फैमिली कोर्ट द्वारा अवॉर्ड की गई भरण-पोषण राशि यथार्थवादी और उचित होनी चाहिए: दिल्ली हाईकोर्ट

LiveLaw News Network

25 Oct 2021 6:47 AM GMT

  • फैमिली कोर्ट द्वारा अवॉर्ड की गई भरण-पोषण राशि यथार्थवादी और उचित होनी चाहिए: दिल्ली हाईकोर्ट

    दिल्ली हाईकोर्ट ने कहा कि फैमिली कोर्ट द्वारा अवॉर्ड की गई भरण-पोषण (Maintenance) राशि यथार्थवादी और उचित होनी चाहिए। ऐसे न्यायालयों द्वारा आदेश पारित करने वाले को स्पष्ट और अच्छी तरह से तथ्यों, विवाद और इसके निष्कर्ष को तर्कपूर्ण होना चाहिए।

    न्यायमूर्ति विपिन सांघी और न्यायमूर्ति जसमीत सिंह ने यह भी कहा कि एक पति या पत्नी को अंतरिम या स्थायी भरण-पोषण देने का उद्देश्य यह सुनिश्चित करना है कि वे अपनी शादी की विफलता के कारण वित्तीय बाधाओं में न फंसे हों।

    अदालत फैमिली कोर्ट के एक आदेश को चुनौती देने वाली पत्नी द्वारा दायर एक अपील पर सुनवाई कर रही थी। उक्त याचिका के माध्यम से हिंदू विवाह अधिनियम, 1955 की धारा 24 के तहत उसके आवेदन पर निर्णय लिया गया था।

    फैमिली कोर्ट ने अपीलकर्ता पत्नी को 30,000 रुपये प्रति माह के भरण-पोषण की अनुमति दी थी। इसके साथ ही आठ वर्ष और 12 वर्ष की आयु के दो नाबालिग बच्चों के खर्चों के संबंध में 15,000 रूपये प्रति माह देने को कहा था। प्रतिवादी-पति की आय रु. 4,00,000/- प्रति माह है।

    उक्त आदेश का अवलोकन करते हुए न्यायालय ने कहा कि आक्षेपित आदेश पारित करते समय न्यायाधीश द्वारा शायद ही कोई चर्चा की गई और केवल पक्षों की प्रस्तुतियाँ दर्ज की गई।

    कोर्ट ने कहा,

    "हम इस तथ्य के प्रति भी सचेत हैं कि भरण-पोषण प्रदान करने के लिए एक निश्चित मात्रा में अनुमान कार्य की आवश्यकता होती है, क्योंकि कोई भी पक्ष अपने आय हलफनामे में अपनी सही आय का खुलासा नहीं करता। इसके बावजूद हम सक्षम क्षेत्राधिकार के न्यायालय के "अधिनिर्णय" के उद्देश्य को भूल या अनदेखा नहीं कर सकते।"

    इसमें कहा गया कि एक निर्णय का उद्देश्य यह है कि पक्षों को उस सामग्री, तर्क और विचार प्रक्रिया का पता चले जो आदेश पारित करते समय न्यायालय के समक्ष पेश किया गया है।

    कोर्ट ने कहा,

    "एक आदेश पारित होने के बाद यह स्पष्ट होना चाहिए कि मामले के तथ्य क्या थे। इस मामले में क्या विवाद था और आखिरकार वह तर्क क्या था जिसके कारण अदालत अपने निष्कर्ष और निर्णय पर पहुंची।"

    तद्नुसार, न्यायालय का विचार था कि आक्षेपित आदेश न्यायनिर्णयन की कसौटी और तर्कयुक्त आदेश की आवश्यकता को पूरा करने में विफल रहा।

    इसलिए अदालत ने मामले को फिर से सुनवाई और विस्तृत और तर्कसंगत आदेश पारित करने के लिए फैमिली कोर्ट को वापस भेज दिया।

    कोर्ट ने कहा,

    "इस बीच, प्रतिवादी न केवल फैमिली कोर्ट द्वारा निर्धारित भरण-पोषण का भुगतान करना जारी रखेगा बल्कि बच्चों के स्कूल शुल्क का पूरा भुगतान भी करेगा।"

    फैमिली कोर्ट से धारा 24 के तहत आवेदन की सुनवाई में तेजी लाने के साथ-साथ इस पहलू पर विचार करने का भी अनुरोध किया गया था कि कोई भुगतान बकाया है या नहीं।

    केस शीर्षक: शीतल जोशन रॉय बनाम सौम्यजीत रॉय

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