"भविष्य में बच्‍ची को स्वस्थ पारस्परिक संबंधों को विकसित करने से रोक सकता है": दिल्ली हाईकोर्ट ने बास्केटबॉल कोच को कथित यौन उत्पीड़न के मामले में जमानत से इनकार किया

LiveLaw News Network

19 Aug 2021 12:22 PM GMT

  • भविष्य में बच्‍ची को स्वस्थ पारस्परिक संबंधों को विकसित करने से रोक सकता है: दिल्ली हाईकोर्ट ने बास्केटबॉल कोच को कथित यौन उत्पीड़न के मामले में जमानत से इनकार किया

    Delhi High Court

    दिल्ली हाईकोर्ट ने एक 57 वर्षीय बास्केटबॉल कोच को जमानत देने से इनकार कर दिया, जिस पर 13 वर्षीय लड़की के साथ कथित यौन उत्पीड़न का आरोप है। कोर्ट ने कहा कि जीवन के शुरुआती चरण में विश्वासघात बच्चे को भविष्य में स्वस्थ पारस्परिक संबंध विकसित करने से रोक सकता है।

    जस्टिस सुब्रमण्यम प्रसाद ने कहा, "बच्ची की भलाई पर सबसे ज्यादा ध्यान दिया जाना चाहिए, जिसका मानसिक स्थिति कमजोर, संवेदनशील और विकासशील अवस्था में है। बचपन के यौन शोषण के दीर्घकालिक प्रभाव होते हैं, कई बार दुर्गम होते हैं।"

    "इसलिए, यौन हमला या यौन उत्पीड़न का कृत्य बच्चे के लिए मानसिक आघात का कारण बन सकता है और आने वाले वर्षों के लिए उनकी विचार प्रक्रिया को निर्धारित कर सकता है। यह बच्चे के सामान्य सामाजिक विकास में बाधा पैदा कर सकता है और विभिन्न मनोसामाजिक समस्याओं को जन्म दे सकता है, जिसके लिए मनोवैज्ञानिक हस्तक्षेप की आवश्यकता हो सकती है।"

    य‌चिकाकर्ता ने नियमित जमानत की मांग की थी, जबकि उसके खिलाफ आईपीसी कर धारा 354-बी और पोक्सो एक्ट की धारा 10 के तहत मामला दर्ज किया गया है।

    उस पर आरोप है कि उसने ने अभियोक्ता के पेट के चारों ओर अपनी बाहों को लपेट लिया था और व्यायाम करते समय उसे अनुचित तरीके से छुआ। असहज होने पर उसने उसे रुकने को कहा। बाद में, उसने अपने माता-पिता को घटना के बारे में बताया, जिसके बाद उन्होंने शिकायत दर्ज कराई।

    ‌याचिकाकर्ता की दलील दी थी कि वह बास्केटबॉल के चीफ कोच के रूप में कार्यरत थे और भारतीय खेल प्राधिकरण, भारत सरकार के साथ काम करने वाले ग्रुप-ए रैंक के अधिकारी थे। कई स्वास्थ्य बाधाओं का हवाला देते हुए, उन्होंने का कि वह उच्च जोखिम वाले व्यक्तियों की श्रेणी में आते हैं, जो COVID-19 वायरस से संक्रमित होने की चपेट में हैं।

    इसके अलावा, यह प्रस्तुत किया गया था कि FIR और आरोप-पत्र में दर्ज आरोप झूठे, तुच्छ और अभियोक्ता की कल्पना की उपज थे और FIR को उसके खिलाफ एक व्यक्तिगत प्रतिशोध के साधन के रूप में इस्तेमाल किया गया है।

    दूसरी ओर, अभियोजन पक्ष ने प्रस्तुत किया कि याचिकाकर्ता कथित घटना के समय एक भरोसेमंद की क्षमता से मौजूद था, और यह कि अभियोजन पक्ष के प्रभावित होने या मामले में देरी होने की संभावना है यदि वह जमानत मिलने पर फरार हो जाता है।

    कोर्ट ने कहा, "याचिकाकर्ता, अभियोक्ता का बास्केटबॉल कोच है और अभियोक्ता के माता-पिता को भी जानता है, पोक्सो अधिनियम की धारा 9 (पी) के अनुसार, एक बच्चे के भरोसेमंद या अधिकारप्राप्त की स्थिति में कहा जा सकता है। इसलिए अभियोक्ता और याचिकाकर्ता के बीच संबंध प्रत्ययी प्रकृति का है।"

    अदालत ने जमानत याचिका खारिज करते हुए निचली अदालत को आदेश की तारीख से एक महीने के भीतर आरोप तय करने की प्रक्रिया आगे बढ़ाने का निर्देश दिया। यह भी स्पष्ट किया कि यदि आरोप तय होते हैं तो अदालत एक महीने के भीतर पीड़िता से पूछताछ करेगी।

    अदालत ने कहा , "याचिकाकर्ता को दो महीने के बाद जमानत के लिए आवेदन करने की आजादी दी जाती है, भले ही पीड़ित की जांच की गई हो या नहीं।"

    शीर्षक: प्रफुल्ल कुमार साहू बनाम राष्ट्रीय राजधानी क्षेत्र दिल्ली राज्य

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