विवाहित महिला शादी से बाहर शारीरिक संबंध स्थापित करने के लिए शादी के झूठे वादे पर ली गई सहमति का दावा नहीं कर सकती: झारखंड हाईकोर्ट ने बलात्कार की एफआईआर रद्द की
Shahadat
18 Sept 2023 2:26 PM IST
झारखंड हाईकोर्ट ने विवाहित वयस्क महिला द्वारा दायर बलात्कार के मामले को यह कहते हुए खारिज कर दिया कि वह किसी अन्य व्यक्ति के साथ शारीरिक संबंध बनाने के संभावित परिणामों से पूरी तरह वाकिफ थी।
अदालत ने फैसला सुनाया कि आरोपी को झूठे बहाने के तहत उसकी सहमति प्राप्त करने वाला नहीं माना जा सकता, इस प्रकार शादी के कथित वादे पर आधारित आरोपों को खारिज कर दिया गया।
जस्टिस सुभाष चंद ने कहा,
“...पीड़िता उसी समय से बालिग थी जब वह आरोपी के संपर्क में आई थी और कॉलेज के समय में आरोपी अभिषेक कुमार पाल के साथ पीड़िता के प्रेम संबंधों के दौरान, पीड़िता बालिग थी। जबकि आरोपी नाबालिग था, उस समय वह पीड़िता से 2 साल छोटा था।”
न्यायमूर्ति चंद ने कहा,
“पीड़िता ने वर्ष 2018 में वी [नाम संशोधित] से शादी की, क्योंकि वह बालिग थी; फिर भी सक्षम न्यायालय द्वारा विवाह विच्छेद कराए बिना उसने आरोपी अभिषेक कुमार पाल के साथ विवाह करने का प्रलोभन देकर उसके साथ शारीरिक संबंध स्थापित किए। पीड़िता बालिग और विवाहित महिला है, वह किसी अन्य व्यक्ति के साथ शारीरिक संबंध के परिणाम के बारे में अच्छी तरह से जानती थी और उसने वर्ष 2018 में शादी कर ली थी। इसलिए यहां सहमति को आरोपी द्वारा गलतफहमी के तहत प्राप्त नहीं किया जा सकता। इसलिए एफआईआर में लगाए गए आरोपों से यह माना जाता है कि उसे आरोपी द्वारा धोखा दिया गया था।”
यह फैसला सत्र न्यायालय द्वारा पारित आदेश के खिलाफ दायर आपराधिक पुनर्विचार में आया। मूल मामला इस आरोप के इर्द-गिर्द घूमता है कि आरोपी ने शिकायतकर्ता को रोमांटिक रिश्ते में फंसाया, शारीरिक अंतरंगता में शामिल किया और उस पर अपने माता-पिता के साथ अपने रिश्ते का खुलासा न करने का दबाव डाला।
इसके बाद आरोपी अपनी पढ़ाई के लिए चला गया और शिकायतकर्ता ने किसी और से शादी कर ली। इसके बावजूद आरोपी ने उससे संपर्क बनाए रखा और उसे भावनात्मक रूप से परेशान किया। शिकायतकर्ता ने अंततः आरोपी से शादी के वादे के तहत 2019 में अपने पति को तलाक दे दिया।
2020 में शिकायतकर्ता और आरोपी दोनों ने विवाह रजिस्ट्रेशन के लिए आवेदन किया, लेकिन COVID-19 लॉकडाउन के कारण प्रक्रिया में देरी हुई। इस अवधि के दौरान, आरोपी ने कथित तौर पर शिकायतकर्ता के साथ और भी शारीरिक संबंध बनाए। हालांकि, जब शिकायतकर्ता ने अपने रिश्ते के बारे में अपने माता-पिता को बताया तो आरोपी के परिवार ने कथित तौर पर उस पर शादी से इनकार करने का दबाव डाला। शिकायतकर्ता ने आरोपी के परिवार द्वारा आपराधिक रूप से डराने-धमकाने का दावा किया।
शिकायतकर्ता के लिखित बयान के आधार पर आरोपी, उसके भाई और उसकी मां के खिलाफ भारतीय दंड संहिता (आईपीसी) की धारा 376 और 506 के तहत मामला दर्ज किया गया।
कोर्ट ने कहा,
“वास्तव में सूचना देने वाली पीड़िता ने अपने पूर्व पति से कोई न्यायिक तलाक नहीं लिया था। सूचनार्थी-पीड़िता और उसके पूर्व पति वी के बीच तलाक का समझौता, जो रिकॉर्ड पर है, जिसमें आपसी समझौते के माध्यम से 20/- रुपये पर लिखित रूप से कम करके दिनांक 26.04.2018 को पीड़िता-सूचनाकर्ता और वी के बीच विवाह की मोहर लगा दी गई। फिर विवाह भंग कर दिया गया। मगर सक्षम न्यायालय द्वारा इस विवाह को न्यायिक रूप से भंग नहीं किया गया था।''
अदालत ने कहा,
“विवाह विच्छेद के संबंध में यह समझौता रद्दी कागज के अलावा और कुछ नहीं है, जिसका कानून की नजर में कोई साक्ष्यीय मूल्य नहीं है। चूंकि पीड़िता की शादी 26.04.2018 को वी के साथ संपन्न हुई थी; लेकिन विवाह संपन्न होने के बाद भी पीड़िता ने संपर्क जारी रखा और आरोपी के साथ संबंध स्थापित किया।''
इसलिए एफआईआर में लगाए गए आरोपों और जांच अधिकारी द्वारा एकत्र किए गए सबूतों के मद्देनजर, अदालत ने कहा कि आरोपी के खिलाफ भारतीय दंड संहिता (आईपीसी) की धारा 376 के तहत अपराध बनाने के लिए पर्याप्त आधार नहीं है। याचिकाकर्ता का डिस्चार्ज आवेदन खारिज करने में निचली अदालत द्वारा पारित आदेश अवैध है और इसमें हस्तक्षेप की आवश्यकता है।
तदनुसार, निचली अदालत द्वारा पारित आदेश रद्द कर दिया गया और याचिकाकर्ता को भारतीय दंड संहिता (आईपीसी) की धारा 376 के तहत लगाए गए आरोप से मुक्त कर दिया गया।
याचिकाकर्ता के वकील: राजीव शर्मा, राज्य के वकील: अभय कुमार तिवारी, ए.पी.पी. और ओपी नंबर 2 के लिए वकील: सुनील कुमार, वकील