राजस्व रिकॉर्ड में म्यूटेशन एंट्री न तो संपत्ति पर न तो स्वामित्व का सृजन करती है और न ही उसे खत्म करती है: उत्तराखंड हाईकोर्ट

Shahadat

12 Sept 2022 10:36 AM IST

  • राजस्व रिकॉर्ड में म्यूटेशन एंट्री न तो संपत्ति पर न तो स्वामित्व का सृजन करती है और न ही उसे खत्म करती है: उत्तराखंड हाईकोर्ट

    उत्तराखंड हाईकोर्ट ने दोहराया कि राजस्व रिकॉर्ड में संपत्ति का उत्परिवर्तन न तो संपत्ति पर स्वामित्व का सृजन करती है और न ही उसे समाप्त करता है। इसके अलावा, न ही इसका स्वामित्व पर कोई अनुमानात्मक मूल्य है।

    जस्टिस मनोज कुमार तिवारी की ने उक्त टिप्पणी करते हुए कहा,

    "इस प्रकार, कृषि भूमि के संबंध में नाम का उत्परिवर्तन स्वामित्व का सृजन या समाप्ति नहीं करता है और न ही इसका स्वामित्व पर कोई अनुमानित मूल्य है। यह केवल उस व्यक्ति को सक्षम बनाता है जिसके पक्ष में उत्परिवर्तन का आदेश भू-राजस्व का भुगतान करने के लिए किया जाता है। भू-राजस्व अधिनियम 1901 की धारा 34/35 के तहत कार्यवाही प्रकृति में संक्षिप्त हैं, जो उक्त अधिनियम की धारा 40-ए में निहित प्रावधानों के अधीन हैं।"

    जितेंद्र सिंह बनाम मध्य प्रदेश राज्य पर भरोसा किया गया, जहां सुप्रीम कोर्ट ने कहा कि राजस्व रिकॉर्ड में म्यूटेशन एंट्री केवल वित्तीय उद्देश्यों के लिए है। यह किसी व्यक्ति के पक्ष में कोई अधिकार, स्वामित्व या हित प्रदान नहीं करता।

    याचिकाकर्ता तहसीलदार के उस आदेश से व्यथित था जिसमें प्रतिवादी नंबर एक और दो द्वारा दायर आवेदन को राजस्व रिकॉर्ड में याचिकाकर्ता के स्थान पर एक संपत्ति में उनके नाम के उत्परिवर्तन की मांग करते हुए अनुमति दी गई थी। हालांकि, बिक्री विलेख के आधार पर कथित तौर पर उनके पक्ष में निष्पादित किया गया था। याचिकाकर्ता के बहाली आवेदन को तहसीलदार ने खारिज कर दिया और उसकी अपील को सहायक कलेक्टर ने खारिज कर दिया, इसलिए याचिकाकर्ता हाईकोर्ट में गया।

    गौरतलब है कि याचिकाकर्ता ने यह कहते हुए बिक्री विलेख को रद्द करने के लिए एक मुकदमा भी दायर किया कि उसने प्रतिवादी नंबर एक और दो के पक्ष में कोई बिक्री विलेख निष्पादित नहीं किया। बिक्री विलेख ट्रिक फोटोग्राफी द्वारा तैयार किया गया। उक्त वाद को सिविल न्यायाधीश (जे.डी.) द्वारा खारिज कर दिया गया और याचिकाकर्ता की अपील जिला न्यायाधीश, हरिद्वार के समक्ष लंबित है।

    राजस्व रिकॉर्ड में कृषि भूमि के संबंध में नाम का उत्परिवर्तन यूपी भू-राजस्व अधिनियम, 1901 द्वारा नियंत्रित होता है। उक्त अधिनियम की धारा 33(2) (बी) के प्रावधान में प्रावधान है कि खंड (बी) के तहत परिवर्तन को रिकॉर्ड करने की शक्ति का अर्थ स्वामित्व के किसी भी प्रश्न से जुड़े विवाद को तय करने की शक्ति को शामिल करने के लिए नहीं लगाया जाएगा। उक्त अधिनियम की धारा 39(2) के परंतुक में भी इसी प्रकार का प्रावधान किया गया है। उक्त अधिनियम की धारा 40-ए में प्रावधान है कि यदि वह अपने अधिकार की घोषणा के लिए सक्षम अदालत का दरवाजा खटखटाता है तो उत्परिवर्तन का आदेश किसी भी पक्ष के रास्ते में नहीं आएगा।

    कोर्ट ने कहा कि वर्तमान मामले में प्रतिवादियों द्वारा दायर म्यूटेशन आवेदन को तहसीलदार द्वारा अनुमति दी गई। अपीलीय और पुनर्विचार प्राधिकारी ने तहसीलदार द्वारा पारित आदेश की पुष्टि की, जिसके द्वारा उन्होंने उनके पक्ष में निष्पादित बिक्री विलेखों के आधार पर प्रतिवादी नंबर एक और दो के नामों के उत्परिवर्तन का आदेश दिया।

    अदालत ने यह देखा कि राजस्व प्राधिकरण म्यूटेशन आवेदन पर विचार करते समय बिक्री विलेख की वैधता में नहीं जा सकता। इस तरह के प्रश्न का निर्णय केवल सक्षम न्यायालय द्वारा ही किया जा सकता है।

    हाईकोर्ट ने याचिका खारिज करते हुए,

    "यह स्पष्ट है कि उत्परिवर्तन कार्यवाही प्रकृति में सारांश है, जो नियमित मुकदमे में दर्ज किए गए निष्कर्षों के अधीन हैं। चूंकि स्वामित्व का प्रश्न सारांश कार्यवाही में नहीं जा सकता, इसलिए मुझे तहसीलदार द्वारा पारित आदेश में हस्तक्षेप करने का कोई कारण नहीं मिलता है, जैसा कि सहायक कलेक्टर और अतिरिक्त आयुक्त, गढ़वाल ने पुष्टि की है। इस प्रकार, हस्तक्षेप की कोई गुंजाइश नहीं है।"

    ऑर्डर डाउनलोड करने के लिए यहां क्लिक करें




    Next Story