सात वर्षीय बच्चे के यौन उत्पीड़न के आरोपी 57 वर्षीय व्यक्ति को अग्रिम जमानत देने के आदेश को केरल हाईकोर्ट में चुनौती दी
Shahadat
17 Aug 2023 2:23 PM IST
केरल हाईकोर्ट में सात साल की नाबालिग के साथ यौन उत्पीड़न के आरोपी 57 वर्षीय व्यक्ति को अग्रिम जमानत दिए जाने के खिलाफ याचिका दायर की गई। यह याचिका नाबालिग पीड़िता की मां ने दायर की।
आरोप है कि आरोपी ने मई, 2022 में अपराध किया। याचिकाकर्ता ने कहा कि घटना के अगले दिन पुलिस को सूचित करने के बावजूद एफआईआर दर्ज नहीं की गई। याचिकाकर्ता का दावा है कि पीड़ित परिवार की ओर से बार-बार की गई पूछताछ के बाद ही 21 जुलाई, 2023 को एफआईआर दर्ज की गई।
इस प्रकार आरोपी पर यौन अपराधों से बच्चों के संरक्षण अधिनियम (POCSO ACT) की धारा 3, 4, 7, धारा और 8 भारतीय दंड संहिता (आईपीसी) की धारा 354 A (1)(i) और धारा 376 के तहत अपराध दर्ज किया गया।
इस बीच, आरोपी ने अतिरिक्त सत्र न्यायाधीश, कोल्लम के समक्ष अग्रिम जमानत के लिए याचिका दायर की।
सत्र न्यायाधीश ने अपने आदेश दिनांक 3 अगस्त, 2023 के तहत मामले के रजिस्ट्रेशन में हुई देरी को ध्यान में रखते हुए आरोपी को अग्रिम जमानत दे दी और यह मामला आरोपी द्वारा अग्रिम जमानत के लिए याचिका दायर करने के बाद ही दर्ज किया गया।
सत्र न्यायालय ने अग्रिम जमानत देते हुए कहा,
"मेरा विचार है कि मामले के रजिस्ट्रेशन में देरी और वह भी वर्तमान आवेदन दाखिल करने के बाद मामले का रजिस्ट्रेशन इस स्तर पर अभियोजन मामले के बारे में गंभीर संदेह पैदा करता है। इसके अलावा, आरोपों की प्रकृति इंगित करता है कि याचिकाकर्ता से हिरासत में पूछताछ की आवश्यकता नहीं होगी। याचिकाकर्ता का आपराधिक इतिहास नहीं दिखाया गया। याचिकाकर्ता के न्याय से भागने की किसी भी संभावना को सुरक्षित रूप से खारिज किया जा सकता है।"
पीड़ित लड़की की मां की वर्तमान याचिका में कहा गया कि सत्र न्यायालय ने अपराध की गंभीरता पर विचार किए बिना आरोपी को अग्रिम जमानत दे दी।
याचिकाकर्ता ने आगे कहा कि निचली अदालत ने पॉक्सो एक्ट की धारा 29 पर उचित ध्यान नहीं दिया, जिसमें कहा गया,
"जहां किसी व्यक्ति पर धारा 3, 5, 7 और धारा 9 के तहत कोई अपराध करने या उकसाने या करने का प्रयास करने के लिए मुकदमा चलाया जाता है।"
इस अधिनियम के अनुसार, विशेष न्यायालय यह मान लेगा कि ऐसे व्यक्ति ने अपराध किया है या अपराध करने का प्रयास किया है, जैसा भी मामला हो, जब तक कि विपरीत साबित न हो जाए।
याचिकाकर्ता ने सुप्रीम कोर्ट के फैसले पर भी भरोसा जताया, जिसमें कहा गया,
"तथ्य यह है कि पीड़ित लड़की को इस हद तक आघात पहुंचाया गया कि उसकी शैक्षणिक गतिविधियों पर प्रतिकूल प्रभाव पड़ा है, साथ ही विधायी मंशा भी विशेष रूप से पॉक्सो एक्ट की धारा 29 के माध्यम से परिलक्षित होती है। किसी न्यायालय को गिरफ्तारी से पहले जमानत देने में अपने विवेकाधीन क्षेत्राधिकार का प्रयोग करने से रोकने के लिए पर्याप्त है।" [एक्स बनाम अरुण कुमार सीके]।
याचिकाकर्ता का कहना कि आरोपी राजनीतिक रूप से प्रभावशाली है और उसने और उसके परिवार के सदस्यों ने याचिकाकर्ता और पीड़ित के परिवार को कई बार धमकी दी।
"यह प्रस्तुत किया गया कि इस स्थिति में जमानत देने से मामले पर असर पड़ेगा और पीड़ित के लिए समस्याएं पैदा होंगी। राजनीतिक रूप से प्रभावित व्यक्ति और धार्मिक व्यक्ति होने के नाते वह सबूतों को नष्ट कर सकता है और गवाह को प्रभावित कर सकता है। यदि अनुलग्नक ए 2 अग्रिम जमानत आगे बढ़ती है तो याचिका में कहा गया कि याचिकाकर्ताओं और वास्तविक शिकायतकर्ता के लिए अपूरणीय क्षति और कठिनाइयां होंगी।
ऐसे में याचिकाकर्ता ने आरोपी को दी गई अग्रिम जमानत रद्द करने और इस संबंध में सत्र न्यायालय के आदेश रद्द करने की मांग की। इसमें मामले में जांच करने के लिए आवश्यक कदम उठाने के लिए कडक्कल पुलिस को निर्देश जारी करने की भी मांग की गई।
गुरुवार को सुनवाई के दौरान, न्यायमूर्ति के. बाबू की एकल न्यायाधीश पीठ की राय थी कि निचली अदालत ने अग्रिम जमानत देते समय प्रासंगिक सामग्रियों पर विचार किया।
मौखिक रूप से टिप्पणी की गई,
"मैं जो समझता हूं वह यह है कि निचली अदालत ने जमानत देने के लिए प्रासंगिक सामग्रियों का अध्ययन किया।"
इसके बाद अदालत ने प्रतिवादी-अभियुक्त को मामले में जवाब दाखिल करने का निर्देश दिया।
यह याचिका एडवोकेट श्रीराज एम.डी., भानु थिलक और एडवोकेट विष्णुप्रिया एम.वी. के माध्यम से दायर की गई।
केस टाइटल: XXX बनाम केरल राज्य और अन्य।
केस नंबर: Crl.MC 6578 of 2023