फैमिली कोर्ट द्वारा सर्टिफाइड कॉपी देर से जारी करने के लिए पक्षकारों को दंडित नहीं किया जा सकता: केरल हाईकोर्ट

Shahadat

12 Dec 2023 5:26 AM GMT

  • फैमिली कोर्ट द्वारा सर्टिफाइड कॉपी देर से जारी करने के लिए पक्षकारों को दंडित नहीं किया जा सकता: केरल हाईकोर्ट

    केरल हाईकोर्ट ने कहा कि किसी आदेश की सर्टिफाइड कॉपी देर से जारी करना उन पक्षकारों को दंडित करने का कारण नहीं हो सकता, जिन्होंने कोई गलती नहीं की है।

    मामले के तथ्यों के अनुसार, फैमिली कोर्ट ने सीआरपीसी की धारा 125 के तहत याचिका दायर करने की तारीख 19 अप्रैल, 2005 से भरण-पोषण का भुगतान करने का आदेश जारी किया। सर्टिफाइड कॉपी के लिए आवेदन 26 जून, 2007 को दायर किया गया, लेकिन सर्टिफाइड कॉपी केवल 1 दिसंबर 2008 को जारी की गई। फैमिली कोर्ट के कारण हुई यह अत्यधिक और अस्पष्ट देरी उन पक्षों पर प्रतिकूल प्रभाव नहीं डाल सकती, जो भरण-पोषण की बकाया राशि की मांग के लिए निष्पादन आवेदन दायर करना चाहते हैं, जिसे तारीख से एक वर्ष के भीतर दायर किया जाना है। ऐसी स्थिति में यह देय हो जाता है।

    जस्टिस सी एस डायस ने जंग सिंह बनाम बृजलाल और अन्य (1966) पर भरोसा करते हुए कानूनी कहावत एक्टस क्यूरी नेमिनेम ग्रेवबिट का उल्लेख करते हुए कहा कि न्यायालय द्वारा की गई गलती से किसी वादी पर प्रतिकूल प्रभाव नहीं पड़ना चाहिए।

    कोर्ट ने कहा,

    “यह समझने के लिए किसी दूसरे विचार की आवश्यकता नहीं है कि सर्टिफाइड कॉपी देर से जारी करने में फैमिली कोर्ट की ओर से चूक हुई। लेकिन, यह उन पुनर्विचार याचिकाकर्ताओं को दंडित करने का कारण नहीं हो सकता, जिन्होंने कोई गलती नहीं की। पुनर्विचार याचिकाकर्ता अनुलग्नक A2 आवेदन में दावा किए गए भरण-पोषण के पूरे बकाया के हकदार हैं।''

    पुनर्विचार याचिकाकर्ता पत्नी और बेटी हैं, जिन्होंने प्रतिवादी-पति से भरण-पोषण की बकाया राशि का दावा किया। फैमिली कोर्ट ने 26 जून, 2007 से ही भरण-पोषण की बकाया राशि का भुगतान करने का आदेश दिया और याचिका दायर करने की तारीख (यानी 19.4.2005 से 20.6.2007) तक भरण-पोषण की बकाया राशि देने से इनकार कर दिया। आदेश से क्षुब्ध होकर उन्होंने हाईकोर्ट का दरवाजा खटखटाया।

    हाईकोर्ट ने सर्टिफाइड कॉपी जारी करने में हुई देरी के लिए फैमिली कोर्ट से रिपोर्ट मांगी। हाईकोर्ट ने कहा कि फैमिली कोर्ट द्वारा दी गई रिपोर्ट से देरी के कारणों का पता नहीं चल सका।

    न्यायालय ने इस तथ्य पर ध्यान दिया कि भले ही सर्टिफाइड कॉपी के लिए आवेदन 26 जून 2007 को दायर किया गया, सर्टिफाइड कॉपी केवल 1 दिसंबर, 2008 को जारी की गई। यह माना गया कि निष्पादन आवेदन 3 अगस्त 2009 को दायर किया गया, जो कि उस तारीख से एक वर्ष के अंदर था, जिस पर आदेश की सर्टिफाइड कॉपी जारी की गई थी।

    कोर्ट ने कहा,

    “वर्तमान मामले में अनुलग्नक ए 2 आवेदन 3.8.2009 को दायर किया गया, यानी, उस तारीख से एक वर्ष के भीतर, जिस दिन संशोधन याचिकाकर्ताओं को आदेश की सर्टिफाइड कॉपी जारी की गई थी। केवल आदेश जारी होने की तारीख पर ही राशि देय हो सकती है, खासकर जब आवेदनों का निपटान काफी समय अवधि के बाद किया जाता है और आवेदन की तारीख से रखरखाव का भुगतान करने का आदेश दिया जाता है।

    तदनुसार, न्यायालय ने विवादित आदेश रद्द कर दिया और माना कि धारा 125 (3) वारंट जारी करने के लिए केवल एक वर्ष की सीमा पर रोक लगाती है और पक्षकारों को निष्पादन आवेदन दाखिल करने से नहीं रोकती है। यह भी नोट किया गया कि फैमिली कोर्ट ने याचिका दायर करने की तारीख (यानी, 19.4.2005 से 20.6.2007) तक गुजारा भत्ता की बकाया राशि से इनकार करने का कारण नहीं बताया है। न्यायालय ने प्रतिवादी को याचिका दायर करने की तारीख (अर्थात 19.4.2005 से 20.6.2007) तक भरण-पोषण की बकाया राशि का भुगतान करने का भी निर्देश दिया।

    याचिकाकर्ताओं के वकील: एम.आर.सरीन, बीजू गोपाल, एम.आर.ससिथ, के.के.सुनील कुमार इडुक्की।

    उत्तरदाताओं के वकील: उन्नी के.के. एझुमट्टूर

    केस टाइटल: सजनी वी साबू

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