'अजीब और असामान्य': याचिकाकर्ता को मजिस्ट्रेट द्वारा पहले ही जमानत दी जा चुकी थी, पंजाब एंड हरियाणा हाईकोर्ट ने याचिकाकर्ता के अनजान होने पर स्पष्टीकरण मांगा

LiveLaw News Network

16 July 2021 11:45 AM GMT

  • अजीब और असामान्य: याचिकाकर्ता को मजिस्ट्रेट द्वारा पहले ही जमानत दी जा चुकी थी, पंजाब एंड हरियाणा हाईकोर्ट ने याचिकाकर्ता के अनजान होने पर स्पष्टीकरण मांगा

    पंजाब एंड हरियाणा हाईकोर्ट ने सोमवार को उस मामले में फैसला सुनाते हुए हैरानी व्यक्त की है, जिसमें एक सत्र न्यायालय ने याचिकाकर्ता द्वारा दायर जमानत याचिका को खारिज कर दिया था, जबकि वह इस बात से अनजान था कि उसे संबंधित मजिस्ट्रेट द्वारा पहले ही जमानत दी जा चुकी है।

    संबंधित मामले में याचिकाकर्ता ने पंचकूला के सत्र न्यायाधीश के समक्ष नियमित जमानत की मांग की थी। हालाँकि जब सत्र न्यायालय ने उसे जमानत देने से इनकार कर दिया, तो उसने हाईकोर्ट के समक्ष तत्काल याचिका दायर की दी। हालांकि अब याचिकाकर्ता ने हाईकोर्ट के समक्ष दायर जमानत याचिका को इस आधार पर वापस लेने की स्वतंत्रता की मांग थी कि उसे इस बात की कोई जानकारी नहीं थी कि उसे मुख्य न्यायिक मजिस्ट्रेट, पंचकुला द्वारा पहले ही जमानत दी जा चुकी है।

    मामले के तथ्यों के दुर्भाग्यपूर्ण मोड़ को 'अजीब और असामान्य' करार देते हुए, न्यायमूर्ति एच.एस. मदान ने कहा,

    ''यह बहुत ही अजीब बात है कि न तो याचिकाकर्ता/अभियुक्त और न ही उनके वकील को इस बात का पता चला कि याचिकाकर्ता/अभियुक्त को नियमित जमानत दी जा चुकी है। इसके बजाय उन्होंने सत्र न्यायाधीश, पंचकूला के समक्ष नियमित जमानत के लिए आवेदन दाखिल किया था। यह बहुत आश्चर्यजनक है कि मुख्य न्यायिक मजिस्ट्रेट, पंचकूला द्वारा पारित आदेश का सत्यापन और उस पर विचार किए बिना ही सत्र न्यायाधीश, पंचकूला ने नियमित जमानत के लिए दायर आवेदन का निपटारा कर दिया, जबकि ऐसा नहीं किया जाना चाहिए था क्योंकि मुख्य न्यायिक मजिस्ट्रेट, पंचकुला द्वारा याचिकाकर्ता को पहले ही जमानत दी जा चुकी थी।''

    अदालत ने कहा कि ऐसी स्थिति से बचा जा सकता था अगर याचिकाकर्ता के वकील या लोक अभियोजक द्वारा सत्र न्यायालय के ध्यान में इस तथ्य को लाया जाता कि मुख्य न्यायिक मजिस्ट्रेट द्वारा जमानत पहले ही दी जा चुकी है।

    न्यायालय की उचित रूप से सहायता करने के लिए पुलिस अधिकारियों के कर्तव्य पर जोर देते हुए, हाईकोर्ट ने कहा कि सत्र न्यायालय के समक्ष दायर जमानत आवेदन के जवाब में अभियोजन पक्ष को जमानत दिए जाने के बारे में सूचित करना चाहिए था।

    इसके अलावा, न्यायमूर्ति मदन ने पाया कि याचिकाकर्ता के वकील और अभियोजन पक्ष द्वारा कर्तव्यों के कुशल निर्वहन में विफलता के कारण, याचिकाकर्ता के साथ-साथ न्यायपालिका का कीमती समय बर्बाद हो गया।

    कोर्ट ने कहा कि,

    ''इस प्रक्रिया में, सत्र न्यायाधीश, पंचकूला और इस न्यायालय का कीमती समय बर्बाद हुआ है और इतना ही नहीं याचिकाकर्ता स्वयं 1 वर्ष और 4 महीने से अधिक समय की अवधि के लिए अदालतों में कामकाज न होने के कारण सलाखों के पीछे रहा है।''

    ऐसे में कोर्ट ने संबंधित सेशन जज से स्पष्टीकरण मांगा है। निदेशक, अभियोजन और डीजीपी, हरियाणा को भी इस तरह की चूक के लिए जिम्मेदार व्यक्तियों का पता लगाने का आदेश दिया है ताकि उनके खिलाफ आवश्यक कार्रवाई शुरू की जा सके। न्यायालय ने यह भी कहा है कि कोर्ट द्वारा मांगे गए स्पष्टीकरण को 12 अगस्त तक प्रस्तुत कर दिया जाए।

    इस प्रकार, अदालत ने याचिकाकर्ता को अपनी जमानत याचिका वापस लेने की अनुमति दे दी।

    केस का शीर्षकः निशांत उर्फ निशु बनाम हरियाणा राज्य

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