जहां तक संभव हो गैर-सरकारी संगठनों को 'केंद्रीय' या 'राज्य' या 'राष्ट्रीय' नाम का उपयोग करने से बचना चाहिए : केरल हाईकोर्ट

LiveLaw News Network

30 Jan 2021 12:25 PM GMT

  • जहां तक संभव हो गैर-सरकारी संगठनों को केंद्रीय या राज्य या राष्ट्रीय नाम का उपयोग करने से बचना चाहिए : केरल हाईकोर्ट

    Kerala High Court

    केरल हाईकोर्ट ने कहा कि गैर- सरकारी संगठनों (एनजीओ) या एसोसिएशन या समाज, जहां तक संभव हो 'केंद्रीय' या 'राज्य' या 'राष्ट्रीय' नाम का इस्तेमाल करने से बचना चाहिए।

    मुख्य न्यायाधीश एस. मणिकुमार और न्यायमूर्ति शाजी पी. चैली ने रजिस्ट्रार जनरल ऑफ रजिस्ट्रेशन को एक निर्णय लेने का निर्देश दिया, जिसमें पंजीकरण करते समय किसी भी निजी संस्था को यह आभास नहीं देना चाहिए कि, यह एक वैधानिक निकाय है।

    कोर्ट ने राज्य पर्यावरण संरक्षण परिषद द्वारा दायर एक याचिका, जिसमें कन्नूर जिले के चेलड स्थित एक गैर सरकारी संगठन, जो एक नियम के उल्लंघन में एक इमारत के निर्माण को चुनौती दी थी, के निपटारे का आदेश दिया गया।

    याचिका पर विचार करते हुए पीठ ने कहा कि याचिकाकर्ता का नाम राज्य पर्यावरण संरक्षण परिषद के रूप में वर्णित है। इसलिए, इसने इस बात पर विचार करने के लिए पंजीकरण महानिरीक्षक से गुहार लगाई कि, ऐसे एनजीओ या एसोसिएशन या सोसाइटी को विशिष्ट शब्द केंद्र या राज्य या राष्ट्रीय के साथ पंजीकरण करने की अनुमति दी जाए।

    बेंच ने कहा,

    "गैर-सरकारी संगठनों या एसोसिएशन या सोसाइटी द्वारा जनता को किसी भी अधिनियम के तहत राज्य/केंद्र जैसा भी मामला हो , के तरह धारणा नहीं देनी चाहिए कि यह एक वैधानिक निकाय है । हालांकि, इस मामले में यह दिखता है कि याचिकाकर्ता एक धारणा देता है कि याचिकाकर्ता एक वैधानिक निकाय है। यह कहने की आवश्यकता नहीं है कि केरल सोसायटी पंजीकरण अधिनियम, 1860 के तहत पंजीकृत गैर-सरकारी संगठनों या संगठनों को जहां तक संभव हो केंद्र या राज्य या राष्ट्रीय का उपयोग करने से बचना चाहिए।"

    कोर्ट ने आदेश देते हुए कहा कि,

    "हम पंजीकरण प्राधिकरण को एक निर्णय लेने के लिए निर्देशित करते हैं कि पंजीकरण करते समय किसी भी निजी संस्था को यह आभास नहीं होना चाहिए कि वह एक वैधानिक निकाय है। केरल राज्य के पंजीकरण महानिरीक्षक को इस निर्णय की एक प्रति प्राप्त होने की तारीख से दो महीने के भीतर उचित निर्णय लेने का निर्देश दिया जाता है।"

    केस: स्टेट इंवॉयरमेंट प्रोटेक्शन काउंसिल बनाम केरल राज्य [WP (C) .No.2366 of 2015 (S)]


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