पति, कैरी होम सैलरी के अभाव में तलाकशुदा पत्नी और बेटी को गुजारा भत्ता देने की जिम्मेदारी को अनदेखा नहीं कर सकता हैः त्रिपुरा हाईकोर्ट

LiveLaw News Network

25 Jan 2021 9:44 AM GMT

  • पति, कैरी होम सैलरी के अभाव में तलाकशुदा पत्नी और बेटी को गुजारा भत्ता देने की जिम्मेदारी को अनदेखा नहीं कर सकता हैः त्रिपुरा हाईकोर्ट

    त्रिपुरा हाईकोर्ट ने यह देखते हुए कि पति को वेतन के अभाव में तलाकशुदा पत्नी और बेटी को गुजारा भत्ता देने की जिम्मेदारी को अनदेखा करने की अनुमति नहीं दी जा सकती है, पिछले सप्ताह एक पति को तलाकशुदा पत्नी और उसकी बेटी को पालन-पोषण और रखरखाव के लिए को प्रति माह 17,000 रुपए का भुगतान करने का निर्देश दिया।

    न्यायमू‌र्ति एसजी चट्टोपाध्याय की खंडपीठ एक आपराधिक पुनरीक्षण याचिका पर सुनवाई कर रही थी, जिसमें तलाकशुदा पत्नी ने पारिवारिक न्यायालय, अगरतला के आदेश को चुनौती दी थी, जिसके तहत उसे देय मासिक गुजारा भत्ता के राश‌ि को 5000 रुपए से बढ़ाकर 8000 रुपए करने का आदेश दिया गया था, जबकि उसने उक्त राशि को 5000 रुपए से बढ़ाकर 23,500 रुपए प्रति माह करने की मांग की थी।

    तथ्य

    दोनों की शादी 02 फरवरी 2003 को हुई, जिसके बाद उन्हें एक बेटी हुई। कुछ वर्षों बाद, अपसी विवाद के कारण पत्नी ने बेटी के साथ पति के घर को छोड़ दिया और माता-पिता के साथ रहने लगी। पति के आवेदन पर, फैमिली कोर्ट, अगरतला ने 16 सितंबर 2010 को तलाक का फैसला सुनाया और याचिकाकर्ता को 5000 रुपए मासिक गुजारा भत्ता देने की अनुमति दी।

    वर्ष 2018 में, पत्नी ने मासिक गुजारा भत्ते को 5000 रुपए से बढ़ाकर 23,500 रुपए प्रति माह करने के लिए फैमिली कोर्ट में याचिका दायर की। पति ने फैमिली कोर्ट के सामने दलील दी कि उसकी तलाकशुदा पत्नी (याचिकाकर्ता) को उसके खुद के रोजगार से आय है और वह खुद का रखरखाव करने में सक्षम है।

    फैमिली कोर्ट ने कहा कि पति की मासिक तनख्वाह 62,400 रुपए है और कटौती के बाद उसकी तनख्वाह और याचिकाकर्ता और उसकी बेटी की बढ़ती जरूरतों पर विचार करने के बाद, गुजरा भत्ते की राशि को 5000 रुपए से बढ़ाकर 8000 रुपए प्रति माह किया जाता है।

    दलील

    पति ने कोर्ट में दलीद दी कि याचिकाकर्ता से तलाक के बाद, उसने पुनर्विवाह किया और उसकी वर्तमान पत्नी उसी पर निर्भर है। पति ने यह भी कहा कि वह और उसकी वर्तमान पत्नी विभिन्न प्रकार की बीमारियों से पीड़ित हैं, जिसके लिए उन्हें हर महीने चिकित्सा खर्च करना पड़ता है।

    फैसला

    कोर्ट ने यह देखते हुए कि पति और उसी वर्तमान पत्‍नी ने किसी भी गंभीर बीमारी का सबूत नहीं दिया है, कहा, "तलाकशुदा पत्नी यानी याचिकाकर्ता अपनी बेटी के साथ जीवित रहने के लिए संघर्ष कर रही है। जाहिर है कि बेटी स्कूल जाती है और 8000 रुपए, जिसे परिवार न्यायालय ने स्वीकृत किया है, पर्याप्त नहीं है, व‌िशेषकर जब पति अधिक भुगतान करने में सक्षम है।"

    अदालत ने फैसले में यह भी कहा कि इस तथ्य से इनकार नहीं किया जा सकता है कि याचिकाकर्ता के ‌लिए खुद और बेटी के निर्वाह के लिए 8000 रुपए काफी कम है।


    कोर्ट ने कहा, "(पति) प्रति माह 62,400 रुपए कमाता है, हालांकि जीपीएफ में 15,000 और और GPF रिकवरी में 10,000 को योगदान देने के कारण उसकी टेक होम सैलरी कम है। पति, जीपीएफ में योगदान कम करके और जीपीएफ से लिए गए ऋण की वसूली की किस्तों की संख्या बढ़ाकर महीने की देनदारी कम कर सकता है। उसे कैरी होम सैलरी कम होने के आधार पर तलाकशुदा पत्नी और बेटी को गुजाराभत्ता देने की जिम्मेदारी की अनदेखी करने की अनुमति नहीं दी जा सकती है। "

    अंत में, पति को पत्नी भत्ते के रूप में याचिकाकर्ता को प्रति माह 17,000 रुपए की राशि देने का आदेश दिया गया। इसके अलावा, यह निर्देश दिया गया था कि न्यायालय की ओर से आदेशित भत्ते की नई दर 30 मई 2019 से प्रभावी रहेगी।

    केस टाइटिलः सुप्रिया भट्टाचार्जी और एक अन्य बनाम देवव्रत चक्रवर्ती [Crl.Rev.PNo.55/ 2019]

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