"जबरदस्ती यौन उत्पीड़न का मामला नहीं": दिल्ली हाईकोर्ट ने शादी के झूठे वादे के बहाने महिला से बलात्कार के आरोपी डॉक्टर को जमानत दी
LiveLaw News Network
4 April 2021 8:39 PM IST
दिल्ली हाईकोर्ट ने हाल ही में शादी के झूठे वादे के बहाने एक महिला के साथ बलात्कार करने के आरोपी दिल्ली के एक डॉक्टर को अग्रिम जमानत दे दी। कोर्ट ने माना कि मामले में "जबरदस्ती यौन हमला नहीं" किया गया था।
अदालत ने आगे कहा कि यह बताने के लिए रिकॉर्ड पर कुछ भी नहीं है कि आरोपी ने शादी का वादा किया था और इसलिए यह सवाल कि क्या अभियोजक की शारीरिक संबंध बनाने की सहमति, स्वतंत्र सहमति थी या नहीं, ट्रायल में तय करने की आवश्यकता है।
जस्टिस सुब्रमणियम प्रसाद की एकल पीठ ने कहा, "याचिकाकर्ता सफदरजंग अस्पताल में काम करने वाला डॉक्टर है और यह नहीं कहा जा सकता है कि वह अभियोजन पक्ष को डराने या सबूतों के साथ छेड़छाड़ करने की स्थिति में होगा। सबूत जुटा लिए गए हैं, याचिकाकर्ता का मोबाइल फोन पुलिस के पास है।
उपरोक्त तथ्यों के मद्देनजर, यह अदालत एफआईआर नंबर 44/2021 में गिरफ्तारी की स्थिति में याचिकाकर्ता को जमानत देना उपयुक्त पाता है।"
डॉ संदीप मौर्य ने धारा 438 सीआरपीसी के तहत अग्रिम जमानत याचिका दायर की गई थी। 28 जनवरी 2021 को उनके खिलाफ धारा 376 (बलात्कार के लिए सजा) और धारा 328 (अपराध के इरादे से जहर आदि के कारण घायल करना) के तहत एफआईआर दर्ज की गई थी।
शिकायत के तहत, महिला ने आरोप लगाया था कि सफदरजंग अस्पताल में उसके पिता के इलाज के दौरान, याचिकाकर्ता डॉक्टर उसके घर पर आए और शादी के इरादे से अपनी प्रोफाइल दी और उसका प्रोफाइल मांगा।
इसके अलावा, यह आरोप लगाया गया था कि 9 जून 2020 को, उसने उसे अपने आवास पर बुलाया, जहां उसे कथित तौर पर कोल्ड ड्रिंक दी गई, जिसके बाद उसे कुछ भी याद नहीं था। होश आने के बाद उसे एहसास हुआ कि उसका बलात्कार किया गया था और याचिकाकर्ता ने विरोध करने की स्थिति में कथित तौर पर उसे धमकी दी कि वह उसका वीडियो वायरल करेगा।
अभियोजन पक्ष ने आगे आरोप लगाया कि आरोपी ने उसके साथ 17 जून और 16 सितंबर, 2020 को उसके साथ फिर बलात्कार किया।
6 मार्च 2021 को सत्र न्यायालय के इस आधार पर आरोपी की अग्रिम जमानत की अर्जी खारिज कर दी कि याचिकाकर्ता और अभियोजन पक्ष के बीच शादी के वादे के बाद यौन संबंध स्थापित हुए थे और इसलिए याचिकाकर्ता को अग्रिम जमानत नहीं दी जा सकती।
याचिकाकर्ता डॉक्टर की ओर से पेश वरिष्ठ अधिवक्ता मोहित कुमार ने हाईकोर्ट के समक्ष दलील दी कि वह जांच में शामिल हैं, और पुलिस ने उनके मोबाइल फोन को कब्जे में ले लिया है, जिसमें कथित रूप से अभियोजक के फोटो और वीडियो थे।
इसके अलावा, यह तर्क दिया गया कि अभियोजन पक्ष और उसकी बहन के बयान मेल नहीं खाते हैं और याचिकाकर्ता को गिरफ्तार करके कोई उद्देश्य सिद्ध नहीं होगा।
दूसरी ओर, अभियोजन पक्ष की ओर से पेश अधिवक्ता जीनत मलिक ने दलील दी कि याचिकाकर्ता डॉक्टर द्वारा किया गया अपराध "प्रकृति में जघन्य" था और यह उससे शादी करने के वादे के बहाना ही था कि उसने उसके साथ शारीरिक संबंध स्थापित किया।
इसके अलावा, यह तर्क दिया गया कि अभियोजन पक्ष ने याचिकाकर्ता डॉक्टर के कहने पर अज्ञात नंबरों से अश्लील संदेश प्राप्त करना शुरू कर दिया। यह देखते हुए कि अभियोजन पक्ष के शुरुआती और वर्तमान बयानों में विरोधाभास थे, अदालत ने देखा कि मामले में शादी का कोई वादा नहीं था जैसा कि रिकॉर्ड पर दिखाया गया है।
इसके मद्देनजर, न्यायालय ने प्रमोद सूर्यभान पवार बनाम महाराष्ट्र राज्य, (2019) 9 SCC 608 के फैसले पर भरोसा किया, जिसमें सुप्रीम कोर्ट ने कहा था कि "उपरोक्त मामलों से उत्पन्न कानूनी स्थिति को संक्षेप में प्रस्तुत करने के लिए,धारा 375 के संबंध में एक महिला की "सहमति", प्रस्तावित कृत्य के प्रति सक्रिय और तर्कपूर्ण विचार-विमर्श होना चाहिए।
यह स्थापित करने के लिए कि क्या "सहमति" को शादी के वादे से उत्पन्न "तथ्य की गलत धारणा" के जरिए पहुंचाया गया था, दोनों बयानों की स्थापना की जानी चाहिए..."
शुरुआत में, हाईकोर्ट ने याचिकाकर्ता डॉक्टर को अग्रिम जमानत देते हुए तर्क दिया: "अभियोजक एक मेकअप कलाकार है और दिल्ली का निवासी है। यह नहीं कहा जा सकता है कि वह एक भोली महिला है। यह जबरदस्ती यौन हमले का मामला नहीं है। इस समय, रिकॉर्ड पर ऐसा कुछ भी नहीं है जो यह दर्शाता हो कि याचिकाकर्ता ने अभियोजन पक्ष से शादी का वादा किया था और इसलिए अभियोजन पक्ष द्वारा शारीरिक संबंध बनाने के लिए दी गई सहमति एक स्वतंत्र सहमति थी या नहीं यह केवल ट्रायल में तय किया जाएगा।"
याचिकाकर्ता को 50,000 रुपए के पर्सनल बॉन्ड पर और उसी राशि की एक स्योरिटी पर जमानत दी गई।
हाल ही में, उड़ीसा हाईकोर्ट ने कहा था कि झूठी वादाखिलाफी के बहाने अभियोजन पक्ष के साथ यौन संबंध बनाने को परिभाषित करने वाले कानून में संशोधन की जरूरत है।