ऑक्सीजन कंसंट्रेटर 'आवश्यक वस्तु' के रूप में वर्गीकृत नहीं है: उत्तराखंड हाईकोर्ट ने राज्य और केंद्र सरकार से जवाब मांगा

LiveLaw News Network

21 May 2021 10:39 AM GMT

  • ऑक्सीजन कंसंट्रेटर आवश्यक वस्तु के रूप में वर्गीकृत नहीं है: उत्तराखंड हाईकोर्ट ने राज्य और केंद्र सरकार से जवाब मांगा

    उत्तराखंड हाईकोर्ट ने गुरुवार (20 मई) को कई मुद्दों पर केंद्र और राज्य सरकार से जवाब मांगा।

    न्यायालय को अधिवक्ता आदित्य प्रताप सिंह द्वारा भेजा गए एक पत्र में COVID-19 महामारी से जूझते हुए राज्य के लोगों के सामने आने वाली कुछ कठिनाइयों पर प्रकाश डाला है।

    मुख्य न्यायाधीश राघवेंद्र सिंह चौहान और न्यायमूर्ति आलोक कुमार वर्मा की खंडपीठ ने राज्य की ओर से पेश मुख्य सरकार वकील सी.एस. रावत को मामले में अपना जवाबी हलफनामा दाखिल करने के लिए दो सप्ताह का समय दिया।

    पत्र में कहा गया है कि आवश्यक वस्तु अधिनियम के तहत ऐसा किया जा सकता है। इस तथ्य के बावजूद ऑक्सीजन कंसंट्रेटर को "आवश्यक वस्तु" के रूप में वर्गीकृत नहीं किया जा रहा है।

    दूसरे, उनके अनुसार, प्राइवेट लैब सीटी स्कैन करने के लिए ज्यादा चार्ज वसूल कर रही है। इसलिए उन्होंने निवेदन किया कि राज्य सरकार को प्राइवेट लैब द्वारा लिए जाने वाले चार्ज की सीमा तय करनी चाहिए।

    तीसरा, यह कहा गया कि केंद्र और राज्य सरकार द्वारा जारी मानक संचालन प्रक्रियाओं (संक्षेप में 'एसओपी') को दरकिनार करने के लिए आरटी-पीसीआर टेस्ट के परिणाम जाली हैं।

    राज्य सरकार से जवाब मांगते हुए हाईकोर्ट ने याचिकाकर्ता के वकील आदित्य प्रताप सिंह को तीन दिनों की अवधि के भीतर याचिका में भारत सरकार को एक आवश्यक पक्ष के रूप में शामिल करने के लिए कहा।

    इसके अलावा, कोर्ट ने कहा,

    "यदि संशोधित कॉज टाइटल आदित्य प्रताप सिंह द्वारा दायर किया जाता है, तो रजिस्ट्री को भारत सरकार के विद्वान सहायक सॉलिसिटर जनरल राकेश थपलियाल को नोटिस जारी करने का निर्देश दिया जाता है। इसके साथ ही 8 जून, 2021 तक जवाबी हलफनामा के रूप सहायक सॉलिसिटर जनरल को अपनी याचिका प्रस्तुत करने का निर्देश दिया जाता है।"

    इसके बाद मामले को आगे की सुनवाई के लिए 9 जून, 2021 को सूचीबद्ध कर दिया गया।

    संबंधित समाचार में, उत्तराखंड हाईकोर्ट ने गुरुवार को 'कुंभ मेला' की अनुमति देने के लिए राज्य सरकार के खिलाफ आलोचनात्मक टिप्पणियां कीं। इसमें COVID-19 महामारी के दौरान कई हफ्तों में 10 लाख से अधिक श्रद्धालु एकत्र हुए थे।

    मंदिरों और धार्मिक उत्सवों में COVID-19 मानदंडों का पालन सुनिश्चित करने में विफल रहने पर कोर्ट ने राज्य सरकार की जमकर खिंचाई की।

    मुख्य न्यायाधीश राघवेंद्र सिंह चौहान और न्यायमूर्ति आलोक वर्मा की खंडपीठ ने देखा कि बद्रीनाथ और केदारनाथ में संबंधित पुजारी सोशल डिस्टेंसिंग के COVID-19 प्रोटोकॉल का पालन नहीं कर रहे हैं।

    राज्य से सवाल करते हुए कि अगर पुजारियों के बीच COVID-19 वायरल फैलता है तो क्या होगा, मुख्य न्यायाधीश आरएस चौहान ने विशेष रूप से टिप्पणी की,

    "केदारनाथ और बद्रीनाथ मंदिरों में मैंने वीडियो कांफ्रेंसिंग के द्वारा देखा है कि पुजारी द्वारा सोशल डिस्टेंसिंग का पालन नहीं किया जा रहा है। भले ही देवता की पूजा की जा रही हो आप 23 पुजारियों को मंदिर में प्रवेश नहीं कर सकते। निगरानी के लिए राज्य द्वारा नियुक्त व्यक्ति कौन है?"

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