कानून के तहत किसी को भी एक साथ दो उपचारों को आगे बढ़ाने की अनुमति नहीं है: जम्मू-कश्मीर हाईकोर्ट ने याचिकाकर्ता को फटकार लगाई

Avanish Pathak

13 May 2022 7:18 AM GMT

  • Consider The Establishment Of The State Commission For Protection Of Child Rights In The UT Of J&K

    जम्मू और कश्मीर हाईकोर्ट ने हाल ही में एक आदेश को चुनौती देने के लिए एक पक्ष को फटकार लगाई। उक्त आदेश किसी अन्य अदालत में चुनौती का विषय था।

    जस्टिस संजीव कुमार ने कहा,

    "यह न्यायालय यह समझ नहीं पा रहा है कि याचिकाकर्ता अदालत के समक्ष एक ही आदेश को चुनौती देने की हिम्मत कैसे कर सकता है। कानून के तहत किसी को भी दो उपचारों को एक साथ आगे बढ़ाने की अनुमति नहीं है। याचिकाकर्ता की रिट याचिका, जहां तक ​​​​06.10.2018 के आदेश को चुनौती देती है, पूरी तरह से गलत है और खारिज किए जाने योग्य है।"

    याचिकाकर्ता ने जिला मजिस्ट्रेट/अपर जिला आयुक्त के 8 मार्च 2021 के तीन आदेशों और 06 अक्टूबर 2018 के एक आदेश को चुनौती दी थी।

    याचिकाकर्ता ने 6 कनाल और 17 मरला की भूमि के संबंध में सर्वेक्षण के तहत अलगाव की अनुमति को अस्वीकार करने की सीमा तक संभागीय आयुक्त, कश्मीर द्वारा 06 दिसंबर, 2001 को पारित एक आदेश को भी चुनौती दी थी।

    06 दिसंबर 2001 को पारित आदेश को दी गई चुनौती को खारिज कर दिया गया था क्योंकि याचिकाकर्ता ने याचिका में संबंधित मंडलायुक्त को एक पक्ष के रूप में नहीं रखा था। इसके अलावा, याचिकाकर्ता ने संभागीय आयुक्त के उक्त आदेश को चुनौती देने के लिए इस अदालत से संपर्क करने में 20 साल की देरी की व्याख्या नहीं की और अन्यथा भी, वर्तमान मामले में उसका कोई लोकस नहीं था।

    जिलाधिकारी द्वारा 06 अक्टूबर, 2018 को पारित आदेश को चुनौती दिये जाने के संबंध में याचिकाकर्ता ने स्वयं स्वीकार किया कि मामला वित्तीय आयुक्त के समक्ष लंबित है।

    8 मार्च 2021 के आदेशों को चुनौती देने मे मामले में मजिस्ट्रेट ने तहसीलदार को सेब फलों की नीलाम राशि माइग्रेंट के एटॉर्नी यानी प्रतिवादी संख्या 4 के पक्ष में जारी करने का निर्देश दिया था।

    यह बताया गया कि ग्राम राम नगरी में विभिन्न सर्वेक्षण संख्याओं के अंतर्गत आने वाली 12 कनाल और 13 मरला की विषय भूमि जम्मू-कश्मीर प्रवासी अचल संपत्ति (परिरक्षण, संरक्षण और संकट बिक्री पर संयम) अधिनियम, 1997 की धारा 4 और 5 के तहत जिला मजिस्ट्रेट के समक्ष कार्यवाही का विषय था।

    कोर्ट ने कहा कि जिलाधिकारी ने आगे तहसीलदार को संबंधित जमीन पर खड़े पेड़ों से सेब के फल तोड़ने और उपज की बिक्री जमा करने के लिए एक बैंक खाता खोलने का निर्देश दिया था।

    अदालत ने कहा कि चूंकि मामला अपीलीय प्राधिकारी के समक्ष विचाराधीन है, इसलिए जिला मजिस्ट्रेट अपने स्वयं के आदेश को संशोधित करने और तहसीलदार को प्रवासी के एटॉर्नी होल्डर के पक्ष में नीलामी की गई राशि जारी करने का निर्देश देने के लिए सक्षम नहीं है।

    अदालत ने कहा कि याचिका में चुनौती दिए गए 8 मार्च 2021 के आदेश को संशोधित किया जाना चाहिए ताकि यह प्रावधान किया जा सके कि 6 अक्टूबर 2018 के आदेश के अनुसार विषय भूमि जिला मजिस्ट्रेट के कब्जे और हिरासत में रहेगी, सिवाय इसके कि भूमि की माप 6 कनाल एवं 17 मरला है, जिला मजिस्ट्रेट के 08.03.2021 के आदेश के अनुसार, विषय भूमि से पैदा राश‌ि को तहसीलदार द्वारा खोले गए खाते में जमा किया जाएगा।

    अदालत ने वित्तीय आयुक्त के समक्ष लंबित विवाद को अंतिम रूप से निर्ण‌ित होने तक राशि को उसके अधिकारी पक्ष को वितरित करने का आदेश दिया।

    केस शीर्षक: मुजफ्फर अहमद डार बनाम आयुक्त सचिव और अन्य।

    आदेश पढ़ने/डाउनलोड करने के लिए यहां क्लिक करें

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