यौन उत्पी‌ड़ित का लेबल देकर एक मां अपनी बेटी की पूरी जिंदगी दांव पर नहीं लगाएगी: त्रिपुरा हाईकोर्ट ने बलात्कार की सजा बरकरार रखी

LiveLaw News Network

7 Jan 2022 9:16 AM GMT

  • यौन उत्पी‌ड़ित का लेबल देकर एक मां अपनी बेटी की पूरी जिंदगी दांव पर नहीं लगाएगी: त्रिपुरा हाईकोर्ट ने बलात्कार की सजा बरकरार रखी

    त्रिपुरा हाईकोर्ट ने एक महत्वपूर्ण अवलोकन में कहा है कि यौन पीड़ित लड़की की मां कभी भी अपनी बेटी पर यौन उत्पीड़‌ित का लेबल लगाकर उसका नाम, प्रसिद्धि और पूरी जिंदगी दांव पर नहीं लगाएगी।

    जस्टिस टी अमरनाथ गौड़ और जस्टिस अरिंदम लोध की खंडपीठ ने चार साल की बच्ची के यौन उत्पीड़न के एक मामले में आईपीसी की धारा 376 (2) (एफ) के तहत एक व्यक्ति के बलात्कार की सजा की पुष्टि की।

    पृष्ठभूमि

    अभियुक्त ने आईपीसी की धारा 376 (2) (एफ) के तहत अपनी दोषसिद्धि के खिलाफ हाईकोर्ट में याचिका दायर की थी और अतिरिक्त सत्र न्यायाधीश, पश्चिम त्रिपुरा, अगरतला द्वारा पारित 10 साल के कठोर कारावास की सजा को चुनौती दी थी

    निचली अदालते ने इस निष्कर्ष पर पहुंचने के लिए पीड़िता और उसकी मां (पीडब्ल्यू 4) के साक्ष्य को ध्यान में रखा था कि अभियोजन पक्ष ने उचित संदेह से परे स्थापित किया था कि उसे आरोपी अपने घर में यह कहकर ले गया था कि वह उसे चिप्स और चॉकलेट देगा और फिर आरोपी ने उसके कपड़े उतारे और उसके साथ दुष्कर्म किया।

    हाईकोर्ट के समक्ष अभियुक्त ने तर्क दिया कि अभियोजन की कहानी अप्राकृतिक, असंभव और मनगढ़ंत थी।

    टिप्पणियां

    शुरुआत में, अदालत ने पाया कि निचली अदालत ने नाबालिग की मानसिक क्षमता के आंकलन के लिए सभी उपाय किए थे। प्रारंभिक परीक्षण और मानसिक क्षमता के बारे में आश्वस्त होने के बाद ही अदालत ने उसके साक्ष्य दर्ज किए थे।

    अदालत ने आगे कहा कि घटना की तारीख पर पीड़िता की मां (पीडब्ल्यू4) द्वारा थाने में की गई शिकायत और अदालत के समक्ष पेश किए गए उसके सबूत स्‍थ‌िर रहे। पीड़िता ने भी आरोपी द्वारा की गई हरकतों को ब्योरा दिया। उसकी ओर से दिए गए सबूत भी स्थिर रहे।

    इस पृष्ठभूमि में अदालत ने निष्कर्ष निकाला कि मां द्वारा दायर शिकायत और पीड़ित लड़की के साक्ष्य पर अविश्वास करने का कोई कारण नहीं है। कोर्ट ने जोर देकर कहा कि पीड़िता की मां (PW4) द्वारा दिए गए सबूतों पर विचार करते हुए, ट्रायल कोर्ट ने ठीक ही कहा था कि एक मां एक बच्चे की रक्षक और अनुशासक होती है। एक मां अपने बच्चे से निस्वार्थ प्यार करती है, जो अपने बच्चे की जरूरतों के लिए अपनी कई जरूरतों का त्याग करती है।

    कोर्ट ने कहा,

    "एक मां यह सुनिश्चित करने के लिए कड़ी मेहनत करती है कि उसका बच्चा एक सक्षम इंसान बनने के लिए ज्ञान कौशल और क्षमताओं से सुरक्षित रूप से सुसज्जित रहे। यही कारण है कि यह कहना अविश्वसनीय है कि एक मां अपनी बेटी को मामले जैसे गंभीर मामले में शामिल करके उसकी पूरी ज़िंदगी दांव पर लगा देगी। PW4 पीड़ित लड़की की मां होने के नाते अपनी बेटी को यौन उत्पीड़न की शिकार का लेबल देकर कभी भी अपनी बेटी का पूरा नाम, प्रसिद्धि और यहां तक कि पूरी जिंदगी दांव पर नहीं लगाएगी।"

    इसके साथ ही कोर्ट ने निचली अदालत फैसले में हस्तक्षेप करने से इनकार कर दिया और इसकी पुष्टि की।

    केस शीर्षक - पिंटू घोष बनाम त्रिपुरा राज्य

    केस सिटेशन: 2022 लाइव लॉ (त्रि) 1


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