)स्कूलों और कॉलेज को आसपास के क्षेत्रों में ड्रग पेडलर्स पर निगाह रखने और पुलिस को रिपोर्ट करने के लिए प्रोत्साहित किया जाए।
c) स्कूल और कॉलेजों को छात्रों के बीच मादक पदार्थों की लत का आकलन करने के लिए सर्वेक्षण (छुपकर) करने के लिए प्रोत्साहित किया जाए और अगर लती छात्रों की पहचान की जा सकती है, तो उनके अभिभावकों या वार्डों से उनकी लत को ठीक करने के लिए चिकित्सा सहायता प्राप्त करने के बारे में बात करें।
d) केंद्रीय और राज्य शैक्षणिक प्राधिकरण नशीली दवाओं के दुरुपयोग, अवैध तस्करी और इससे होने वाली सामाजिक आर्थिक क्षति को रोकने के लिए अनिवार्य और व्यापक अध्याय शामिल करें।
e) स्कूलों और कॉलेजों को नशा मुक्त जीवन को बढ़ावा देने के लिए एंटी-ड्रग क्लब का गठन करना चाहिए।
स्ट्रीट पेडलर्स से निपटने के उपाय
नशा करने वालों और तस्करों के बीच एक महत्वपूर्ण कड़ी होने के नाते नशीली दवाओं की समस्या से निपटने के लिए स्ट्रीट पेडलर्स को रोकना महत्वपूर्ण है। स्ट्रीट पेडलर्स से निपटने के लिए, निम्नलिखित कदम उठाए जाने चाहिए:
a) स्ट्रीट पेडलर्स से समाज और बच्चों को होने वाले संभावित नुकसान के बारे में सार्वजनिक जागरूकता बढ़ाएं और पुलिस को रिपोर्ट करने के लिए प्रेरित करें।
b) गैर-सरकारी संगठन, रेजीडेंट वेलफेयर एसोसिएशन इत्यादि को स्ट्रीट पेडलर्स के बारे में पुलसि को जानकारी देने के लिए कहा जाए।
c) पुलिस को संवेदनशील बनाया जाए कि स्ट्रीट पेडलर्स से निपटना उनकी नौकरी का महत्वपूर्ण हिस्सा है।
d) पेडलर्स से निपटने के लिए स्थानीय पुलिस की क्षमता का प्रशिक्षण और निर्माण करें।
e) बड़े शहरों में, पूरे शहर में क्षेत्राधिकार के साथ पुलिस के विशेष, मोबाइल, एंटी-पैडलिंग स्क्वाड विकसित करें, जो एक हेल्पलाइन से जुड़ा हो।
f) COVID-19 रोगियों के मामले में की गई कॉन्टेक्ट ट्रेसिंग की विधि स्ट्रीट पेडलर्स पर नजर रखने के लिए इस्तेमाल की जा सकती है।
g) हिस्ट्रीशीटरों की तरह ही स्ट्रीट पेडलर्स पर निरंतर निगरानी होनी चाहिए।
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