धारा 163ए एमवी एक्ट | व्यक्तिगत दुर्घटना कवरेज न होने पर वाहन उधार लेने वाला बीमाकर्ता से मुआवजे का दावा नहीं कर सकता: केरल हाईकोर्ट

Avanish Pathak

27 Sep 2022 8:09 AM GMT

  • केरल हाईकोर्ट

    केरल हाईकोर्ट

    केरल हाईकोर्ट ने शुक्रवार को कहा कि ऐसे मृतक के उत्तराधिकारियों को मुआवजा नहीं दिया जा सकता, जिसने उधार लेकर 'मालिक' के रूप में वाहन चलाया, जिसकी जल्दबाजी और लापरवाही के कारण खुद उसकी मौत हो गई।

    जस्टिस सोफी थॉमस ने मृतक के उत्तराधिकारियों को मुआवजा देने के मोटर दुर्घटना न्यायाधिकरण के आदेश को खारिज करते हुए कहा, "चूंकि उसने स्वयं अपकृत्य किया था, उसके कानूनी उत्तराधिकारी दावा नहीं कर सकते हैं"।

    मौजूदा मामले में मृतक 19 फरवरी 2007 को एक सड़क दुर्घटना में शामिल था। वह 5वें प्रतिवादी की मोटरसाइकिल चला रहा था। विपरीत दिशा से एक बस को देखते ही उसने वाहन घुमाया और टक्कर में उसकी मौत हो गई।

    जब मृतक के कानूनी उत्तराधिकारी (दावेदार/प्रतिवादी 1-4) ने मोटर दुर्घटना दावा न्यायाधिकरण, अलाप्पुझा से संपर्क किया और मोटर वाहन संशोधन अधिनियम, 1994 की धारा 163ए सहपठित केरल मोटर वाहन नियमावली के नियम 371 के तहत मुआवजे का दावा किया तो ट्रिब्यूनल ने 3,41,802/- रुपये का मुआवजा दिया। जिसके बाद मौजूदा अपील दायर की गई।

    अपीलकर्ताओं की ओर से एडवोकेट लाल जॉर्ज और लक्ष्मी वी परमेश्वरन द्वारा तर्क दिया गया कि चूंकि दुर्घटना स्वयं मृतक की लापरवाही के कारण हुई थी और वह अपकृत्यकर्ता था, इसलिए धारा 163 एमवी अधिनियम के तहत कानूनी उत्तराधिकारियों को कोई मुआवजा प्रदान नहीं किया जाना चाहिए। विरोधी पक्ष ने तर्क दिया कि मृतक वाहन उधार लेने पर 'मालिक' के स्‍थान पर स्वयं आ गया था, और इसलिए उसे तीसरे पक्ष के रूप में नहीं माना जा सकता है।

    कोर्ट ने मामले में रामखिलाडी और अन्य बनाम यूनाइटेड इंडिया इंश्योरेंस कंपनी और अन्य (2020) पर भरोसा किया, जिसके तहत सुप्रीम कोर्ट ने कहा था कि मोटर वाहन अधिनियम की धारा 163ए के तहत वाहन के मालिक और बीमा कंपनी के खिलाफ दावा नहीं किया जा सकता है, जिसे स्वयं मृतक द्वारा चलाया जा रहा था।

    इस आलोक में कोर्ट ने मौजूदा मामले में कहा,


    "वाहन का मालिक या उसका कानूनी प्रतिनिधि या वाहन का उधारकर्ता उस वाहन के बीमाकर्ता से मुआवजे के लिए दावा नहीं कर सकता क्योंकि वह तीसरा पक्ष नहीं है"।

    अदालत ने पाया कि वाहन के मालिक और बीमाकर्ता बीमा के अनुबंध के लिए पक्ष हैं, और बीमा का अनुबंध विशेष रूप से मालिक के व्यक्तिगत दुर्घटना कवर के लिए प्रदान किया गया था। इस मामले में हालांकि बीमा पॉलिसी का अस्तित्व एक निर्विवाद तथ्य है, कोर्ट ने पाया कि यह सुनिश्चित नहीं किया जा सकता है कि क्या मालिक के लिए व्यक्तिगत दुर्घटना कवरेज थी।

    कोर्ट ने कहा,

    "यदि बीमा पॉलिसी में आपत्तिजनक वाहन के मालिक के लिए व्यक्तिगत कवरेज था, तो कंपनी उस कवरेज की सीमा तक उत्तरदायी है। लेकिन, चूंकि अपीलकर्ता या प्रतिवादी आपत्तिजनक मोटरसाइकिल की बीमा पॉलिसी को पेश करने में विफल रहे, इसलिए यह न्यायालय मुआवजे को तय करने में असमर्थ हैं..."।

    यह देखते हुए कि मृतक स्वयं अपकृत्यकर्ता था, अदालत ने अपील की अनुमति दी और ट्रिब्यूनल के फैसले को रद्द कर दिया।

    केस टाइटल: द न्यू इंडिया इंश्योरेंस कंपनी लिमिटेड बनाम राजेश्वरी और अन्य।

    साइटेशन: 2022 लाइव लॉ (केर) 501

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