गुजरात हाईकोर्ट ने लॉकडाउन की मुश्किलों पर लिया स्वतः संज्ञान; कहा, लोग भूखे हैं, प्रवासी श्रमिक सबसे ज़्यादा बेहाल
LiveLaw News Network
14 May 2020 3:41 PM IST
गुजरात हाईकोर्ट ने लॉकडाउन के दौरान सोमवार को प्रवासी श्रमिकों, दैनिक वेतन भोगियों ग़रीब लोगों को हो रही मुश्किलों के बारे में छप रही खबरों पर स्वतः संज्ञान लिया।
न्यायमूर्ति जेबी परदीवाला और न्यायमूर्ति इलेश जे वोरा की खंडपीठ ने कहा,
"ऐसा लगता है कि आम लोग भूखे हैं। लोगों के पास भोजन और आश्रय नहीं है। ऐसा लगता है कि इसका कारण पूर्ण लॉकडाउन है। एनजीओ, धर्मार्थ संस्थाओं और स्वयंसेवियों से उन्हें जो भी थोड़ी बहुत मदद मिल रही थी वह सब बंद हो गया है।
रिपोर्ट के अनुसार, एलिसब्रिज के पास फुटपाथ पर रह रहे लगभग 200 लोगों को चार दिनों से खाने को कुछ भी नहीं मिला है। यह भी रिपोर्ट है कि जो स्वयंसेवी उन्हें खाना खिलाते थे, वे भी लॉकडाउन के कारण अब उनके पास नहीं आ रहे हैं।"
अदालत ने कहा कि यह राज्य के अधिकारियों का सर्वोपरि कर्तव्य है कि वह यह सुनिश्चित करे कि कोई नागरिक भूखा न रहे।
बेंच ने कहा,
"ऐसा लगता है कि स्थिति हाथ से फिसल रही है। हालाँकि राज्य सरकार स्थिति से निपटने का भरसक प्रयास कर रही है पर हमें पाया है कि कहीं कुछ गड़बड़ है। ऐसा लगता है कि राज्य सरकार के विभिन्न विभागों में कोई तालमेल नहीं है। अभी मानवीय तरीक़ा अपनाने की आवश्यकता है।"
अदालत ने निर्देश दिया कि अहमदाबाद और उसके बाहरी हिस्से समेत गुजरात के अन्य हिस्सों में भी हर जगह भोजन के पैकेट के बांटने की व्यवस्था करना ज़रूरी है।
अदालत ने अहमदाबाद मिरर में 11 मई को प्रकाशित एक रिपोर्ट " Give us food or kill us Now" (हमें अब खाना दीजिए या फिर मार दीजिए) पर संज्ञान लिया।
अदालत ने प्रवासी श्रमिकों को पेश आ रहि मुश्किलों के बारे में छप रही खबरों का भी संज्ञान लिया।
अदालत ने देखा,
"ऐसा लगता है कि प्रवासी श्रमिक सबसे ज़्यादा परेशान हैं। वे अपने-अपने गृह प्रदेश जाने के लिए बेताब हैं।"
अपने निर्देश में अदालत ने कहा,
"राज्य के अधिकारियों को सामने आकर प्रक्रिया को इतना सरल और आसान बनाना चाहिए कि प्रवासी श्रमिकों को ट्रेनों और बसों में बैठने से पहले घंटों इंतज़ार नहीं करना पड़े।"
यह निर्देश इंडियन एक्सप्रेस में छपी खबर के आधार पर दिया गया है।
श्रमिकों के पैदल ही अपने गंतव्य की ओर जाने के इंडियन एक्सप्रेस की 11 मई की रिपोर्ट पर अदालत ने राज्य के पुलिस महानिदेशक को निर्देश दिया कि वे किसी भी श्रमिक को पैदल जाता देखते हैं तो उन्हें नज़दीकी आश्रय स्थल पर पहुँचा दें।
अदालत ने कहा,
"राज्य सरकार को यह याद रखना होगा कि उसे इस समय समाज के सर्वाधिक दबे-कुचले …और कमजोर वर्ग के लोगों से निपटना पड़ रहा है। ये सब लोग डरे हुए हैं। वे COVID-19 से नहीं डरे हुए हैं बल्कि इस बात से कि वे भूखे मर जाएंगे।"
अदालत ने महाधिवक्ता कमाल त्रिवेदी और सरकारी वकील मनीषा लवकुमार शाह को उपरोक्त सभी मामलों पर राज्य सरकार के शीर्षस्थ अधिकारियों से बातचीत करने के बाद इस समस्या से निपटने के लिए ठोस योजना बनाकर पीठ के समक्ष पेश करने को कहा।
निराश न हों, अदालत ने अहमदाबाद के लोगों से की अपील
COVID-19 के प्रकोप के बाद हालात बद से बदतर होता देख अदालत ने लोगों के मनोबल को बढ़ाने के लिए भी कुछ बातें कही।
अदालत ने राजीव गुप्ता को इसकी ज़िम्मेदारी दिए जाने के सरकार के क़दम पर कहा,
"हमें उम्मीद है कि डॉक्टर गुप्ता के पास जो विशेष कौशल है …उसकी वजह से अहमदाबाद में स्थिति शीघ्र सामान्य हो जाएगी।"
अदालत ने अंत में कहा,
"हम लोगों को यह संदेश देना चाहते हैं कि वे निराश न हों। हर उस चीज़ जिसकी शुरुआत होती है उसका अंत भी होता है। COVID-19 अमर नहीं है। हमें बस संगठित बने रहकर इससे लड़ते रहना है, जिन लोगों के पास संसाधन है उन्हें कमज़ोर और जरूरतमंदों के साथ खड़ा होना चाहिए। ईश्वर में विश्वास में रखें।"
आदेश डाउनलोड करने के लिए यहां क्लिक करें