योगी आदित्यनाथ के खिलाफ आपत्तिजनक पोस्ट: इलाहाबाद हाईकोर्ट ने दो साल तक के लिए सोशल मीडिया का इस्तेमाल नहीं करने की शर्त पर जमानत दी
LiveLaw News Network
5 Nov 2020 11:59 AM IST
इलाहाबाद हाईकोर्ट ने सोमवार (02 नवंबर) को मुख्यमंत्री योगी आदित्यनाथ और अन्य जनप्रतिनिधियों के खिलाफ आपत्तिजनक टिप्पणी करने के आरोपी एक व्यक्ति को इस शर्त पर जमानत दी कि वह दो साल की अवधि तक या ट्रायल कोर्ट के समक्ष ट्रायल की समाप्ति तक तक, सोशल मीडिया का उपयोग नहीं करेगा।
जस्टिस सिद्धार्थ की खंडपीठ आवेदक अखिलानंद राव की ओर से दायर जमानत आवेदन पर सुनवाई कर रही थी। आवेदन के खिलाफ धारा 419, 420, 120B आईपीसी और 66D आईटी एक्ट के तहत पुलिस थाना कोतवाली, जिला देवरिया में केस अपराध संख्या 500 दायर की गई थी। मामला ट्रायल कोर्ट में लंबित है।
मामला
इस मामले में, आवेदक के खिलाफ आरोप यह है कि उसने राज्य के मुख्यमंत्री और अन्य जन प्रतिनिधियों के खिलाफ आपत्तिजनक टिप्पणी की। एफआईआर पुलिस ने दर्ज की थी। यह भी आरोप लगाया गया कि उन्होंने अपनी स्थिति को गलत तरीके से दिखाया और अनुचित लाभ प्राप्त करने का प्रयास किया।
आवेदक के वकील ने दलील दी थी कि कि यह पुलिस द्वारा झूठे तरीके से फंसाए जाने का मामला है। आवेदक 12.05.2020 से जेल में था और उसका 11 मामलों का आपराधिक इतिहास है।
आदेश
रिकॉर्ड पर मौजूद सामग्री विचार करने के बाद, संविधान के अनुच्छेद 21 के व्यापक जनादेश और दाताराम सिंह बनाम यूपी राज्य और एक अन्य, (2018) 3 एससीसी 22 में रिपोर्ट की गई, मामले में सुप्रीम कोर्ट के आदेश को ध्यान में रखकर और मामले के गुणों पर कोई राय व्यक्त किए बिना, कोर्ट ने निर्देश दिया,
"उपरोक्त अपराध में शामिल आवेदक को एक निजी बॉन्ड और संबंधित अदालत की संतुष्टि के लिए उतनी ही राशि की दो जमानतदार को पेश करने के बाद, जमानत पर रिहा करने दें।"
जमानत के साथ ही कोर्ट ने शर्त रखी कि आवेदक दो साल की अवधि के लिए या ट्रायल कोर्ट के समक्ष मुकदमे के समापन तक, जो भी पहले हो, सोशल मीडिया का इस्तेमाल नहीं करेंगे।
अन्य उच्च न्यायालयों की राय
अगस्त 2020 में, मध्य प्रदेश हाई कोर्ट ने एक 'छात्र' आरोपी को जमानत देते हुए, उसे दो महीने के लिए व्हाट्सएप, फेसबुक या अन्य सोशल मीडिया का उपयोग न करके खुद का डिजिटल डिटॉक्सिफिकेशन करने का निर्देश दिया था।
जस्टिस आनंद पाठक ने कृषि विज्ञान के छात्र हरेंद्र त्यागी को निर्देश दिया था कि वे संबंधित पुलिस स्टेशन में अपने डिजिटल डिटॉक्सिफिकेशन के बारे में रिपोर्ट करें और प्री एग्रीकल्चर टेस्ट (पीएटी) के अपने अध्ययन को पूरा करें।
उल्लेखनीय है कि बलात्कार के एक आरोपी को जमानत देते हुए, केरल हाईकोर्ट ने सितंबर में टिप्पणी की थी कि "यदि बलात्कार के मामले में शामिल अभियुक्त की जमानत के आदेश में यह र्शत शामिल कर दी जाए कि वह सोशल मीडिया का इस्तेमाल नहीं करेगा तो इससे आसमान नहीं टूट जाएगा, विशेषकर जब पीड़िता की निजता की रक्षा करना है।"
विशेष रूप से, सुप्रीम कोर्ट ने हाल ही में एक याचिका में नोटिस जारी किया कि क्या सोशल मीडिया के उपयोग पर प्रतिबंध अदालत द्वारा जमानत देने की शर्त के रूप में लगाया जा सकता है।
भारत के मुख्य न्यायाधीश एसए बोबडे, जस्टिस आर सुभाष रेड्डी और एएस बोपन्ना की खंडपीठ ने कांग्रेस नेता सचिन चौधरी द्वारा दायर मामले को सुना, और केंद्र सरकार और उत्तर प्रदेश सरकार को नोटिस जारी किया।
एडवोकेट-ऑन-रिकॉर्ड केशव रंजन द्वारा दायर याचिका, इलाहाबाद हाईकोर्ट के आदेश, जिसे जस्टिस सिद्धार्थ ने पारत किया है, से निकली है, जिसमें चौधरी को इस शर्त पर जमानत दी गई थी कि वह मुकदमे के समापन तक जमानत पर बाहर रहने के सोशल मीडिया का उपयोग नहीं करेंगे। ।
"आवेदक ट्रायल के समापन तक सोशल मीडिया का उपयोग नहीं करेगा।"
केस टाइटलः अखिलानंद राव बनाम उत्तर प्रदेश राज्य। [2020 की आपराधिक विविध जमानत आवेदन संख्या 36733]
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