महिलाओं और बच्चों के खिलाफ जघन्य अपराध का मामला-जांच में किसी भी तरह की ढिलाई नहीं बरती जानी चाहिएःझारखंड हाईकोर्ट ने घटिया जांच के लिए पुलिस को फटकार लगाई

LiveLaw News Network

17 Oct 2020 5:30 AM GMT

  • महिलाओं और बच्चों के खिलाफ जघन्य अपराध का मामला-जांच में किसी भी तरह की  ढिलाई नहीं बरती जानी चाहिएःझारखंड हाईकोर्ट ने घटिया जांच के लिए पुलिस को फटकार लगाई

    झारखंड हाईकोर्ट ने सोमवार (12 अक्टूबर) को राज्य पुलिस को एक मामले की घटिया जांच करने के मामले में कड़ी फटकार लगाई है। इस मामले में एक महिला अपने तीन नाबालिग बच्चों के साथ जल गई थी और बाद में उनकी मौत हो गई थी। वहीं महिला व उसके बच्चों को जलाकर मारने का आरोप उसके ससुरालियों के खिलाफ लगाया गया है।

    न्यायालय के समक्ष यह प्रस्तुत किया गया कि पुलिस जांच से छेड़छाड़ करने के सभी प्रयास कर रही है और आरोपी व्यक्तियों की मदद करने के लिए भी प्रयास कर रही है ताकि वे कानून के शिकंजे से बच सकें।

    इस पर न्यायमूर्ति आनंद सेन की खंडपीठ ने कहा कि,

    ''मामले की जांच से छेड़छाड़ करने और आरोपी व्यक्तियों की मदद करने का आरोप बहुत गंभीर आरोप है।''

    खंडपीठ ने आगे कहा,

    ''पुलिस इस मामले में एक जघन्य अपराध की जांच कर रही है,इसलिए उसे अपराध की जांच करते समय पूरी जिम्मेदारी के साथ कार्रवाई करनी चाहिए। महिलाओं व बच्चों के खिलाफ किए गए जघन्य अपराध की जांच करते समय किसी भी तरह की ढिलाई या शिथिलता के लिए कोई जगह नहीं है। ऐसे मामलों में त्रुटि का मार्जिन शून्य होना चाहिए।''

    मामले के तथ्य

    मामले के याचिकाकर्ता द्वारा दी की गई पहली सूचना रिपोर्ट के आधार पर एक मामला दर्ज किया गया था। इस मामले में भारतीय दंड संहिता की धारा 302, 120 बी और 34 के तहत प्राथमिकी दर्ज की गई थी।

    इस मामले में याचिकाकर्ता की बेटी के साथ-साथ उसके तीन नाबालिग बच्चों की भी गंभीर रूप से जलने के कारण मौत हो गई थी। एफआईआर दर्ज कराते समय सूचना देने वाले ने बताया था कि उसकी बेटी की शादी छह साल पहले हुई थी।

    09 जून 2020 को सुबह के समय याचिकाकर्ता को सूचना मिली थी कि उनकी बेटी अपने तीन नाबालिग बच्चों के साथ जल गई है और उनका इलाज राजधान्वर के रेफरल अस्पताल में चल रहा है।

    उसने प्राथमिकी में बताया था कि डॉक्टर और पुलिस कर्मियों की उपस्थिति में, उसकी बेटी ने उसे बताया था कि उसके पति राजेंद्र कुमार यादव और पांच अन्य नामांकित व्यक्तियों ने उसे और उसके बच्चों को जलाया था।

    इस रिट आवेदन में, याचिकाकर्ता ने नामजद अभियुक्तों के खिलाफ उचित कानूनी कार्रवाई करने की प्रार्थना की है। उसने दलील दी है कि उनके खिलाफ कोई कार्रवाई नहीं की गई है और वे आराम से घूम रहे हैं। इतना ही नहीं वह बार-बार याचिकाकर्ता को धमकी दे रहे हैं कि वह कोई कानूनी कार्रवाई न करें।

    याचिकाकर्ता ने यह भी प्रार्थना की थी कि जांच अधिकारी और अन्य पुलिस अधिकारियों के खिलाफ विभागीय कार्रवाई शुरू करने के लिए निर्देश दिया जाए क्योंकि इन सभी ने आरोपी व्यक्तियों की मदद करने में कानून के उद्देश्य को हराने का काम किया है।

    न्यायालय का अवलोकन

    याचिकाकर्ता के तर्क और बयानों से, जो याचिका में किए गए थे, अदालत ने पाया कि जांच अधिकारी और पुलिस अधिकारियों के खिलाफ गंभीर आरोप लगाए गए थे।

    केस डायरी का अवलोकन करने के बाद न्यायालय ने इस संवेदनशील और जघन्य अपराध की जांच के तरीके को देखकर हैरानी प्रकट की। कोर्ट ने कहा कि केवल जांच ही नहीं बल्कि पर्यवेक्षण भी पेशेवर तरीके से या गंभीरता से नहीं किया गया था।

    इस संदर्भ में, न्यायालय ने कहा कि,

    ''इस बात पर आश्चर्य हो रहा है कि मुझे केस डायरी में डॉक्टर या नर्सों का कोई बयान नहीं मिला है। न ही इस तथ्य के संबंध में कुछ उल्लेख किया गया है कि क्या कोई डॉक्टर या नर्स मौजूद था या नहीं? इस बिंदु पर जांच रिपोर्ट में कुछ नहीं कहा गया है। न ही यह बताने के लिए रिकॉर्ड पर कुछ भी है कि किसी भी डॉक्टर या नर्स के समक्ष याचिकाकर्ता की बेटी ने कोई बयान नहीं दिया था। इस पहलू पर कोई जांच नहीं की गई है।''

    आगे कोर्ट ने कहा,

    ''यह थ्योरी या तथ्य (कि मृतका का गोपाल यादव पुत्र स्वर्गीय कार्तिक महतो के साथ कुछ संबंध था और मृतका उसके संपर्क में रहती थी) ,जिसे पर्यवेक्षण अधिकारी ने नोट किया है (केस डायरी में), उसे किसी भी सामग्री का कोई समर्थन नहीं मिला है। इस कोर्ट के सामने पेश की गई पूरी केस डायरी में, मुझे किसी भी गवाह का कोई बयान नहीं मिला है, जिसने उपरोक्त तथ्य को बताया है। न्यायालय यह समझने में असफल रहा कि कैसे और कहां से पर्यवेक्षण अधिकारी ने इस तथ्य को एकत्रित किया है।''

    न्यायालय इस बात से भी आश्चर्यचकित था कि मरने से पहले दिए गए बयान की रिकार्ड की गई वीडियो की प्रतिलेखन को क्यों इस मामले की पूरी केस डायरी में कोई जगह नहीं मिली? जबकि जो कुछ कहा गया है उसका सार मामले की डायरी में बताया गया है।

    कोर्ट ने पाया कि,

    '' क्या जांच अधिकारी या पर्यवेक्षण अधिकारी कुछ छिपाने की कोशिश कर रहे हैं?''

    इसके अलावा, अदालत ने टिप्पणी करते हुए कहा कि,

    ''मुझे लगता है कि किसी भी सामग्री के बिना ही पर्यवेक्षी अधिकारी ने एक नई थ्योरी को जन्म दे दिया कि यह घटना आत्महत्या का मामला भी हो सकती है। किस आधार पर पर्यवेक्षण अधिकारी ने यह थ्योरी बनाई है,इस बारे में भी कुछ नहीं बताया गया। केस डायरी में ऐसा कुछ नहीं है,जिसके आधार पर इस तरह की थ्योरी बनाई जा सकें।''

    पर्यवेक्षण अधिकारी की भूमिका के बारे में न्यायालय की टिप्पणियां

    प्रथम दृष्टया, न्यायालय ने पाया है कि न तो जांच अधिकारी और न ही पर्यवेक्षक प्राधिकरण या अधिकारी ने अपने कर्तव्यों का पालन किया है और यदि यह उनकी जांच का तरीका है, तो अभियोजन मुकदमे की सुनवाई के दौरान सफल नहीं हो सकता है।

    न्यायालय ने इस तथ्य पर भी ध्यान दिया कि 08 अक्टूबर 2020 को W.P. (Cr.) No. 127 of 2020 में भी न्यायालय ने जांच व पर्यवेक्षण के तरीके पर कड़ी आपत्ति जाहिर की थी। वह मामला भी गिरीडीह जिले में एक घटना से संबंधित था।

    अब इस मामले में, जब न्यायालय ने पुलिस अधीक्षक, गिरीडीह से सवाल किया कि क्या पर्यवेक्षण अधिकारी वही अधिकारी है? तो उन्होंने रिकॉर्डों के माध्यम से जाने के बाद कहा कि उस विशेष मामले (W.P. (Cr.) No. 127 of 2020 )का पर्यवेक्षक प्राधिकरण भी यही था,जो इस मामले का पर्यवेक्षक अधिकारी है।

    उस मामले में भी यही आरोप लगाया गया था कि प्राधिकरण आरोपी व्यक्तियों की मदद कर रहा था। इस प्रकार, न्यायालय ने पाया कि दो मामलों में प्रथम दृष्टया एक ही पर्यवेक्षण अधिकारी का आचरण, जो एसडीपीओ, खोरी महुआ है, संदेह के बादल के अधीन आ गया है, जिसकी जांच उच्च अधिकारी द्वारा की जाने की आवश्यकता है।

    डीजीपी को कोर्ट के निर्देश

    कोर्ट के निर्देश पर, पुलिस महानिदेशक, झारखंड कोर्ट के समक्ष उपस्थित हुए। पूरे मामले का आकलन करने के बाद और जिस तरह से पर्यवेक्षक अधिकारी और जांच अधिकारी ने मामले की जांच की थी, उसे देखते हुए, उन्होंने अदालत के समक्ष प्रस्तुत किया कि वे इस मामले की जांच की जिम्मेदारी सीआईडी को सौंप रहे हैं।

    उन्होंने यह भी प्रस्तुत किया कि वह जांच अधिकारी और पर्यवेक्षण प्राधिकरण के खिलाफ एक जांच स्थापित करेंगे, और इस बीच वह कदम उठाएंगे ताकि संबंधित पुलिस कर्मी इस स्थिति में न रहे कि वह मामले की जांच में हस्तक्षेप कर पाए।

    इस मामले में सामने आए तथ्यों और पुलिस महानिदेशक की तरफ से निष्पक्ष रूप से प्रस्तुत की गई दलीलों पर विचार करते हुए, न्यायालय ने पुलिस महानिदेशक को निर्देश दिया है कि वह इस मामले की जांच को सीआईडी को तुरंत हस्तांतरित कर दें।

    आगे यह भी निर्देशित किया गया था कि उनको जांच अधिकारी और पर्यवेक्षक प्राधिकरण की भूमिका का पता लगाने के लिए एक स्वतंत्र जांच स्थापित करनी चाहिए। वहीं उनके खिलाफ कार्रवाई करने के लिए तथ्य मिले तो उसी अनुसार आगे की कार्रवाई की जाए।

    यह भी स्पष्ट किया गया है कि झारखंड के पुलिस महानिदेशक द्वारा यह सुनिश्चित करने के लिए कदम उठाए जाने चाहिए कि पर्यवेक्षक अधिकारी या जांच अधिकारी किसी भी तरीके से इस मामले की जांच से न जुड़ पाए। यदि संभव हो तो जब तक उनके खिलाफ जांच पूरी न हो जाए,उन्हें किसी भी आपराधिक मामले की जांच न सौंपी जाए या किसी भी आपराधिक मामले की जांच के पर्यवेक्षण की जिम्मेदारी न दी जाए।

    पूर्वोक्त टिप्पणियों और निर्देशों के साथ, इस रिट एप्लिकेशन का निपटारा कर दिया गया है।

    आदेश की काॅपी यहां से डाउनलोड करें।



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