जब स्वामित्व पर विवाद हो तो स्वामित्व विलेख म्यूटेशन ऑर्डर का आधार नहीं हो सकताः आंध्र प्रदेश हाईकोर्ट

Avanish Pathak

14 Oct 2022 6:22 AM GMT

  • जब स्वामित्व पर विवाद हो तो स्वामित्व विलेख म्यूटेशन ऑर्डर का आधार नहीं हो सकताः आंध्र प्रदेश हाईकोर्ट

    आंध्र प्रदेश हाईकोर्ट ने नगर आयुक्त, तिरुपति द्वारा पारित म्यूटेशन (Mutation) आदेश और म्यूटेशन कार्यवाही खिलाफ दायर एक रिट याचिका पर सुनवाई करते हुए कहा कि म्यूटेशन आदेश कब्जे के आधार पर किए जाने चाहिए न कि स्वामित्व विलेख (Title deed) के आधार पर, जब स्वामित्व पर ही विवाद हो।

    याचिकाकर्ता ने आयुक्त के समक्ष हुई आक्षेपित म्यूटेशन कार्यवाही को अवैध बताया था और उसे रद्दकर रिट ऑफ सर्टिओरी जारी करने के लिए याचिका दायर की थी। साथ ही आयुक्त को जारी किए गए म्यूटेशन आदेश को रद्द करने और संबंधित रिकॉर्ड में याचिकाकर्ता के नाम को बहाल करने का निर्देश देने के लिए याचिका दायर की थी।

    याचिकाकर्ता मोहन रेड्डी नामक व्यक्ति की विधवा थी, जो एक इमारत के पूर्ण मालिक थे। 2006 में मोहन रेड्डी ने अपने भाई बाबू रेड्डी के पक्ष में एक रजिस्टर्ड गिफ्ट डीड बनाया, जिससे वह इमारत का पूर्ण मालिक बन गया। हालांकि बाबू रेड्डी की मृत्यु के बाद मोहन रेड्डी ने 2010 में किए गए एक निरसन विलेख (Revocation Deed) के माध्यम से उपहार विलेख को रद्द कर दिया। याचिकाकर्ता ने दावा किया कि चूंकि आयुक्त को निरसन विलेख की जानकारी नहीं थी, उसी के कारण तीसरे प्रतिवादी- बाबू रेड्डी की पत्नी के पक्ष में गलत म्यूटेशन आदेश पारित हुआ।

    तीसरे प्रतिवादी ने तर्क दिया कि उपहार विलेख के आधार पर बाबू रेड्डी पूरे मकान के मालिक बन गए थे और दानकर्ता की मृत्यु के बाद उपहार विलेख को रद्द नहीं किया जा सकता था।

    यह सुनिश्चित करते हुए कि हाईकोर्ट के समक्ष संपत्ति के स्वामित्व के निर्धारण का मुद्दा नहीं था, न्यायालय ने माना कि वर्तमान प्रकृति में आयुक्त के समक्ष कार्यवाही संपत्ति कर के संग्रह के मकसद के लिए थी और ऐसी कार्यवाही स्वामित्व के निर्धारण के लिए नहीं की जा सकती थी।

    अदालत ने कहा कि अगर नामांतरण की कार्यवाही में ऐसा निर्धारण किया जाता है तो संपत्ति के सही मालिक के स्वामित्व पर स्वामित्व के किसी भी निर्धारण का कोई कानूनी प्रभाव नहीं होगा।

    जस्टिस रवि नाथ तिलहरी ने एच लश्मैया रेड्डी और अन्य बनाम एल वेंकटेश रेड्डी, (2015) 14 SCC 784 और नगर निगम, औरंगाबाद बनाम महाराष्ट्र राज्य और अन्य, (2015) 16 SCC 689 में सुप्रीम कोर्ट के फैसलों पर भरोसा किया, दोनों निर्णयों में यह माना गया कि उत्परिवर्तन प्रविष्टियां किसी भी टाइटल को व्यक्त या समाप्त नहीं करती हैं और यह कि ऐसी प्रविष्टियां केवल भू-राजस्व के संग्रह के उद्देश्यों के लिए प्रासंगिक हैं।

    अदालत ने कलावती बनाम राजस्व और अन्य बोर्ड, AIR 2022 CC 1814 में इलाहाबाद हाईकोर्ट के फैसले पर भी भरोसा किया, जिसमें कहा गया था कि म्यूटेशन कार्यवाही में पारित आदेशों के खिलाफ एक रिट याचिका पर विचार किया जा सकता है, जब म्यूटेशन का निर्देश कब्जे के आधार पर या टाइटल डीड के आधार पर नहीं दिया गया बल्‍कि संपत्ति के उत्तराधिकार से संबंधित प्रश्नों में, प्रतिद्वंद्वी दावों की मेरिट को छूते हुए प्रवेश किया गया है।

    कोर्ट ने कहा,

    "यह केवल टाइटल के निर्विवाद दस्तावेज के मामले में होता है कि टाइटल डीड के आधार पर उत्परिवर्तन किया जा सकता है, लेकिन जहां यह इतने सारे दस्तावेजों के आधार पर स्वामित्व का एक विवादित मामला है, जैसा कि वर्तमान मामले में आयुक्त के पास अधिकार क्षेत्र नहीं था कि वह 14.11.2006 के उपहार विलेख वैध मानते और इसके रद्द करने के 07.09.2010 के विलेख को नियम के विपरीत मानते ...

    14.11.2006 के उपहार विलेख के मद्देनजर स्वामित्व के आधार पर तीसरे प्रतिवादी के पक्ष में उत्परिवर्तन का आदेश कानूनी रूप से पारित नहीं किया जा सकता है। आदेश कब्जे के आधार पर नहीं बल्कि उस टाइटल डीड के आधार पर पारित किया गया है जिसके संबंध में प्रतिस्पर्धा थी।"

    तदनुसार, हाईकोर्ट ने आदेश दिया कि आयुक्त याचिकाकर्ता के नाम को अपने रिकॉर्ड में बदल देगा, यह चेतावनी देते हुए कि इस तरह के उत्परिवर्तन आदेश का किसी भी पक्ष के पक्ष में स्वामित्व की किसी भी घोषणा का प्रभाव नहीं होगा, जिसका टाइटल केवल एक सक्षम अदालत द्वारा तय किया जाएगा।

    केस टाइटल: डॉ पी प्रांजलि बनाम आंध्र प्रदेश राज्य

    केस नंबर: Writ Petion No 1198 of 2022


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