यदि चेक बिना लाइसेंस वाले साहूकार के कर्ज की जमानत के रूप में दिया गया है तो धारा 138 एनआई एक्ट के तहत अपराध आकर्षित नहीं होगाः बॉम्बे हाईकोर्ट
Avanish Pathak
29 Nov 2022 3:11 PM IST
बॉम्बे हाईकोर्ट ने हाल ही में नेगोशिएबल इंस्ट्रूमेंट्स एक्ट के तहत दर्ज एक शिकायत में दायर आपराधिक संशोधन आवेदन को यह देखते हुए खारिज कर दिया कि यदि बिना लाइसेंस वाले साहूकार से कर्ज के लिए जमानत के रूप में दिया गए चेक के मामले में धारा 138 को आकर्षित नहीं किया जा सकता है।
जस्टिस प्रकाश नाइक ने आदेश में कहा, "बिना लाइसेंस के साहूकारी कारोबार के मामलों में निगोशिएबल इंस्ट्रूमेंट्स एक्ट की धारा 138 के प्रावधानों को आकर्षित नहीं होते हैं।"
प्रार्थी का मामला था कि उसने फरवरी 2014 में आरोपियों को 12 लाख रुपये का ऋण दिया था। आरोपी ने पैसे की प्राप्ति को स्वीकार करते हुए एक समझौता ज्ञापन निष्पादित किया और 30 अगस्त, 2014 को या उससे पहले ऋण चुकाने का वचन दिया।
आरोपी ने आवेदक को पांच चेक जारी किए जिन्हें "अल्टरेशन" के कारण डिसऑनर कर दिया। इसके बाद आरोपी ने 11.5 लाख रुपये का नया चेक जारी किया। आरोपी ने 2 मार्च 2015 को 5.5 लाख रुपए का कर्ज व देनदारी स्वीकार करते हुए नोटिस जारी किया। हालांकि, आरोपी ने नोटिस में दावा किया कि ये चेक कर्ज की सिक्योरिटी के रूप में जारी किए गए थे।
आवेदक ने नेगोशिएबल इंस्ट्रूमेंट्स एक्ट की धारा 138 के तहत संयुक्त न्यायिक मजिस्ट्रेट प्रथम श्रेणी (जेजेएमएफसी) के समक्ष शिकायत दर्ज कराई।
जेजेएमएफसी ने मामले में प्रक्रिया जारी की। आरोपियों ने सत्र न्यायालय के समक्ष रिवीजन अर्जी में प्रक्रिया के आदेश को चुनौती दी। सेशन कोर्ट ने रिवीजन अर्जी मंजूर कर ली। इसलिए आवेदक ने हाईकोर्ट का दरवाजा खटखटाया।
आवेदक की ओर से पेश वकील सुरेश शेट्ये ने प्रस्तुत किया कि प्रथम दृष्टया आरोपी के खिलाफ मामला बनता है और जेजेएमएफसी ने बयान के सत्यापन और रिकॉर्ड पर दस्तावेजों पर विचार करने के बाद प्रक्रिया जारी की।
आवेदक ने शिकायत दर्ज करने से पहले डिमांड नोटिस जारी करने जैसी सभी प्रक्रियात्मक आवश्यकताओं को पूरा किया। पुनरीक्षण क्षेत्राधिकार के तहत प्रक्रिया के आदेश को रद्द नहीं किया जा सकता है।
सत्र न्यायालय ने एनआई एक्ट की धारा 139 के तहत उस अनुमान पर विचार नहीं किया, जिसे परीक्षण के दरमियान खंडित किया जाना आवश्यक है। इसके अलावा, शिकायतकर्ता को साक्ष्य पेशकर मामले को साबित करने का अवसर मिलना चाहिए।
प्रतिवादियों की ओर से पेश वकील विनोद गंगवाल ने तर्क दिया कि प्रतिवादी के खिलाफ कार्यवाही जारी रखना कानून का दुरुपयोग होगा क्योंकि सत्र न्यायालय को पुनरीक्षण आवेदन पर विचार करने और आदेश जारी करने की प्रक्रिया को रद्द करने का अधिकार था।
उन्होंने कहा कि सेशन जज ने रिकॉर्ड में मौजूद अविवादित दस्तावेज पर सही विचार किया। उन्होंने सेशन कोर्ट की इस टिप्पणी पर भरोसा किया कि पोस्ट-डेटेड चेक लोन के लिए सिक्योरिटी के तौर पर दिए गए थे।
सत्र न्यायाधीश ने यह ठीक ही माना कि बिना लाइसेंस के मनी लेंडिंग व्यवसाय के मामलों में कार्यवाही सुनवाई योग्य नहीं थी। इसलिए, ऋण समझौते को लागू नहीं किया जा सकता क्योंकि यह एक गैरकानूनी उद्देश्य है।
अदालत ने सत्र न्यायाधीश के आदेश का अवलोकन किया और कहा कि एनआई एक्ट की धारा 138 बिना लाइसेंस के साहूकारी कारोबार के मामलों में लागू नहीं होती है।
पक्षों के बीच हुए एमओयू से कोर्ट को पता चला कि लेन-देन बिना लाइसेंस के था और जमानत के तौर पर पोस्ट-डेटेड चेक दिए गए थे. इसलिए, अदालत ने आदेश में हस्तक्षेप करने का कोई कारण नहीं पाया और आपराधिक पुनरीक्षण आवेदन को खारिज कर दिया।
केस नंबरः क्रिमिनल रिवीजन एप्लीकेशन नंबर 394 ऑफ 2015
केस टाइटलः मोनिक सुनीत उज्जैन बनाम सांचू एम मेनन और अन्य।