ऊंची क्वालि‌फिकेशन में यह अनुमान निहित है कि उम्‍मीदवार के पास ‌निचली क्वालिफिकेशन है, जब तक रिक्रूटर ने कोई और शर्त न रखी होः केरल हाईकोर्ट

Avanish Pathak

30 Sept 2022 12:08 PM IST

  • केरल हाईकोर्ट

    केरल हाईकोर्ट

    केरल हाईकोर्ट ने बुधवार को कहा कि चयन प्रक्रिया में किसी उम्मीदवार की ऊंची क्वालिफिकेशन में यह अनुमान निहित होता है कि उक्त पद के लिए उम्मीदवार के पास निम्न योग्यता है।

    जस्टिस पीबी सुरेश कुमार और जस्टिस सीएस सुधा की खंडपीठ ने कहा कि उम्मीदवार के पास आवश्यक योग्यता यानी डिप्लोमा नहीं है, लेकिन ऊंची योग्यता है, ऐसी स्थिति में उम्मीदवार को अयोग्य घोषित नहीं किया जा सकता है।

    मामला

    सेंट्रल यूनिवर्सिटी ऑफ केरल में फार्मासिस्ट के एकमात्र रिक्त पद के ल‌िए आवेदन आमंत्रित किए गए थे। उक्त पद की पात्रता में निर्धारित योग्यता 10 + 2 के साथ-साथ फार्मेसी में 2 साल का डिप्लोमा और राज्य फार्मेसी परिषद के साथ पंजीकरण था। चयन प्रक्रिया त्रिस्तरीय थी, जिसमें प्रारंभिक परीक्षा, अंतिम परीक्षा और एक कौशल परीक्षा शामिल थी।

    याचिकाकर्ता अंतिम परीक्षा में उत्तीर्ण एकमात्र व्यक्ति थी। हालांकि, उसे इस आधार पर कौशल परीक्षा में भाग लेने की अनुमति नही दी गई कि उसके पास बी फार्मा और एम फार्म की ऊंची डिग्र‌ियां ‌थीं। उसके दस्तावेजों को देखने के बाद यूनिवर्सिटी ने एक नोटिस जारी किया कि परीक्षा में कोई भी योग्य नहीं पाया गया, क्योंकि याचिकाकर्ता के पास अधिसूचना में निर्धारित दो वर्षीय डिप्लोमा नहीं था।

    एकल न्यायाधीश ने पाया कि चूंकि उम्मीदवार ने अपने आवेदन में स्पष्ट रूप से कहा था कि उसके पास फार्मेसी में डिप्लोमा नहीं है, इस आधार पर उसे चयन प्रक्रिया से अयोग्य घोषित करने की यूनिवर्सिटी की कार्रवाई टिकाऊ नहीं है। एकल न्यायाधीश के निर्णय के खिलाफ यूनिवर्सिटी (अपीलकर्ता) ने मौजूदा रिट अपील दायर की।

    डिवीजन बेंच के समक्ष सेंट्रल यूनिवर्सिटी ऑफ केरल की ओर से तर्क दिया गया कि यूनिवर्सिटी द्वारा जारी अधिसूचना के अनुसार, केवल वे उम्मीदवार, जिनके पास फार्मेसी में 2 वर्षीय डिप्लोमा था, चयन प्रक्रिया में भाग लेने के लिए पात्र थे, और केवल ऐसे आवेदन स्वीकार किए गए थे।

    यूनिवर्सिटी की ओर से प्रस्तुत किया गया कि प्रतिवादी ने उन्हें धोखा दिया था और अपने आवेदन में यह झूठा दावा किया था कि उसके पास दी गई योग्यता है। यह कहा गया कि इस प्रकार प्रतिवादी उसकी ओर से की गई गलत का लाभ नहीं उठा सकती थी, और यहां तक ​​कि अन्य उम्मीदवार जिनके पास दी गई योग्यता नहीं थी, उन्हें चयन प्रक्रिया में भाग लेने से रोक दिया गया था।

    इस मामले में कोर्ट ने नोट किया कि अधिसूचना में जो निर्धारित किया गया था वह केवल 'आवश्यक योग्यता' थी जो चयन प्रक्रिया में भाग लेने के लिए आवश्यक थी। कोर्ट ने कहा कि यदि यूनिवर्सिटी का इरादा केवल डिप्लोमा धारकों को उक्त पद के लिए आवेदन करने देना है, तो उसे जारी की गई अधिसूचना में स्पष्ट रूप से ऐसा करना चाहिए था।

    कोर्ट ने कहा,

    "जब अधिसूचना में उस स्थिति को स्पष्ट नहीं किया गया था तो यूनिवर्सिटी का यह तर्क नहीं सुना जा सकता है कि जो उच्च योग्यता रखते हैं...वे चयन प्रक्रिया में भाग लेने के हकदार नहीं हैं।"

    अदालत ने आगे कहा कि यूनिवर्सिटी के इस तर्क को स्वीकार यदि स्वीकार कर लिया जाए कि उसने प्रतिवादी को उसके द्वारा किए गए झूठे दावे कि उसने इस विषय में डिग्री और पोस्ट ग्रेजुएशन के अलावा फार्मेसी में डिप्लोमा किया है, के आधार पर चयन प्रक्रिया में भाग लेने की अनुमति दी थी, ऊंची योग्यता वाले उम्मीदवारों के साथ भेदभावपूर्ण होगा, क्योंकि वे रोजगार के अवसरों से वंचित रहेंगे।

    अदालत ने प्रतिवादी द्वारा प्रस्तुत आवेदन का यह सुनिश्चित करने के लिए अवलोकन किया कि उसने अपने आवेदन में स्पष्ट रूप से कहा था कि उसके पास फार्मेसी में डिप्लोमा नहीं है।

    कोर्ट ने कहा कि प्रतिवादी के आवेदन से पता चलता है कि उसने '1 अंक' के साथ डिप्लोमा प्राप्त किया था। कोर्ट ने कहा कि इस तकनीकी गड़बड़ी को प्रतिवादी द्वारा समझाया जाना चाहिए था, हालांकि, यह 'झूठे दावे' का मामला बनाने के लिए पर्याप्त नहीं होगा।

    इस प्रकार, एकल न्यायाधीश के फैसले की पुष्टि उस हिस्से को छोड़कर की गई, जिसने यूनिवर्सिटी को उन आवेदकों को भी अनुमति देने का निर्देश दिया, जिन्होंने कौशल परीक्षा में भाग लेने के लिए लिखित परीक्षा उत्तीर्ण नहीं की थी।

    केस टाइटल: सेंट्रल यूनिवर्सिटी ऑफ केरल और अन्य बनाम जोशीला जे.यू.

    साइटेशन: 2022 लाइव लॉ (केरल) 506

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