लॉटरी पुरस्कार से केवल इसलिए इनकार नहीं किया जा सकता क्योंकि विजेता एक निलंबित लॉटरी एजेंट की पत्नी हैः केरल हाईकोर्ट

LiveLaw News Network

23 Sep 2021 1:30 PM GMT

  • केरल हाईकोर्ट

    केरल हाईकोर्ट

    केरल हाईकोर्ट ने राज्य को निर्देश दिया है कि वह उसकी 'विनविन' लॉटरी ड्रॉ जीतने वाली महिला को प्रथम पुरस्कार की 40.95 लाख रुपये की राशि का भुगतान करे।

    न्यायमूर्ति पीवी कुन्हीकृष्णन ने पी शिथा की तरफ से दायर याचिका पर यह आदेश दिया है। उसने लॉटरी विभाग द्वारा उसके दावे को अस्वीकृत करने के निर्णय को चुनौती दी थी। इस याचिका में आरोप लगाया गया कि यह आदेश अनुरक्षणीय है क्योंकि सरकार को इस तरह के आदेश को पारित करने की अनुमति देने वाला कोई कानून नहीं है।

    राज्य ने यह कहते हुए विजेता को पुरस्कार राशि देने से इनकार कर दिया था कि वह लॉटरी व्यवसाय में गैरकानूनी गतिविधियों में शामिल एक निलंबित लॉटरी एजेंट की पत्नी है।

    याचिकाकर्ता ने कहा कि उसने पलक्कड़ से लॉटरी टिकट खरीदा था। जब लॉटरी विभाग द्वारा परिणाम प्रकाशित किए गए, तो याचिकाकर्ता द्वारा खरीदे गए टिकट को विजेता घोषित किया गया।

    इसके बाद, उसने राज्य लॉटरी के निदेशक के समक्ष मूल लॉटरी टिकट जमा करवा दिया। दावा भी पेपर लॉटरी (विनियमन) नियम, 2005 के तहत 30 दिनों की अवधि के भीतर कर दिया गया था।

    हालांकि, राज्य ने उपरोक्त कारण का हवाला देते हुए याचिकाकर्ता को पुरस्कार राशि देने से इनकार कर दिया।

    याचिकाकर्ता की ओर से वरिष्ठ अधिवक्ता जॉर्ज पूथोट्टम ने प्रस्तुत किया कि केवल इसलिए कि वह निलंबित एजेंट की पत्नी है, विभाग उसे पुरस्कार राशि से देने से इनकार नहीं कर सकता है।

    विशेष सरकारी वकील सीयू उन्नीकृष्णन ने यह प्रस्तुत करने का प्रयास किया कि याचिकाकर्ता उस लॉटरी एजेंसी में भागीदार थी, जहां उसका पति पहले कार्यरत था, लेकिन याचिकाकर्ता के वकील ने तुरंत इस तथ्य को अस्वीकार कर दिया।

    न्यायालय ने तर्कों का विश्लेषण करने के बाद कहा किः

    ''प्रतिवादियों के अनुसार, याचिकाकर्ता श्री पी मुरलीधरन की पत्नी है, जो मंजू लॉटरी एजेंसी के प्रबंध पार्टनर हैं। लेकिन यह लॉटरी की पुरस्कार राशि देने से इनकार करने का कोई कारण नहीं है, चूंकि याचिकाकर्ता के अनुसार उसके पलक्कड़ जिले के एक अन्य एजेंट से यह टिकट खरीदा था।''

    इसके बाद, बेंच ने राज्य से पूछा कि क्या ऐसा कोई कानून है जो सरकार को ऐसा करने के लिए अधिकृत करता है।

    सरकारी वकील ने इसके बाद बेंच के समक्ष केरल पेपर लॉटरी (विनियमन) नियमों के नियम 9(8) को प्रस्तुत किया और निष्पक्ष रूप से स्वीकार किया कि कोई अन्य प्रावधान नहीं है।

    ''ऐसा कोई कानून नहीं है जो याचिकाकर्ता को अपने पति या किसी अन्य व्यक्ति से लॉटरी टिकट खरीदने और पुरस्कार जीतने की स्थिति में पुरस्कार राशि का दावा करने से रोकता हो।''

    उक्त प्रावधान यह निर्धारित करता है कि पुरस्कार टिकट की वास्तविकता का पता लगाने के बाद पुरस्कार राशि का भुगतान किया जाएगा। इसलिए, यह तय किया गया है कि प्राधिकरण का कर्तव्य केवल यह पता लगाना है कि लॉटरी टिकट असली है या नहीं।

    यह भी पाया गया कि याचिकाकर्ता द्वारा पेश किए गए टिकट की वास्तविकता के बारे में कोई विवाद नहीं है। वहीं लाटरी विभाग की ओर से याचिकाकर्ता के खिलाफ कोई मामला दर्ज नहीं करवाया गया है।

    इसलिए, याचिकाकर्ता को पुरस्कार राशि देने से इनकार करने वाले आदेश को रद्द करते हुए,न्यायालय ने कहा कि,

    ''जब याचिकाकर्ता ने नियमों के अनुसार प्रथम पुरस्कार का दावा करने वाले लॉटरी टिकट को पेश किया है तो वह पुरस्कार राशि पाने की हकदार है (अगर पुरस्कार टिकट की वास्तविकता पर संदेह करने के लिए कोई सबूत नहीं है)।''

    पीठ ने राज्य लॉटरी के निदेशक को निर्देश दिया है कि वह दो महीने के भीतर वैधानिक कटौती के बाद राशि का भुगतान करे।

    केस का शीर्षक-शिथा पी. बनाम केरल राज्य

    आदेश पढ़ने के लिए यहां क्लिक करें



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