रेलवे सेवा पेंशन नियम | जिस छुट्टी के लिए वेतन देय नहीं, उसे 'योग्य सेवा' में नहीं गिना जाएगा: आंध्र प्रदेश हाईकोर्ट

Shahadat

30 Aug 2023 6:13 AM GMT

  • रेलवे सेवा पेंशन नियम | जिस छुट्टी के लिए वेतन देय नहीं, उसे योग्य सेवा में नहीं गिना जाएगा: आंध्र प्रदेश हाईकोर्ट

    आंध्र प्रदेश हाईकोर्ट ने माना कि रेलवे सेवा पेंशन नियम 1993 के तहत 'बिना वेतन छुट्टी' (एलडब्ल्यूपी) की अवधि को पेंशन लाभ के लिए अर्हक सेवा (Qualifying Service) के रूप में नहीं गिना जा सकता।

    हाईकोर्ट ने कहा,

    "अनुपस्थिति की अवधि, जिसे बिना वेतन छुट्टी के रूप में माना जाता है, नियम 14 (x), (रेलवे सेवा पेंशन नियम, 1993) के तहत कवर नहीं की जा सकती। हालांकि, सवाल यह है कि क्या ऐसी अवधि नियम 36 के तहत कवर की जाएगी। इसे हम पहले ही कर चुके हैं। साथ ही इससे ऊपर माना गया है कि जिस छुट्टी के लिए वेतन देय नहीं है, उसे नियम 36 के मद्देनजर अर्हक सेवा के रूप में नहीं गिना जाएगा।"

    जस्टिस रवि नाथ तिलहरी और जस्टिस बी.वी.एल.एन चक्रवर्ती की खंडपीठ केंद्र द्वारा दायर रिट याचिका पर फैसला दे रही थी, जिसमें केंद्रीय प्रशासनिक न्यायाधिकरण (कैट) के आदेश को चुनौती दी गई। इस आदेश में 1993-1994 और 1997-2002 की छुट्टी अवधि पर विचार करने का निर्देश दिया गया। याचिका में निजी प्रतिवादी (पेंशन चाहने वाले) को पेंशन लाभ के लिए 'अर्हक सेवा' के रूप में और आगे बकाया सहित सभी पेंशन लाभ जारी करने का निर्देश दिए जाने की मांग की गई।

    प्रतिवादी ने कैट के समक्ष तर्क दिया कि रेलवे अधिकारियों ने अवैध रूप से इस आधार पर उसकी पेंशन रोक दी थी कि उपरोक्त अवकाश अवधि को प्रदान की गई सेवा के रूप में नहीं माना जा सकता है। उन्होंने प्रस्तुत किया कि उन्होंने कुल 22 वर्षों की सेवा की है, और यदि उनकी छुट्टी की अवधि पर विचार नहीं किया गया, तो वह पेंशन लाभ का दावा करने के लिए प्रदान की गई न्यूनतम सेवा को पूरा नहीं कर पाएंगे।

    कैट ने पेंशन नियमों के नियम 14(x) का हवाला दिया और माना कि चूंकि रेलवे विभाग ने 5 साल की छुट्टी लेने के लिए प्रतिवादी के खिलाफ कोई अनुशासनात्मक कार्रवाई नहीं की, और चूंकि छुट्टी को 'बिना वेतन छुट्टी' के रूप में नियमित किया गया, इस पर विचार किया जाना चाहिए। कैट ने आगे कहा कि नियम 14(x) केवल अधिकृत छुट्टी की निरंतरता में अनुपस्थिति की अवधि यानी 'ओवरस्टे' को योग्यता अवधि के रूप में गिने जाने से रोकता है।

    हाईकोर्ट ने माना कि हालांकि नियम 14 (x) में कहा गया कि अधिकृत छुट्टियों को अर्हक सेवा के रूप में गिना जाएगा, लेकिन नियम 36 को पढ़ने से यह स्पष्ट हो जाता है कि बिना वेतन के अवकाश भले ही अधिकृत हो, उसको अर्हता प्राप्त सेवा के रूप में नहीं माना जा सकता है। यह माना गया कि कैट ने केवल नियम 14(x) पर भरोसा करके गलती की कि दी गई छुट्टी अधिकृत छुट्टी है, जिसे पेंशन लाभ के लिए अर्हक सेवा माना जाना चाहिए।

    "हम पहले ही कह चुके हैं कि जिस छुट्टी के लिए वेतन देय नहीं है, उसे नियम 36 के मद्देनजर, अर्हता सेवा के रूप में नहीं गिना जाएगा। इसलिए, भले ही नियम 14 (x) आकर्षित न हो, जैसा कि विद्वान का कहना है प्रथम प्रतिवादी के वकील के अनुसार अभी भी अवकाश की अवधि, जिसके लिए अवकाश वेतन देय नहीं है, को अर्हक सेवा में नहीं गिना जा सकता है।"

    कोर्ट ने कहा,

    "हमारे विचार में नियम, 1993 का नियम 36 आकर्षित होता है। कैट ने नियम 36 पर विचार नहीं किया और केवल नियम, 1993 के नियम 14 (x) पर विचार करते हुए अनुपस्थिति/छुट्टी की अवधि को शामिल करने का निर्देश दिया। हालांकि अनुपस्थिति की अवधि को छुट्टी के रूप में माना जाता है, लेकिन यह बिना वेतन की छुट्टी है; जिसके लिए छुट्टी का वेतन देय नहीं है। परिणामस्वरूप इसे अर्हक सेवा के लिए नहीं गिना जाएगा।''

    केस टाइटल: यूओआई बनाम एस.पी. भट्टाचार्य और अन्य।

    याचिकाकर्ता के वकील: एम श्रीनिवास (केंद्र सरकार के वकील) और प्रतिवादी के वकील: एम. नायडू

    केस नंबर: WP 9321/2011

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