वैवाहिक विवादः इलाहाबाद हाईकोर्ट ने पत्नी के माता-पिता का केवल आरोपी/पति द्वारा जमा किए गए रुपए लेने के लिए मध्यस्थता केंद्र आने की 'निंदा' की

LiveLaw News Network

3 Feb 2022 4:45 AM GMT

  • इलाहाबाद हाईकोर्ट

    इलाहाबाद हाईकोर्ट

    इलाहाबाद हाईकोर्ट ने हाल ही में उस प्रवृत्ति की निंदा की है,जिसके तहत पत्नी के माता-पिता वैवाहिक विवादों को निपटाने के लिए मध्यस्थता केंद्र आने की बजाय केवल आवेदक/पति द्वारा जमा की गई राशि प्राप्त करने के लिए इन केंद्र में आते हैं।

    जस्टिस राहुल चतुर्वेदी की खंडपीठ ने कहा कि यह देखा गया है कि पार्टियां मध्यस्थता की प्रक्रिया को गंभीरता से नहीं ले रही हैं और पूर्व नियोजित दिमाग से यहां आ रही हैं।

    इस मामले में एक फ़राज़ हसन ने याचिका दायर कर अग्रिम जमानत दिए जाने की मांग की है। यह जमानत उसके खिलाफ भारतीय दंड संहिता की धारा 498ए, 323, 308 और दहेज निषेध अधिनियम की धारा 3/4 के तहत दर्ज मामले में मांगी गई है।

    आवेदक के वकील ने अदालत को सूचित किया कि चूंकि यह मामला वैवाहिक विवाद और दोनों पक्षों के बीच पैदा हुई आपसी गलतफहमी से संबंधित है, इसलिए विवाद को इलाहाबाद हाईकोर्ट के मध्यस्थता केंद्र में भेजा जा सकता है।

    इस सबमिशन से सहमत होते हुए और दोनों पक्षों के बीच मतभेदों की प्रकृति और आरोपों की प्रकृति पर विचार करते हुए, कोर्ट ने कहा कि यह न्याय के हित में होगा कि दोनों पक्ष अपनी गलतफहमी और ''मुद्दों'' (यदि कोई हो) को सौहार्दपूर्ण तरीके और आपसी बातचीत के जरिए निपटा लें।

    इसलिए न्यायालय ने आवेदक/पति को निर्देश दिया कि वह 50,000 रुपये की राशि मध्यस्थता केंद्र में जमा करा दे और इस पूरी राशि का भुगतान मध्यस्थता केंद्र के समक्ष मध्यस्थता प्रक्रिया समाप्त होने के बाद ही पत्नी को किया जाएगा। इस मामले में, चूंकि पत्नी की हालत नाजुक है, इसलिए अदालत ने उसके माता-पिता को निर्देश दिया कि वह मध्यस्थता के लिए उसकी ओर से पेश हो जाएं।

    हालांकि, इस मामले पर टिप्पणी करने से पहले अदालत ने कहा कि अदालत के संज्ञान में यह आया है कि पक्ष पूर्व नियोजित योजना के साथ मध्यस्थता के लिए आते हैं। कोर्ट ने यह भी कहा कि,

    ''अदालत किसी मामले को ए.एच.सी.एम.सी.सी में इस आशा और विश्वास के साथ संदर्भित करती है कि दोनों पक्षकार इस प्रक्रिया और मंच का उपयोग कुछ उपयोगी परिणाम प्राप्त करने के लिए करेंगे। मध्यस्थता की प्रक्रिया आवेदक द्वारा जमा की गई राशि अर्जित करने के लिए नहीं है। यदि पत्नी के माता-पिता अपने मन में एक अलग डिजाइन बनाकर और और केवल आवेदक द्वारा जमा की गई राशि प्राप्त करने के लिए इन केंद्र में आ रहे हैं तो इस प्रथा का विरोध करते हुए इसकी निंदा करनी होगी।''

    इस पृष्ठभूमि को देखते हुए वर्तमान मामले में, न्यायालय ने निर्देश दिया है कि यदि पत्नी के माता-पिता आते हैं और मध्यस्थता की प्रक्रिया में भाग लेते हैं, तो पूरी राशि उन्हें एक बार में ना दी जाए और उसे निम्नलिखित तरीके से उन्हें सौंप दिया जाएः

    1.यदि पत्नी के माता-पिता केवल एक तिथि पर मध्यस्थता केंद्र आते हैं और यह प्रस्तुत करते हैं कि उन्हें मध्यस्थता की प्रक्रिया में कोई दिलचस्पी नहीं है या बिना किसी उचित कारणों के अगली तारीखों से अनुपस्थित रहते हैं, तो आवेदक द्वारा जमा की गई पूरी राशि का केवल 50 प्रतिशत ही उन्हें या उनके प्रतिनिधियों या वकील को सौंप दिया जाए और शेष राशि आवेदक को जाएगी।

    2.यदि सभी पक्ष दो या दो से अधिक अवसरों के लिए मध्यस्थता की प्रक्रिया में आ रहे हैं और उसमें भाग ले रहे हैं, तो केवल पत्नी के माता-पिता ही पूरी राशि के हकदार होंगे।

    3.यदि पत्नी के माता-पिता को नोटिस भेजने के बाद भी, वे बिना किसी उचित कारण के उपस्थित नहीं होते हैं, तो पूरी राशि आवेदक को वापस कर दी जाएगी।

    4.यदि उक्त राशि आवेदक द्वारा उक्त अवधि के भीतर जमा नहीं की जाती है या उपरोक्त राशि जमा करने के बाद वे बिना किसी उचित कारण या पूर्व सूचना के मध्यस्थता प्रक्रिया में भाग लेने में विफल रहते हैं, तो पूरी राशि को मध्यस्थता केंद्र के खाते में जमा कर दिया जाएगा और मामला तुरंत संबंधित अदालत को भेज दिया जाएगा और अंतरिम आदेश को स्वतः ही समाप्त माना जाएगा। न्यायालय द्वारा लगाई गई रोक को समाप्त करने के लिए किसी औपचारिक आदेश की आवश्यकता नहीं है।

    इसके साथ ही मामले को मध्यस्थता केंद्र भेज दिया गया और यह निर्देश दिया गया है कि दोनों पक्षों को नोटिस भेजने के बाद मध्यस्थता और सुलह की कार्यवाही तीन महीने की अवधि के भीतर समाप्त कर दी जाए।

    अब इस मामले को हाईकोर्ट मध्यस्थता एवं सुलह केन्द्र, इलाहाबाद की रिपोर्ट प्राप्त होने पर उपयुक्त न्यायालय के समक्ष दिनांक 20.05.2022 को सूचीबद्ध किया जायेगा।

    अंत में, न्यायालय ने निर्देश दिया कि मामले के सूचीबद्ध होने की अगली तिथि तक, उपरोक्त मामले में आवेदक के खिलाफ कोई दंडात्मक कार्रवाई नहीं की जाएगी, ताकि पक्षकारों को उनके बीच के विवाद को समाप्त करने में सक्षम बनाया जा सके।

    मामले में आवेदक की ओर से अधिवक्ता सैयद खुर्शीद अनवर अल्वी पेश हुए।

    केस का शीर्षक - फ़राज़ हसन बनाम यूपी राज्य

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