असम सीएम पर टिप्पमी मामले में पत्रकार अभिसार शर्मा को राहत, 17 नवंबर तक बढ़ी अंतरिम सुरक्षा
Shahadat
27 Oct 2025 3:23 PM IST

गुवाहाटी हाईकोर्ट ने पत्रकार अभिसार शर्मा को असम के मुख्यमंत्री हिमंत बिस्वा सरमा पर सांप्रदायिक राजनीति करने का आरोप लगाने वाली उनकी कथित टिप्पणी को लेकर दर्ज FIR के संबंध में पूर्व में दी गई अंतरिम सुरक्षा 17 नवंबर तक बढ़ा दी।
जस्टिस शमीमा जहान की पीठ ने शर्मा को राहत की अवधि बढ़ाई, क्योंकि राज्य सरकार ने उच्च न्यायालय के 19 सितंबर के आदेश के अनुसार केस डायरी प्रस्तुत नहीं की।
बता दें, शर्मा ने हाईकोर्ट का रुख तब किया जब कुछ दिन पहले ही सुप्रीम कोर्ट ने असम पुलिस द्वारा धारा 152 (राष्ट्र की संप्रभुता को खतरे में डालना), 196 (विभिन्न समूहों के बीच शत्रुता को बढ़ावा देना), और 197 (राष्ट्रीय एकता और सुरक्षा के लिए हानिकारक आरोप) के तहत दर्ज FIR को चुनौती देने से इनकार किया।
हालांकि, सुप्रीम कोर्ट ने उन्हें उचित राहत के लिए हाईकोर्ट का रुख करने हेतु 4 सप्ताह के लिए अंतरिम सुरक्षा प्रदान की थी।
19 सितंबर को सिंगल जज ने शर्मा को दी गई राहत की अवधि 22 अक्टूबर तक बढ़ाई और राज्य के वकील को मामले की केस डायरी पेश करने का निर्देश दिया।
गौरतलब है कि पिछले महीने सुनवाई के दौरान, शर्मा की ओर से सीनियर वकील कमल नयन चौधरी ने दलील दी कि याचिकाकर्ता पत्रकार हैं, जो यूट्यूब पर सामग्री प्रकाशित करते हैं और उन पर केवल आलोचनात्मक राय व्यक्त करने के लिए मामला दर्ज किया गया।
यह तर्क देते हुए कि लोकतंत्र में असहमति स्वीकार की जानी चाहिए, उन्होंने इस प्रकार दलील दी:
"अगर सरकार की हर आलोचना को देशद्रोह माना जाएगा तो यह लोकतंत्र के लिए एक काला दिन होगा। हमें सदमा सहने की क्षमता होनी चाहिए... याचिकाकर्ता केवल झारखंड में मुख्यमंत्री द्वारा कही गई बात का जिक्र कर रहे थे। जब हम किसी व्यक्ति की आलोचना करते हैं, तो वह सरकार की आलोचना नहीं होती।"
यह भी तर्क दिया गया कि शर्मा का बयान केवल यह सवाल उठाने के लिए है कि क्या 'ध्रुवीकरण' हुआ है और सरकारी कामकाज की ऐसी आलोचना BNS की धारा 152 या 197 के तहत अपराध नहीं बन सकती।
संक्षेप में मामला
आलोक बरुआ नामक व्यक्ति ने FIR दर्ज कराई, जिसमें आरोप लगाया गया कि शर्मा ने असम और केंद्र सरकार, दोनों का उपहास करने वाला एक वीडियो अपलोड किया।
बरुआ ने दावा किया कि शर्मा की टिप्पणी निर्वाचित सरकारों को बदनाम करने और सांप्रदायिक भावनाओं को भड़काने के दुर्भावनापूर्ण इरादे से की गई।
यह आरोप लगाया गया कि शर्मा ने "राम राज्य" के सिद्धांत का मज़ाक उड़ाया, कहा कि सरकार "केवल हिंदू-मुस्लिम ध्रुवीकरण पर टिकी है", और मुख्यमंत्री पर सांप्रदायिक राजनीति करने का आरोप लगाया।
शिकायतकर्ता के अनुसार, वीडियो में सांप्रदायिक विभाजन पैदा करने, भावनाओं को भड़काने, और कानूनी रूप से स्थापित अधिकारियों के प्रति अविश्वास को बढ़ावा देने के साथ-साथ धार्मिक समूहों के बीच दुश्मनी पैदा करने की क्षमता है।

