[एनडीपीएस अधिनियम] 201 किलो गांजा जब्त करने में 1989 के स्थायी आदेश के अनुसार सैंपल नहीं लिया गया : इलाहाबाद हाईकोर्ट ने जमानत दी

Sharafat

10 Jun 2022 1:40 PM GMT

  • [एनडीपीएस अधिनियम] 201 किलो गांजा जब्त करने में 1989 के स्थायी आदेश के अनुसार सैंपल नहीं लिया गया : इलाहाबाद हाईकोर्ट ने जमानत दी

    इलाहाबाद हाईकोर्ट ने 201 किलो गांजा की तस्करी के आरोपी एनडीपीएस अधिनियम के तहत आरोपी वली हसन को इस तथ्य के मद्देनजर सशर्त जमानत दी कि गांजा का नमूना 1989 के स्थायी आदेश / निर्देश संख्या 1 के अनुसार नहीं लिया गया।

    जस्टिस चंद्र कुमार राय की खंडपीठ ने संबंधित अदालत की संतुष्टि के अनुसार आवेदक वली हसन को एक व्यक्तिगत बांड और इतनी ही राशि के दो जमानतदार पेश करने पर जमानत पर रिहा करने का आदेश दिया।

    संक्षेप में मामला

    अभियोजन पक्ष का यह मामला था कि वली हसन/अभियुक्त एक ट्रक चला रहा था, जिसे रोका गया और ट्रक से कुल 201 किलो गांजा के 91 पैकेट बरामद किए गए। आरोपी पर एनडीपीएस अधिनियम की धारा 8, 20, 29, 60, और 3 के तहत मामला दर्ज किया गया।

    आरोपी ने बचाव में कहा कि कथित प्रतिबंधित पदार्थ (गांजा) के 8 बैग (बोरा) में 91 पैकेट ट्रक के अंदर से बरामद होने का आरोप लगाया गया, लेकिन 91 पैकेटों में से एक किलोग्राम (गांजा) वजन का केवल एक पैकेट कैमिकल जांच के लिए भेजा गया।

    इसलिए, यह प्रस्तुत किया गया था कि केवल एक किलोग्राम को गांजा कहा जा सकता है, लेकिन शेष 200 किलोग्राम को गांजा या कोई अन्य प्रतिबंधित नहीं कहा जा सकता, जब तक कि उचित सैंपलिंग और उसकी कैमिकल जांच न हो।

    आरोपी के वकील ने यह तर्क दिया कि बरामदगी मेमो (recovery memo)में यह उल्लेख नहीं है कि प्रत्येक 91 पैकेट से कथित प्रतिबंधित (गांजा) का एक नमूना लिया गया और उसे रासायनिक जांच के लिए भेजा गया। इस तरह, पुलिस द्वारा अपनाई गई नमूना लेने की प्रक्रिया प्राधिकरण एनडीपीएस अधिनियम की धारा 52 ए के तहत भारत सरकार द्वारा जारी 1989 के दिनांक 13.6.1989 के स्थायी आदेश / निर्देश संख्या एक का उल्लंघन है।

    दोनों पक्षों की दलीलों पर विचार करते हुए और एनडीपीएस की धारा 37 की दोहरी शर्तों को ध्यान में रखते हुए न्यायालय ने कहा,

    " ...यह अच्छी तरह स्थापित है कि प्रतिबंधित पदार्थ का सैंपल 1989 के स्थायी आदेश/निर्देश संख्या एक दिनांक 13.6.1989 के विपरीत किया गया, जो प्रकृति में अनिवार्य है, क्योंकि वर्तमान मामले में लिये गए ऐसे नमूने के आधार पर आवेदक को दोषी ठहराए जाने की संभावना कमजोर है। भारत के संविधान के अनुच्छेद 21 के मद्देनज़र मामले की योग्यता पर कोई राय व्यक्त किए बिना एनडीपीएस अधिनियम की धारा 37 को लागू करने के बाद मेरा विचार है कि आवेदक जमानत पर रिहा होने का हकदार है। "

    केस टाइटल - वाली हसन बनाम यूपी राज्य [आपराधिक MISC। जमानत आवेदन संख्या - 2020 का 18303]

    साइटेशन : 2022 लाइव लॉ (एबी) 285

    आदेश पढ़ने/डाउनलोड करने के लिए यहां क्लिक करें



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