"असली अपराधी अभी भी फरार हैं": केरल हाईकोर्ट ने बंगाली प्रवासी हत्या मामले में जांच के आदेश दिए

LiveLaw News Network

24 Jun 2021 6:16 AM GMT

  • असली अपराधी अभी भी फरार हैं: केरल हाईकोर्ट ने बंगाली प्रवासी हत्या मामले में जांच के आदेश दिए

    एक डिवीजन बेंच ने सोमवार को भारतीय संविधान के अनुच्छेद 226 के तहत अपनी पूर्ण शक्तियों का प्रयोग करते हुए एक प्रवासी श्रमिक की हत्या के मामले में फिर से अन्वेषण का निर्देश दिया। कोर्ट ने कहा कि पिछला अन्वेषण एक साथी प्रवासी मजदूर को फंसाने का एक प्रहसन था।

    अपीलकर्ता संजय उरांव ने अपने दोस्त हाफिजुल मोहम्मद की मौत के आरोप में उसे दोषी ठहराने और सजा सुनाने के अतिरिक्त सत्र न्यायालय के आदेश को चुनौती दी। आरोपी और मृतक दोनों पश्चिम बंगाल के जलपाईगुड़ी जिले के रहने वाले हैं और एक फर्नीचर और वुडक्राफ्ट उद्योग में कर्मचारी हैं।

    अभियोजन पक्ष ने आरोपी के खिलाफ लास्ट सीन टुगेदर थ्योरी, घटना के पीछे के मकसद और घटना स्थल से थोड़ी दूर पर बरामद हुई आरोपी के पैंट पर लगे खून मृतक के ब्लड ग्रुप के आधार पर कार्यवाही की गई है।

    अपीलकर्ता की ओर से पेश हुए एडवोकेट पी. पी. पद्मलायन ने जोरदार तर्क दिया कि पूरा अन्वेषण वास्तविक दोषियों को बचाने और आरोपी (गरीब प्रवासी मजदूर) को झूठा फंसाने के लिए किया गया है।

    अपीलकर्ता ने दोषपूर्ण जांच को साबित करने के लिए कई तर्क दिए। शुरू में कहा कि हत्या का कथित मकसद साबित नहीं हुआ। यह भी तर्क दिया गया कि अपराध की सूचना मिलने पर पुलिस उपनिरीक्षक मौके पर नहीं पहुंचे। इसके अलावा प्राथमिकी दर्ज करने में अत्यधिक देरी हुई। इसके अतिरिक्त, अभियोजन पक्ष आरोपी के अपराध की ओर इशारा करते हुए परिस्थितियों की श्रृंखला में जोड़ने वाले लिंक को साबित करने में विफल रहा।

    अपील में इन आधारों पर प्रार्थना की गई कि आरोपी के खिलाफ पारित दोषसिद्धि और सजा को गैर-कानूनी और अस्थिर घोषित किया जाए और पलटा जाए।

    न्यायमूर्ति के. विनोद चंद्रन और न्यायमूर्ति एम.आर. अनीता ने अपील की अनुमति देते हुए अपीलकर्ता के साथ सहमति व्यक्त की कि पूरा अन्वेषण एक तमाशा था।

    इस निष्कर्ष पर आने के लिए निम्नलिखित कारणों का हवाला दिया;

    एफआईआर दर्ज करने में देरी

    वर्तमान मामले में एफआइआर दर्ज करने में छह घंटे की देरी हुई। कोर्ट ने कहा कि हालांकि एफआईआर दर्ज करने में केवल देरी अभियोजन मामले के लिए घातक नहीं है, यह तथ्य कि प्राथमिकी देर से दर्ज की गई थी, एक प्रासंगिक कारक है जिस पर अदालत को ध्यान देना चाहिए। इस देरी के लिए अभियोजन पक्ष द्वारा दिया गया स्पष्टीकरण बेंच के अनुसार संभावनाओं से भरा पाया गया है।

    अदालत ने कहा कि,

    "एफआईआर दर्ज करने में देरी हमें एक स्पष्ट असंगति के रूप में प्रभावित करती है और निश्चित रूप से देरी अभियोजन मामले के लिए अत्यधिक घातक है।"

    हत्या का मकसद साबित न कर पाना

    डिवीजन बेंच ने यह भी कहा कि कथित घटना के पीछे का मकसद बेहद कमजोर है और साबित नहीं हुआ है। हालांकि अभियोजन पक्ष ने आरोपी और मृतक के बीच छोटे-मोटे झगड़ों का हवाला दिया है, लेकिन यह किसी भी दोस्ती में सामान्य है और निश्चित रूप से हत्या का मकसद नहीं हो सकता है। इस बात पर सहमति जताते हुए कि हत्या के मकसद को स्थापित करने के लिए और भी बहुत कुछ सबूत होने चाहिए।

    बेंच ने कहा कि,

    "यह बहुत कम संभावना है कि इस तरह की किसी करीबी दोस्त द्वारा किया जाए, वह भी इस तरह के मामूली कारणों से। हमारा विचार है कि अभियोजन पक्ष द्वारा पेश किया गया मकसद काफी अविश्वसनीय और काल्पनिक है और इसलिए इसे पर्याप्त रूप से स्वीकार नहीं किया जा सकता है। आरोपी के अपराध को सबूत करने के लिए सबूत पर्याप्त नहीं है।"

    अपीलकर्ता की पैंट से कोई साक्ष्य मूल्य नहीं मिला

    अभियोजन पक्ष ने अदालत के समक्ष मृतक के ब्लड ग्रुप वाली पैंट की एक जोड़ी पेश की थी, जिसमें दावा किया गया था कि वह आरोपी की है। यह प्रस्तुत किया गया कि यह श्रमिकों द्वारा उपयोग किए जाने वाले शौचालय के पास मालिक के रबर एस्टेट से बरामद किया गया था, जो एक खुली जगह है।

    हालांकि खुली जगह से प्राप्त सबूतों को खारिज करने का कारण नहीं है, लेकिन महत्वपूर्ण सवाल यह है कि क्या उस पैंट को वहां किसी ने जानबूझकर रखा था। जांच के दौरान आरोपी ने जवाब दिया कि यह वह पैंट नहीं है जिसे उसने उस तारीख को पहना था। ऐसी परिस्थितियों में उसे ब्लड की उपस्थिति की व्याख्या करने का अवसर दिया जाना चाहिए था।

    अदालत ने कहा कि,

    "उसके अभाव में उस परिस्थिति पर कोई भरोसा नहीं किया जा सकता है। समूह के निर्धारण के लिए आरोपी का ब्लड भी जांच के लिए नहीं भेजा गया था। उपरोक्त परिस्थितियों में किसी भी सबूत यानी आरोपी की पैंट के आधार पर जिम्मेदार नहीं ठहराया जा सकता है। "

    तथ्य लास्ट सीन थ्योरी के दावे का समर्थन नहीं करते हैं

    डिवीजन बेंच ने स्वीकार किया कि 'आखिरी बार साथ में देखा गया' सिद्धांत हमेशा विश्वसनीय नहीं होता है और प्रत्येक मामले के तथ्यों और परिस्थितियों पर समय अंतराल का टेस्ट किया जाना चाहिए। वर्तमान मामले में गवाहों के बयानों के अनुसार आरोपी और मृतक को दोपहर 3.00 बजे हॉल रूम में देखा गया था, लेकिन मृतक शाम 5.45 बजे मृत पाया गया और अभियोजन पक्ष ने स्वीकार किया कि आरोपी उस समय हॉल रूम में मौजूद नहीं था।

    अदालत ने एक निष्कर्ष पर भी ध्यान दिया कि सभी गवाह उद्योग में कर्मचारी हैं और हत्या के आरोपी को फंसाने के लिए ठोस प्रयास किए जाने की संभावना है। इसके अलावा मृत्यु का सही समय भी समझ में नहीं आ रहा है। नतीजतन, कोर्ट ने लास्ट सीन टुगेदर थ्योरी पर कोई भरोसा करने से इनकार कर दिया।

    आरोपियों की गिरफ्तारी में विसंगतियां

    अभियोजन पक्ष ने दावा किया कि घटना के तीन दिन बाद आरोपी को पंडालम निजी बस स्टैंड से गिरफ्तार किया गया, लेकिन अपीलकर्ता ने इससे इनकार किया है। वकील का कहना है कि आरोपी को घटना के उसी दिन पुलिस ने हिरासत में ले लिया था और उसकी गिरफ्तारी दर्ज होने तक तीन दिनों तक पुलिस स्टेशन में था।

    कोर्ट ने कहा कि अगर आरोपी को बस स्टैंड से गिरफ्तार किया गया तो उसका इरादा वहां से भागने का रहा होगा। इस मामले में, उसके पास कुछ पैसे, उसका व्यक्तिगत पहचान पत्र, एक बैग या पर्स होना चाहिए था, जबकि गिरफ्तारी के समय उसके पास से कुछ भी जब्त नहीं किया गया था। इसलिए गिरफ्तारी के अभियोजन पक्ष के संस्करण को स्वीकार नहीं किया जा सकता है और यह अपीलकर्ता के इस तर्क की पुष्टी करता है कि उसे घटना के दिन ही पुलिस ने हिरासत में ले लिया था।

    मृतक और आरोपी के मोबाइल फोन जब्त करने में विफलता

    कोर्ट ने पाया कि उप निरीक्षक, जिसने अधिकांश जांच की, ने मृतक या आरोपी के मोबाइल फोन को जब्त नहीं किया। उनके मोबाइल फोन से यह साबित हो जाता कि घटना के दौरान आरोपी घटनास्थल पर था या नहीं।

    कोर्ट ने यह नोट किया कि जांच अधिकारी इन कारकों को अनदेखा नहीं कर सकता है और यह अधिकारी द्वारा किसी की सहायता करने के लिए भौतिक तथ्यों को जानबूझकर दबाने का मामला हो सकता है।

    जांच में भौतिक तथ्यों का दमन

    अभियोजन पक्ष ने तथ्यों की एक श्रृंखला को दबाने का प्रयास किया। उदाहरण के लिए यह देखा गया कि इलाके के एक स्वतंत्र गवाह और हॉल में रहने वाले बंगाल के दो श्रमिकों का हवाला न देना तथ्यों को दबाने और अभियोजन एजेंसी की दुर्भावनापूर्ण मंशा के साथ उनकी इच्छा के अनुसार एक मामले को गलत तरीके से पेश करने का मकसद हो सकता है।

    डिवीजन बेंच ने कहा कि अभियोजन पक्ष द्वारा शुरू से ही तथ्यों को दबाने का प्रयास तथ्यों और परिस्थितियों से काफी हद तक समझने योग्य है, जो अन्वेषण के बारे में गंभीर संदेह पैदा करता है।

    सब इंस्पेक्टर का संदिग्ध आचरण

    यह साबित करने के लिए रिकॉर्ड पर सबूत हैं कि पुलिस उप निरीक्षक अपराध दर्ज करने के बाद घटना स्थल पर आया था। हालांकि सब-इंस्पेक्टर ने इस तथ्य को दबाने का प्रयास किया, जो उनके अत्यधिक संदिग्ध आचरण और कर्तव्य की स्पष्ट उपेक्षा के लिए जिम्मेदार है। यदि वह वास्तव में घटनास्थल का दौरा करता और तो सच और झूठ आसानी से पता चल जाता।

    कोर्ट ने कहा कि सभी तथ्यों और परिस्थितियों से पता चलता है कि सब इंस्पेख्टर सुस्त है और यह जानने के बावजूद कि एक गरीब युवा प्रवासी मजदूर को बेरहमी से पीटा गया और मर गया, फिर भी वह अपने आधिकारिक कर्तव्यों का निर्वहन करने में विफल रहा। इसलिए सब इंस्पेक्टर के खिलाफ विभागीय जांच के आदेश दिए जाते हैं।

    कोर्ट ने कहा कि चूंकि आरोपी के अपराध को साबित करने के लिए कोई सबूत नहीं है, इसलिए आरोपी के खिलाफ सुनाई गई सजा को खारिज किया जाता है और ठीक से अन्वेषण न करने के कारण और सबूतों की कमी के आधार पर आरोपी को बरी किया जाता है।

    हालांकि इसके बाद डिवीजन बेंच ने महत्वपूर्ण टिप्पणियां कीं।

    प्रवासी मजदूरों की दुर्दशा

    कोर्ट ने टिप्पणी की कि इस मामले में आरोपी और मृतक प्रवासी मजदूर हैं, जो समाज के हाशिए के तबके से ताल्लुक रखते हैं। केरल ऐसे वर्गों के प्रवासी मजदूरों के लिए एक स्वर्ग है, जो कठिन शारीरिक श्रम करते हैं।

    कोर्ट ने राज्य की विकासात्मक गतिविधियों में इनके योगदान को महत्व देते हुए कहा कि वे विषम परिस्थितियों और सीमित सुविधाओं में रहते हैं और काम करते हैं।

    कोर्ट ने कहा कि,

    "ये श्रमिक अपने परिवार के पालन पोषण के लिए घर से बहुत दूर आते हैं। उनके जीवन और संपत्ति के लिए पर्याप्त सुरक्षा के साथ निडर होकर काम करने के लिए एक वातावरण बनाया जाना चाहिए। "

    कोर्ट ने कहा कि वर्तमान मामला ऐसे मजदूरों की दुर्दशा का एक विशिष्ट उदाहरण है। यह आरोपी पहले ही अपने ही दोस्त की हत्या के आरोप में पांच साल से अधिक समय से जेल में बंद है।

    पीठ ने कहा कि उचित, निष्पक्ष और प्रभावी जांच के अभाव में इस मामले में आरोपी को दोषी ठहराया गया जो मृतक का करीबी दोस्त है। इस मामले के असली अपराधी अब भी फरार हैं और आजीविका कमाने के लिए अपनी जमीन छोड़कर चले गए एक गरीब मजदूर की हत्या अनसुलझी हुई है। इसे दोहराया नहीं जाना चाहिए।

    आरोपियों के बरी होने से सामंतवाद के ऐसे अवशेषों के पुनरुत्थान को बढ़ावा मिलेगा, जिसके परिणामस्वरूप निर्दोष हाशिए के प्रवासियों को उनके आसपास के हर अपराध के लिए दोषी ठहराया जाएगा। इसलिए, इस न्यायालय ने उपरोक्त मामले में पुन: अन्वेषण का आदेश दिया।

    कोर्ट ने नतीजतन पहले के अन्वेषण में एकत्र किए गए तथ्यों में से किसी पर भरोसा किए बिना पुन: अन्वेषण का आदेश दिया ताकि न्याय मिल सके। एक वरिष्ठ पुलिस अधिकारी की अध्यक्षता में एक विशेष जांच दल जो उपाधीक्षक के पद से नीचे का न हो, को राज्य सरकार द्वारा गठित करने का निर्देश दिया। कोर्ट ने जांच एजेंसी को इस साल के अंत तक जल्द से जल्द कार्यवाही पूरी करने का निर्देश दिया है।

    केस का शीर्षक: संजय उरांव बनाम केरल राज्य

    आदेश की कॉपी यहां पढ़ें:



    Next Story