बिहार में 65% आरक्षण| पटना हाईकोर्ट ने कानून के खिलाफ जनहित याचिका पर राज्य सरकार से जवाब मांगा, अंतरिम रोक लगाने से इनकार किया

LiveLaw News Network

2 Dec 2023 1:52 PM GMT

  • बिहार में 65% आरक्षण| पटना हाईकोर्ट ने कानून के खिलाफ जनहित याचिका पर राज्य सरकार से जवाब मांगा, अंतरिम रोक लगाने से इनकार किया

    पटना हाईकोर्ट ने पिछड़ा वर्ग, अत्यंत पिछड़ा वर्ग, अनुसूचित जाति और अनुसूचित जनजाति के लिए आरक्षण को 50% से बढ़ाकर 65% करने के बिहार विधानमंडल के हालिया संशोधन के खिलाफ दायर एक जनहित याचिका याचिका को स्वीकार कर लिया है।

    हाईकोर्ट ने इस सबंध में राज्य सरकार को 4 सप्ताह के भीतर जवाब देने को कहा।

    चीफ जस्टिस के विनोद चंद्रन और जस्टिस राजीव रॉय की पीठ ने हालांकि याचिकाकर्ताओं की मांग के अनुसार अंतरिम उपाय के रूप में कानून पर रोक लगाने से इनकार कर दिया।

    जनहित याचिका में बिहार आरक्षण (अनुसूचित जाति, अनुसूचित जनजाति और अन्य पिछड़े वर्गों के लिए) (संशोधन) अधिनियम, 2023 और बिहार (शैक्षिक संस्थानों में प्रवेश में) आरक्षण (संशोधन) अधिनियम, 2023 की संवैधानिक वैधता को चुनौती दी गई है।

    उल्लेखनीय है कि बिहार राज्य विधानमंडल ने 10 नवंबर, 2023 को 2023 अधिनियम पारित किया था, और उसे 18 नवंबर, 2023 को राज्यपाल की सहमति प्राप्त हुई। इसके बाद, सरकार ने आधिकारिक तौर पर 21 नवंबर, 2023 को बिहार राजपत्र के माध्यम से अधिनियम को अधिसूचित किया।

    कानूनों को चुनौती देते हुए, याचिकाकर्ताओं (गौरव कुमार और नमन शेरस्त्र) ने याचिका में तर्क दिया कि संशोधन राज्य द्वारा आयोजित जाति जनगणना से प्राप्त आनुपातिक आरक्षण पर आधारित हैं। इस जनगणना के अनुसार बिहार राज्य में पिछड़े वर्गों (एससी, एसटी, ओबीसी और ईबीसी) की जनसंख्या 63.13% थी।

    याचिकाकर्ताओं ने आगे तर्क दिया कि संवैधानिक जनादेश, जैसा कि संविधान के अनुच्छेद 16 (4) में उल्लिखित है, के अनुसार आरक्षण एक विशिष्ट राज्य के भीतर इन वर्गों के आनुपातिक प्रतिनिधित्व के बजाय सामाजिक और शैक्षिक रूप से पिछड़े वर्ग के पर्याप्त प्रतिनिधित्व पर आधारित होना चाहिए।

    याचिका में उल्लेख किया गया है, “इसलिए, प्रतिवादी राज्य द्वारा पारित 2023 अधिनियम भारतीय संविधान के अनुच्छेद 16 (1) का उल्लंघन करता है, जो राज्य के तहत किसी भी कार्यालय में रोजगार या नियुक्ति से संबंधित मामलों में सभी नागरिकों के लिए समानता का अवसर प्रदान करता है, और अनुच्छेद 15(1) का उल्‍लंघन है, जो किसी भी प्रकार के भेदभाव पर रोक लगाता है।”

    याचिका वकील आलोक कुमार ने दायर की है.

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