'लापरवाही' तरीके से पैरोल देने से इनकार करने पर जेल महानिरीक्षक पर लगा ₹10,000 का जुर्माना

Shahadat

18 Aug 2025 10:46 AM IST

  • लापरवाही तरीके से पैरोल देने से इनकार करने पर जेल महानिरीक्षक पर लगा ₹10,000 का जुर्माना

    मनमाने प्रशासनिक कार्यों की कड़ी आलोचना करते हुए पंजाब एंड हरियाणा हाईकोर्ट ने बिना उचित विचार-विमर्श के पैरोल आवेदन खारिज करने पर जेल महानिरीक्षक पर ₹10,000 का जुर्माना लगाया।

    जस्टिस दीपक सिब्बल और जस्टिस सुभाष मेहला की खंडपीठ ने कहा,

    "भागलपुर के डीएम ने आईजी को...सीपीओ की रिपोर्ट भेजकर याचिकाकर्ता को पैरोल देने की अनुकूल सिफारिश की थी। हालांकि, आईजी द्वारा पारित विवादित आदेश के अवलोकन से पता चलता है कि आईजी ने भागलपुर के डीएम की रिपोर्ट पर "आधार" देकर याचिकाकर्ता की पैरोल की प्रार्थना खारिज कर दी।"

    खंडपीठ ने आगे कहा,

    "चूंकि भागलपुर के डीएम ने प्रतिवादी प्राधिकारियों को केंद्रीय पुलिस कार्यालय की एक रिपोर्ट भेजी थी, जिसमें याचिकाकर्ता की पैरोल पर रिहाई की सिफ़ारिश की गई। इसलिए यह स्पष्ट है कि आईजी ने बेहद लापरवाही से और बिना किसी विवेक के यह आदेश पारित किया, जिसकी आईजी स्तर के एक सीनियर अधिकारी से बिल्कुल भी उम्मीद नहीं की जाती।"

    यह याचिका एक बलात्कार के दोषी द्वारा दायर की गई, जिसे भारतीय दंड संहिता (IPC) की धारा 376 (3) और POCSO Act की धारा 4 के तहत दोषी ठहराया गया और 20 साल के कठोर कारावास की सजा सुनाई गई।

    उपरोक्त सजा काटते हुए वर्ष 2023 में याचिकाकर्ता ने पंजाब गुड कंडक्ट प्रिज़नर्स (टेम्पररी रिलीज़) एक्ट, 1962 (अधिनियम) की धारा 3 के तहत प्रतिवादी प्राधिकारियों से पैरोल देने के लिए आवेदन किया था।

    चूंकि याचिकाकर्ता बिहार के भागलपुर ज़िले का मूल निवासी था, इसलिए प्रतिवादी प्राधिकारियों ने ज़िला मजिस्ट्रेट (डीएम), भागलपुर, बिहार से याचिकाकर्ता के पैरोल आवेदन पर टिप्पणियां मांगीं।

    दिनांक 15.04.2025 के एक पत्र के माध्यम से भागलपुर के डीएम ने सहायक पुलिस महानिरीक्षक, कारागार, चंडीगढ़ को मुख्य परिवीक्षा अधिकारी, गृह विभाग (कारागार एवं पुनर्वास सेवाएं), नवगछिया (सीपीओ) के दिनांक 07.03.2025 के पत्र की कॉपी भेजी, जिसके अनुसार सीपीओ ने याचिकाकर्ता को पैरोल देने की सिफ़ारिश की थी। इसके बावजूद, 25.04.2025 के आक्षेपित आदेश के माध्यम से आईजी ने याचिकाकर्ता की पैरोल की प्रार्थना को अस्वीकार कर दिया।

    प्रस्तुतियां सुनने के बाद न्यायालय ने पाया कि दोषसिद्धि के समय याचिकाकर्ता की आयु लगभग 21 वर्ष थी। उसका कोई अन्य आपराधिक इतिहास नहीं है। आज तक वह 04 वर्ष, 03 महीने और 05 दिन की वास्तविक हिरासत अवधि पूरी कर चुका है।

    अदालत ने आगे कहा,

    "यह भी निर्विवाद है कि हिरासत में रहते हुए उसका आचरण अच्छा रहा है।"

    परिणामस्वरूप, आक्षेपित आदेश रद्द कर दिया गया, क्योंकि प्रतिवादियों द्वारा कोई अन्य कारण प्रस्तुत नहीं किया गया कि याचिकाकर्ता को पैरोल से वंचित क्यों किया जाए, मुख्य पुलिस अधिकारी और भागलपुर के जिला मजिस्ट्रेट द्वारा की गई सिफारिशों के आलोक में।

    अदालत ने याचिकाकर्ता को उसकी रिहाई की तारीख से 28 दिनों की अवधि के लिए पैरोल पर रिहा करने का निर्देश दिया।

    याचिका का निपटारा करते हुए खंडपीठ ने कहा,

    "याचिका को उपरोक्त शर्तों के साथ स्वीकार किया जाता है, जिसमें 10,000 रुपये का खर्च आक्षेपित आदेश पारित करने वाले अधिकारी द्वारा व्यक्तिगत रूप से वहन किया जाएगा।"

    Title: XXXX v. XXXX

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