'ये प्रवासी श्रमिक अपराधी नहीं, पीड़ित हैं', गुजरात हाईकोर्ट ने लॉकडाउन में जेल भेजे गए 33 प्रवासियों को बिना शर्त जमानत दी
LiveLaw News Network
24 Jun 2020 2:20 PM IST
गुजरात हाईकोर्ट ने मंगलवार (23 जून) को 33 याचिकाकर्ताओं (प्रवासी श्रमिक) द्वारा दायर जमानत याचिका के मामले में, जिसमे उन्होंने धारा 439 सीआरपीसी के तहत रेगुलर जमानत दिए जाने की मांग अदालत से की थी, यह टिपण्णी की कि जमानत के आवेदक/याचिकाकर्ता पीड़ित हैं, पर निश्चित रूप से अपराधी नहीं हैं।
न्यायमूर्ति परेश उपाध्याय ने यह टिपण्णी करते हुए कहा कि लॉकडाउन के दौरान, जब यह सभी याचिकाकर्ता बिना किसी काम के, बिना किसी पैसे और यहां तक कि बिना किसी भोजन के थे तो ऐसी परिस्थितियों में, इन्हें इनके घर वापस भेजने की व्यवस्था करने के बजाय, उन्हें जेल भेज दिया गया।
दरअसल ये सभी याचिकाकर्ता, प्रवासी कामगार हैं और अहमदाबाद काम करने आये थे और कुल 33 याचिकाकर्ताओं में से 32 झारखंड राज्य से हैं और 1 पश्चिम बंगाल राज्य से है।
इन सभी 33 याचिकाकर्ताओं के खिलाफ आईपीसी की धारा 143, 144, 147, 148, 149, 186, 332, 333, 336, 337, 427 एवं 188, गुजरात पुलिस अधिनियम की धारा 135 (1), महामारी अधिनियम 1897 की धारा 3, आपदा प्रबंधन अधिनियम की धारा 51 (b) और लोक संपत्ति नुकसान निवारण अधिनियम, 1984 की धारा 3 (1) और 3 (2) (e) के तहत पुलिस स्टेशन, वस्त्रापुर जिला – अहमदाबाद (गुजरात) में मामला दर्ज किया गया है (C.R.No. 11191020201055 of 2020)।
दरअसल, सभी याचिकाकर्ता श्रम कार्य के लिए अहमदाबाद आए थे और अहमदाबाद के वस्त्रापुर में न्यू आईआईएम भवन के निर्माण स्थल पर काम कर रहे थे। अदालत के समक्ष यह तथ्य प्रस्तुत किये गए कि लॉकडाउन में, यह सभी याचिकाकर्ता बिना किसी काम के थे, बिना किसी पैसे के और बिना खाना खाए रह रहे थे और इन परिस्थितियों में, वे सभी अपने घर वापस जाना चाह रहे थे।
इसी के परिणामस्वरूप, 18-मई-2020 को कथित रूप से यह अप्रिय घटना घटित हुई, जिसके कारण इन सभी के खिलाफ ऊपर बताई गयी धाराओं के अंतर्गत मामला दर्ज किया गया, जिसमें 35 व्यक्ति आरोपी के रूप में नामजद हैं। अदालत को यह भी सूचित किया गया कि ये सभी आवेदक, 18 मई 2020 के बाद से जेल में हैं।
'द हिन्दू' अख़बार की खबर के मुताबिक, 18 मई को लगभग 100 प्रवासी श्रमिक, अहमदाबाद में न्यू आईआईएम भवन के पास इकट्ठा हुए और भोजन, मजदूरी की मांग करने लगे और यह भी कि उन्हें वापस उनके मूल स्थानों पर भेज दिया जाए। जैसे ही पुलिस भीड़ को तितर-बितर करने के लिए आई, वहां कथित रूप से हाथापाई शुरू हो गई थी। हालाँकि, 'लाइव लॉ' इन तथ्यों की पुष्टि नहीं करता है।
सभी तथ्यों और परिस्थितियों पर गौर करने के पश्च्यात, अदालत ने मुख्य रूप से अपने आदेश में कहा कि,
"यह ध्यान दिया जाता है कि, लॉकडाउन में, जब याचिकाकर्ता बिना किसी काम के, बिना किसी पैसे के और यहां तक कि बिना किसी भोजन के थे तो ऐसी परिस्थितियों में, उन्हें घर वापस भेजने की व्यवस्था करने के बजाय, उन्हें जेल भेज दिया गया। आवेदक पीड़ित अधिक हैं, पर निश्चित रूप से अपराधी नहीं। उन्हें आगे भी हिरासत में रखने की जरूरत नहीं है। बिना किसी और शर्त के, अपने निजी बांड को प्रस्तुत करने पर, उन्हें तुरंत मुक्त करने की आवश्यकता है।"
अदालत ने यह आदेश दिया कि सभी आवेदकों को 500/- (मात्र पांच सौ रुपये) के निजी मुचलके पर नियमित जमानत पर रिहा किया जाए।
गौरतलब है कि बीते 9 जून को सुप्रीम कोर्ट ने लॉकडाउन के दौरान प्रवासी कामगारों के संकट पर लिए गए स्वतः संज्ञान मामले में कई दिशा-निर्देश जारी किए थे।
अदालत ने मुख्य रूप से कहा था कि फंसे हुए प्रवासियों को 15 दिनों में उनके मूल स्थान पर पहुँचाया जाए, और उनके खिलाफ लॉकडाउन के उल्लंघन के केस वापस लेने पर विचार किया जाए।
यही नहीं, सुप्रीम कोर्ट के इस उल्लेखनीय आदेश से पहले भी, देश के तमाम उच्च-न्यायालय प्रवासी मजदूरों/कामगारों की समस्याओं पर एवं उनके हित में तमाम प्रकार के विशेष आदेश जारी कर चुके हैं।
गौरतलब है कि बीते 11 मई को गुजरात हाईकोर्ट की जस्टिस जे. बी. पारदीवाला और न्यायमूर्ति इलेश जे. वोरा की एक बेंच ने गुजरात में प्रवासियों के मुद्दे पर स्वत: संज्ञान लिया था और COVID-19 नियंत्रण से संबंधित मामलों के साथ इसे क्लब किया था।
खंडपीठ ने मुख्य रूप से टिपण्णी करते हुए कहा था,
"ऐसा लगता है कि आम लोग भूखे हैं। लोगों के पास भोजन और आश्रय नहीं है। ऐसा लगता है कि इसका कारण पूर्ण लॉकडाउन है।"
अदालत ने प्रवासी श्रमिकों को पेश आ रही मुश्किलों के बारे में छप रही खबरों का भी संज्ञान लिया था। इस सम्बन्ध में अदालत ने देखा था कि,
"ऐसा लगता है कि प्रवासी श्रमिक सबसे ज़्यादा परेशान हैं। वे अपने-अपने गृह प्रदेश जाने के लिए बेताब हैं।"
अपने निर्देश में अदालत ने कहा था,
"राज्य के अधिकारियों को सामने आकर प्रक्रिया को इतना सरल और आसान बनाना चाहिए कि प्रवासी श्रमिकों को ट्रेनों और बसों में बैठने से पहले घंटों इंतज़ार नहीं करना पड़े।"
अदालत ने आगे यह भी कहा था,
"राज्य सरकार को यह याद रखना होगा कि उसे इस समय समाज के सर्वाधिक दबे-कुचले और कमजोर वर्ग के लोगों से निपटना पड़ रहा है। ये सब लोग डरे हुए हैं। वे COVID-19 से नहीं डरे हुए हैं बल्कि इस बात से कि वे भूखे मर जाएंगे।"
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