" हम केदारनाथ के फैसले से परे नहीं जा सकते": पंजाब और हरियाणा उच्च न्यायालय ने 'देशद्रोह कानून' के खिलाफ दायर याचिका खारिज की

LiveLaw News Network

4 Aug 2021 2:48 PM GMT

  •  हम केदारनाथ के फैसले से परे नहीं जा सकते: पंजाब और हरियाणा उच्च न्यायालय ने देशद्रोह कानून के खिलाफ दायर याचिका खारिज की

    इस बात पर जोर देते हुए कि केदारनाथ सिंह बनाम बिहार राज्य 1962, AIR 955 में सुप्रीम कोर्ट का फैसला बाध्यकारी है, पंजाब और हरियाणा उच्च न्यायालय ने पिछले हफ्ते देशद्रोह कानून की संवैधानिक वैधता (धारा 124 ए IPC) के खिलाफ दायर याचिका को खारिज कर दिया।

    चीफ जस्टिस रविशंकर झा और जस्टिस अरुण पल्ली की खंडपीठ ने कहा कि उसके पास केदारनाथ फैसले से आगे जाने और उस प्रावधान की वैधता की जांच करने की कोई शक्ति नहीं है, जिसे सुप्रीम कोर्ट ने पहले ही बरकरार रखा है।

    केदारनाथ सिंह फैसले में , सुप्रीम कोर्ट की संविधान पीठ [चीफ जस्टिस बीपी सिन्हा और जस्टिस एके सरकार, जस्टिस जेआर मुधोलकर, जस्टिस एन राजगोपाल अय्यंगार और जस्टिस एसके दास] ने IPC की धारा 124 ए की वैधता को बरकरार रखा था।

    मौजूदा मामले में हरियाणा प्रगतिशील किसान संघ ने एडवोकेट प्रदीप कुमार रापरिया के जरिए IPC, 1860 की धारा 124 ए की संवैधानिक वैधता को इस आधार पर चुनौती दी थी कि यह संविधान के अनुच्छेद 14, 19 (1) (ए) और 21 के खिलाफ है।

    याचिका में कहा गया है कि देशद्रोह के कानून का दुरुपयोग अन‌ियंत्रित रूप से जारी है, आलोचकों को चुप कराने के लिए मामले दर्ज किए जा रहे हैं, जिससे विरोध के अधिकार पर भयावह प्रभाव पैदा हो रहा है।

    याचिका में आगे 11 जुलाई को विधान सभा उपाध्यक्ष रण‌‌‌बीर गांगवा के काफिले पर क‌‌थ‌ित हमले के आरोप में 100 किसानों के खिलाफ दर्ज की गई एफआईआर में धारा 124 ए और 307 को हटाने और रद्द करने की प्रार्थना की गई है।

    [नोट: यह मानते हुए कि "इस मामले में IPC की धारा 124 ए के तहत देशद्रोह का अपराध संदिग्ध है" सेशन कोर्ट, सिरसा ने हाल ही में उन पांच किसानों को जमानत दी थी , जिन पर विधानसभा डिप्टी स्पीकर रणबीर गंगवा के काफिले पर कथित रूप से हमला करने के आरोप में देशद्रोह का आरोप लगाया गया था।]

    हाईकोर्ट ने संघ की ओर से पेश की गई याचिका को खारिज करने के लिए निम्न कारकों को ध्यान में रखा-

    -जिन व्यक्तियों के खिलाफ एफआईआर दर्ज की गई है, वे न्यायालय के समक्ष याचिकाकर्ता नहीं हैं और रिकॉर्ड में ऐसा कुछ भी नहीं है, जिससे यह संकेत मिले कि उक्त व्यक्तियों ने याचिकाकर्ता को अपनी ओर से कार्य करने के लिए अधिकृत किया है।

    -याचिकाकर्ता संघ कथ‌ित रूप से हरियाणा के विभिन्न जिलों के किसानों द्वारा किसानों के कल्याण के लिए गठित अधिवक्ताओं का एक समूह है, जबकि संकल्प , दिनांक 05.05.2019 (अनुलग्नक पी -1) से पता चलता है कि एक सार्वजनिक धर्मार्थ ट्रस्ट (सबका मंगल हो) हरियाणा प्रगतिशील किसान संघ को "ट्रस्ट के एक एडवोकेसी ग्रुप के रूप में" गठन करने का दावा करता है।"

    इस प्रकार, याचिकाकर्ता, कानून में कोई इकाई नहीं है और आवश्यक सामग्री की कमी के लिए, हम यह नहीं समझ सकते हैं कि यह याचिका कैसे सुनवाई योग्य होगी।"

    इसके अलावा, यह देखते हुए कि देशद्रोह कानून के खिलफ दायर 4 याचिकाएं पहले से ही सुप्रीम कोर्ट के समक्ष लंबित हैं, हाईकोर्ट ने कहा कि उसके पास याचिका को खारिज करने अलावा विकल्प नहीं है, हालांकि, याचिकाकर्ता को सुप्रीम कोर्ट के समक्ष लंबित कार्यवाही में शामिल होने की स्वतंत्रता दी गई थी।

    केस टाइटिल- हरियाणा प्रगतिशील किसान संघ बनाम यून‌ियन ऑफ इंडिया और अन्य

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