एनडीपीएस अपराध संगठित अपराध का हिस्सा, प्रतिबं‌धित पदार्थ की ‌रिकवरी दोषसिद्धि के लिए जरूरी नहीं: गुवाहाटी हाईकोर्ट

Avanish Pathak

13 May 2022 11:37 AM IST

  • एनडीपीएस अपराध संगठित अपराध का हिस्सा, प्रतिबं‌धित पदार्थ की ‌रिकवरी दोषसिद्धि के लिए जरूरी नहीं: गुवाहाटी हाईकोर्ट

    गुवाहाटी हाईकोर्ट ने हाल ही में एनडीपीएस एक्ट, 1985 की धारा 21 (सी)/29 के तहत दर्ज मामले में एक व्यक्ति को अग्रिम जमानत देने से इनकार कर दिया। कोर्ट ने कहा कि आरोपी की गिरफ्तारी, हिरासत या यहां तक ​​कि उसकी सजा के लिए प्रतिबंधित पदार्थ की रिकवरी या जब्ती आवश्यक नहीं है।

    जस्टिस संजय कुमार मेधी ने कहा कि ऐसा इसलिए है क्योंकि कानून के तहत अपराध एक संगठित अपराध का हिस्सा है और अभियोजन के पक्ष में कोई भी ठोस और पुष्टि करने वाली सामग्री उसके अपराध को स्थापित करने के लिए पर्याप्त होगी।

    उन्होंने कहा,

    "इस कोर्ट ने विद्वान एपीपी, असम की प्रस्तुतियों में बल पाया कि एनडीपीएस एक्ट के तहत अपराध एक संगठित अपराध का हिस्सा हैं, जिसमें विभिन्न आरोपी व्यक्तियों द्वारा विभिन्न भूमिकाएं निभाई जाती हैं। इसलिए, रिकवरी या जब्ती को गिरफ्तारी/निरोध के लिए या यहां तक ​​कि दोषसिद्धि के लिए भी अनिवार्य शर्त नहीं माना जा सकता है, यदि कोई अन्य ठोस और पुष्टि करने वाली सामग्री मौजूद है, जो कि मौजूदा मामले में प्रचुर मात्रा में उपलब्ध है।"

    कोर्ट ने यह भी पाया कि एनडीपीएस एक्ट से जुड़े एक मामले में, विभिन्न कारकों को ध्यान में रखा जाना चाहिए जैसे कि प्रतिबंधित पदार्थ की मात्रा, पदार्थ की प्रकृति, शामिल होने की प्रकृति आदि। मौजूदा मामले में, प्रतिबंधित पदार्थ वाणिज्यिक मात्रा में है और पदार्थ रासायनिक रूप से निर्मित दवा है।

    कोर्ट ने कहा, धारा 37 में कहा गया है कि जमानत देने से पहले, प्रासंगिक कारक यह है कि न्यायालय को इस बात से संतुष्ट होना चाहिए कि प्रथम दृष्टया याचिकाकर्ता अपराध का दोषी नहीं है और याचिकाकर्ता को भी अदालत को संतुष्ट करना होगा कि यदि जमानत दी जाती है, उसके आगे और अपराध करने की आशंका नहीं है। मौजूदा मामले में उपरोक्त दो बातें पूरी होती नहीं दिख रही थीं, और इसलिए जमानत अर्जी खारिज की जाती है।

    याचिकाकर्ता ने एनडीपीएस एक्ट की धारा 21(सी)/29 के तहत दर्ज मामले के संबंध में सीआरपीसी की धारा 438 के तहत प्री-अरेस्ट बेल की मांग करते हुए एक आवेदन दायर किया था।

    याचिकाकर्ता का मामला यह था कि एफआईआर में लगाए गए आरोप गलत ‌थे, हालांकि यह सच है कि एक ट्रक को रोका गया था और तलाशी में 276 डिब्बों में रखीं 44,160 बोतलों में एस्कुफ कफ सिरप बरामद किया गया था, जिसके दस्तावेज भी मौजूद नहीं थे। याचिकाकर्ता का कहना था कि जब्त किया गया मादक पदार्थ याचिकाकर्ता की एजेंसी ने करीमगंज जिले के एक वितरक को बेचा था।

    याचिकाकर्ता का आगे मामला यह था कि अनिरुद्ध कुमार सिंह नाम का एक व्यक्ति नारंगी में मेसर्स हेमटेक फार्मास्यूटिकल्स नाम की फर्म चला रहा था। उसी अनिरुद्ध कुमार सिंह ने मौजूदा याचिकाकर्ता से अनुरोध किया था, जो एएनएम फार्मास्युटिकल्स के नाम पर अपनी डिस्ट्रीब्यूटरशिप चलाता था कि वह उसकी भी डिस्ट्रीब्यूटरशिप चलाए और उसी के अनुसार याचिकाकर्ता के पक्ष में एक पावर ऑफ अटॉर्नी 21.01.2021 को निष्पादित किया गया, जिसके जर‌िए याचिकाकर्ता मैसर्स हेमटेक फार्मास्यूटिकल्स का व्यवसाय चला रहा है।

    कोर्ट ने केस डायरी को देखने के बाद 07 जुलाई, 2021 के आदेश में कहा कि एक मुद्दा यह है कि जीएसटी चालान निर्मित या वास्तविक हैं या नहीं और इस संबंध में जांच अधिकारी को एक रिपोर्ट दर्ज करने का निर्देश दिया। हालांकि इस बीच याचिकाकर्ता के पक्ष में अंतरिम आदेश दे दिया गया।

    कोर्ट ने मौजूदा आदेश में दर्ज किया कि सुनवाई की पिछली तारीख पर अपडेटेड केस डायरी पेश की गई, जिसमें मेसर्स नलिनी ड्रग्स डिस्ट्रीब्यूटर के मालिक अरूप कांति घोष के बयान जांच अधिकारी के नोट के साथ शामिल था। जांच अधिकारी ने स्थान का दौरा किया था।

    यह देखा गया कि मालिक ने विशेष रूप से कहा है कि मौजूदा प्रकृति की कोई भी खेप कभी नहीं मंगाई गई थी और फार्मेसी के लिए सभी दवाएं स्थानीय स्टॉकिस्टों से एकत्र की जाती हैं और कभी भी बराक वैली के बाहर से कोई दवा नहीं खरीदी जाती है। मालिक ने लाइसेंस के संबंध में कुछ गड़बड़ी का भी संदेह किया।

    याचिकाकर्ता ने तर्क दिया कि दिनांक 06.07.2021 के अंतरिम आदेश के बाद, याचिकाकर्ता 15.07.2021 को जांच अधिकारी के समक्ष पेश हुआ और किसी भी दुरुपयोग का कोई उदाहरण नहीं है। अरूप कांति घोष के बयान सहित अपडेटेड डायरी में प्रस्तुत सामग्री के संबंध में, विद्वान एडवोकेट ने निवेदन किया कि शायद किसी भी जटिलता से बचने के लिए मालिक ने मामले से बचने की कोशिश की है।

    राज्य की ओर से पेश अतिरिक्त लोक अभियोजक ने प्रस्तुत किया कि खेप की आवाजाही की शुरुआत से ही कार्टून में बड़ी संख्या में बोतलें रखी थी, जो कि एनडीपीएस एक्ट के तहत एक मादक पदार्थ है क्योंकि कफ सिरप में कोडीन नामक पदार्थ होता है। जीएसटी चालान सहित विभिन्न चरणों में विसंगतियां/अवैधता रही हैं और इसलिए, याचिकाकर्ता को दी गई अंतरिम सुरक्षा को जारी रखने के लिए मौजूदा मामला उपयुक्त नहीं हो सकता है।

    याचिकाकर्ता का जोर इस तथ्य पर था कि बाद की बिलों में जीएसटी एक्ट का उल्लंघन हो सकता है, लेकिन यह एनडीपीएस एक्ट का उल्लंघन नहीं हो सकता है।

    याचिकाकर्ताओं ने यह भी तर्क दिया था कि माल मादक पदार्थ हैं, लेकिन यह एक्ट की धारा 8 (सी) के अपवाद के तहत आएंगे और आवश्यक दस्तावेजों के साथ इसका परिवहन एनडीपीएस नियमों के नियम 67 (4) के प्रावधान के तहत किया जा सकता है।

    अदालत ने जांच अधिकारी को मामले की जांच के लिए हर संभव प्रयास करने का निर्देश दिया ताकि अपराध में शामिल व्यक्तियों पर कानून के अनुसार सख्ती से कार्रवाई की जा सके।

    कोर्ट ने एनडीपीएस एक्ट के मूल उद्देश्य को ध्यान में रखते हुए, यानि ड्रग्स के खतरे और समाज पर इसके दुष्प्रभावों को रोकने के लिए, यह माना कि मौजूदा मामले में अग्रिम जमानत देने का मामला नहीं बनाया गया है। कोर्ट ने यह भी स्पष्ट किया कि किए गए अवलोकन प्रकृति में अस्थायी हैं और मुकदमे में किसी भी पक्ष के लिए पूर्वाग्रह का कारण नहीं होंगे। इन्हीं टिप्पणियों के साथ कोर्ट ने जमानत अर्जी खारिज कर दी।

    याचिकाकर्ता का प्रतिनिधित्व एडवोकेट एएम बोरा ने किया।

    केस शीर्षक: अमल दास बनाम असम राज्य

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