सीआरपीसी की धारा 309 | बॉम्बे हाईकोर्ट ने हर 15 दिन में विचाराधीन कैदियों को पेश न करने पर चिंता व्यक्त की, पूछा- क्या मजिस्ट्रेट अदालतों में वीसी सुविधा है

Shahadat

25 Sep 2023 6:00 AM GMT

  • सीआरपीसी की धारा 309 | बॉम्बे हाईकोर्ट ने हर 15 दिन में विचाराधीन कैदियों को पेश न करने पर चिंता व्यक्त की, पूछा- क्या मजिस्ट्रेट अदालतों में वीसी सुविधा है

    Bombay High Court

    बॉम्बे हाईकोर्ट ने हाल ही में हर 15 दिनों में मेट्रोपॉलिटन मजिस्ट्रेट अदालतों के समक्ष कैद कैदियों की गैर-पेशी के बारे में चिंता जताई। साथ ही अभियोजक से यह बताने के लिए कहा कि क्या मुंबई के सभी एमएम न्यायालयों में वीडियो कॉन्फ्रेंसिंग सुविधाएं उपलब्ध हैं।

    जस्टिस भारती डांगरे जमानत याचिका पर सुनवाई कर रही थीं। इस याचिका में जालसाजी मामले में आरोपी त्रिभुवनसिंग यादव को कई तारीखों पर अंधेरी में एमएम कोर्ट के सामने पेश नहीं किया गया था।

    सीआरपीसी की धारा 309 के तहत किसी आरोपी को 15 दिनों से अधिक की हिरासत में नहीं भेजा जा सकता और उसकी आगे की हिरासत को सही ठहराने के लिए उसे अदालत के समक्ष पेश किया जाना चाहिए।

    जस्टिस डांगरे ने यह देखते हुए कि उत्पादन न होना नियमित विशेषता है, जेल विभाग को इस पहलू पर हलफनामा दाखिल करने का निर्देश दिया।

    इसके बाद अतिरिक्त पुलिस महानिदेशक एवं महानिरीक्षक (जेल एवं सुधार सेवाएं), महाराष्ट्र राज्य, पुणे द्वारा अदालत के समक्ष हलफनामा पेश किया गया।

    जेल विभाग ने दावा किया कि ट्रायल कोर्ट ने तलोजा सेंट्रल जेल को आरोपी को पेश करने का निर्देश नहीं दिया। इसलिए उसे उन तारीखों पर ट्रायल कोर्ट के सामने पेश नहीं किया गया। उन्होंने बताया कि अदालत द्वारा वारंट जारी करने के बाद आरोपी को पिछले महीने अदालत में पेश किया गया।

    लोक अभियोजक अरुणा पई ने कहा कि ट्रायल कोर्ट के लिए प्रोडक्शन वारंट जारी करना अनिवार्य है। इसके अभाव में किसी भी आरोपी को अदालत के सामने पेश नहीं किया जा सकता।

    याचिकाकर्ता के वकील विनोद काशीद ने दावा किया कि यह गलत धारणा है। उन्होंने कहा कि किसी भी मामले में किसी आरोपी को एक समय में और एक बार पेशी होने पर मजिस्ट्रेट द्वारा 15 दिनों से अधिक की अवधि के लिए हिरासत में नहीं भेजा जा सकता। न्यायालय के समक्ष सुनवाई की अगली तारीख के बारे में समर्थन अगली तारीख पर न्यायालय के समक्ष उसकी पेशी सुनिश्चित करने के लिए पर्याप्त है।

    उन्होंने दावा किया कि मजिस्ट्रेट से हर आरोपी के लिए प्रोडक्शन वारंट जारी करने की उम्मीद नहीं की जाती है और प्रोडक्शन वारंट जारी होने पर ही जेल अधिकारी आरोपी को पेश करेंगे। उन्होंने राम नारायण सिंह बनाम दिल्ली राज्य और अन्य, 1953 एआईआर 277 में सुप्रीम कोर्ट के मामले पर भरोसा किया।

    तदनुसार, अदालत ने पीपी को निर्देश लेने का निर्देश दिया और एडवोकेट सत्यव्रत जोशी को एमिक्स क्यूरी के रूप में अदालत की सहायता के लिए नियुक्त किया, जिससे कानून की स्थिति और प्रक्रियात्मक पहलू का पता लगाने के बाद व्यावहारिक समाधान निकाला जा सके, क्योंकि बार-बार शिकायत होती है। इतना ही नहीं इस न्यायालय ने इस तथ्य पर भी न्यायिक संज्ञान लिया कि सूचीबद्धता की कई तारीखों पर अभियुक्तों को न्यायालय के समक्ष प्रस्तुत नहीं किया गया।”

    तब पीपी अरुणा पेड ने सुझाव दिया कि आरोपी को वीडियो कॉन्फ्रेंसिंग के जरिए भी पेश किया जा सकता है।

    जस्टिस डांगरे ने कहा,

    “उक्त पहलू पर पई द्वारा आवश्यक निर्देश प्राप्त किए जाएं और यहां तक कि यह भी सुनिश्चित किया जाए कि क्या वीडियो कॉन्फ्रेंसिंग की सुविधा फिलहाल मुंबई और उपनगरीय क्षेत्र तक सीमित प्रत्येक मजिस्ट्रेट, न्यायालय को उपलब्ध कराई गई।”

    केस टाइटल- त्रिभुवनसिंग रघुनाथ यादव बनाम महाराष्ट्र राज्य

    केस नंबर- सीआरआई जमानत आवेदन - 1836/2023

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