गुजरात हाईकोर्ट की चेतावनी, निजी अस्पतालों को COVID 19 के संकट का इस्तेमाल पैसे कमाने के लिए करते हुए पाया गया तो होगी सख्त कार्रवाई
LiveLaw News Network
1 Jun 2020 12:41 PM IST
गुजरात हाईकोर्ट ने शुक्रवार को कहा कि COVID-19 के कारण पैदा हुए संकट के दौर में निजी चिकित्सा संस्थानों से उम्मीद है कि वो अपनी योग्यता साबित करें। कोर्ट ने राज्य सरकार को निर्देश दिया कि वो निजी अस्पतालों पर कड़ी नजर रखे ताकि यह सुनिश्चित हो सके कि ये संस्थान COVID-19 रोगियों का आर्थिक शोषण न करें।
चीफ जस्टिस विक्रम नाथ और जस्टिस जेबी पारदीवाला की पीठ ने कहा, "संकट के समय में जब लोग मर रहे होते हैं, तो एसोसिएशन को एक रुपये का भी लाभ कमाने के बारे में नहीं सोचना चाहिए। निजी अस्पतालों के पास इस महामारी से लड़ने के लिए पर्याप्त बुनियादी ढांचा, सामग्री और वित्तीय संसाधन हैं। सभी अस्पताल चाहे वे निजी हों या सार्वजनिक नैतिक एजेंट माने जाते हैं, इसलिए उनकी नैतिक जिम्मेदारी है।"
कोर्ट ने ये टिप्पणियां COVID-19 संकट से संबंधित एक मामले जारी अपने पिछले आदेश पर स्पष्टीकरण देते हुए की। 14 मई को हाईकोर्ट ने निजी अस्पतालों को रोगियों से "मोटी फीस" वसूलने से रोक दिया था और कहा था कि आदेश का उल्लंघन करने वालों के खिलाफ लाइसेंस रद्द करने समेत कड़ी कार्रवाई की जाएगी।
शुक्रवार को जब इस मामले की सुनवाई हुई तो अहमदाबाद मेडिकल एसोसिएशन ने "मोटी फीसी" जैसे शब्द का इस्तेमाल करने पर दुख प्रकट किया। एसोसिएशन ने दलील दी कि निजी अस्पतालों ने पहले ही अपना चार्ज 30 फीसदी तक कम कर दिया, और इस फीसी को "मोटी फीस" नहीं कहा जा सकता है।
अपने आदेश को स्पष्ट करते हुए बेंच ने कहा,
"कोर्ट ने जो कहना चाहता है, वह यह है कि इस शहर के सभी नागरिक निजी/ कॉर्पोरेट अस्पतालों की फीस वहन करने में सक्षम नहीं हो सकते हैं। यदि सिविल अस्पताल और एसवीपी अस्पताल में रोगियों को जगह नहीं मिल पाएगी तो उनके पास निजी अस्पताल में जाने के अलावा कोई और विकल्प नहीं है। और ऐसी स्थिति में रोगियों के लिए उनकी हालात बाधा नहीं बननी चाहिए। स्वास्थ्य का अधिकार एक मौलिक अधिकार है और राज्य को यह सुनिश्चित करना है कि किसी नागरिक भी नागरिका के अधिकार का उल्लंघन न हो।
... लेकिन संकट की इस स्थिति में भी हमने किसी निजी/ कॉर्पोरेट अस्पतालों के कामकाज और प्रशासन में हस्तक्षेप नहीं किया होता, हालांकि, आज की तारीख में जैसी स्थिति है, ऐसी में राज्य सरकार के पास COVID-19 रोगियों के इलाज के लिए निजी/कॉर्पोरेट अस्पतालों को नामित करने के लिए अलावा कोई अन्य विकल्प नहीं था।"
कोर्ट ने इस तथ्य पर भी ध्यान दिया कि निजी/ कॉरपोरेट अस्पताल अपने चार्ज को 30 फीसदी तक कम करने के लिए सहमत हो गए थे और अब वे निजी बेड (B श्रेणी) के लिए 10 फीसदी और HDU के लिए 5 फीसदी तक कटौती करने के लिए सहमत हैं।
14 मई के आदेश में हाईकोर्ट ने निजी अस्पतालों को रोगियों को एडमिट करने के एवज में एडवांस की मांग करने से भी रोक दिया था और निर्देश दिया था कि रोगियों से केवल आधार कार्ड और पैन कार्ड का विवरण मांगा जाए और यदि बाद में पैन कार्ड के विवरण से पता चले कि रोगी भुगतान करने में सक्षम है तो उसी अनुसार राशि वसूल की जा सकती है।
कोर्ट ने अब अपने आदेश के इस हिस्से को संशोधित किया है और स्पष्ट किया है,
"सिविल अस्पताल या एसवीपी अस्पताल अगर किसी मरीज को किसी निजी/ कॉर्पोरेट अस्पताल को रीफर करता है तो उससे कोई एडवांस नहीं लिया जाएगा। लेकिन, अगर कोई मरीज सीधे निजी /कॉर्पोरेट अस्पताल में COVID-19 के इलाज के लिए आता है, तो ऐसी परिस्थिति में संबंधित अस्पताल के पास उचित एडवांस की मांग करने का विपल्प उपलब्ध रहेगा। उसके बाद आवश्यकता अनुरूप चरणों में मांग बढ़ाएगा। "
हालांकि, पीठ ने आगाह किया कि किसी भी व्यक्ति के इलाज से केवल इनकार नहीं किया जाना चाहिए कि उसके पास पैसे नहीं है।
"ऐसा नहीं होना चाहिए कि वित्तीय बाधा के कारण, किसी रोगी को बिना पर्याप्त चिकित्सा उपचार के रहना पड़े। यदि ऐसा होता है तो यह सबसे खराब होगा। जैसा कि हमने कहा कि संकट के इन समय में चिकित्सा बिरादरी को अपना बेहतरीन प्रदर्शन करने की आवश्यकता है। चिकित्सा एक मानवीय पेशा है।"
निजी अस्पतालों की इस दलील कि अस्पताल को चलाने और रोगियों को सर्वोत्तम उपचार प्रदान करने के निए उन्हें बहुत अधिक खर्च करना पड़ता है, आदेशा में में संशोधन किया गया था।
मामले में विपक्षी वकीलों ने आरोप लगाया कि निजी अस्पताल रोगियों को लगातार परेशान कर रहे है, जिस पर बेंच ने उन्हें रिकॉर्ड पर पर्याप्त सबूत रखने के लिए कहा, जिससे उल्लंघन का पता चल सके और अदालत ऐसे अस्पताल के खिलाफ कार्रवाई कर सके।
न्यायालय ने यह भी चेतावनी दी कि यदि निजी अस्पतालों को रोगियों का शोषण करता पाया गया तो गया तो सख्त कार्रवाई शुरू की जाएगी
उक्त आदेश के अन्य पहलुओं को पढ़ने के लिए क्लिक करें:
Gujarat HC Asks ICMR To Explain Rationale Behind COVID-19 Testing Policy
मामले का विवरण:
केस टाइटल: सूओ मोटो बनाम गुजरात राज्य
केस नं: WP PIL No 42/2020
कोरम: मुख्य न्यायाधीश विक्रम नाथ और न्यायमूर्ति जेबी पारदीवाला
प्रतिनिधित्व: एडवोकेट अमित पांचाल (अहमदाबाद मेडिकल एसोसिएशन के लिए) साथ में वरिष्ठ अधिवक्ता सोपारकर; एडवोकेट यतिन ओझा, अंशीन देसाई और बृजेश त्रिवेदी (उत्तरदाताओं के लिए)