मुकदमेबाजी को डिफ़ॉल्ट रूप से समाप्त नहीं किया जाना चाहिए, जहां तक संभव हो योग्यता पर निर्णय की किया जाना चाहिए : आंध्र प्रदेश हाईकोर्ट

Shahadat

24 April 2023 11:32 AM IST

  • मुकदमेबाजी को डिफ़ॉल्ट रूप से समाप्त नहीं किया जाना चाहिए, जहां तक संभव हो योग्यता पर निर्णय की किया जाना चाहिए : आंध्र प्रदेश हाईकोर्ट

    आंध्र प्रदेश हाईकोर्ट ने 2012 में दायर मुकदमे के लिए 339 दिनों की देरी की माफी की अनुमति दी, जिससे प्रतिवादी को बैलगाड़ी लेकर किसी भी तरह से मार्ग के उपयोग में बाधा डालने से रोका जा सके।

    जस्टिस रवि चीमलपति की पीठ ने कहा,

    "आम तौर पर मुकदमेबाजी को वादी या प्रतिवादी के डिफ़ॉल्ट रूप से समाप्त नहीं किया जाना चाहिए। न्याय के उद्देश्य के लिए यह आवश्यक है कि जहां तक संभव हो न्यायनिर्णय गुण-दोष के आधार पर किया जाए। हालांकि मुकदमा वर्ष 2012 का है, फिर भी वही लंबित है और यदि उक्त आवेदन पर विचार नहीं किया जाता है तो याचिकाकर्ता के अधिकार प्रभावित होंगे।"

    कोर्ट प्रिंसिपल जूनियर सिविल जज के आदेश के खिलाफ पुनर्विचार आवेदन पर सुनवाई कर रहा था, जिसमें 2017 में गैर-अभियोजन के लिए खारिज किए गए मुकदमे में 2022 में देरी की माफी के लिए आवेदन को खारिज कर दिया।

    2012 में स्थायी निषेधाज्ञा के लिए मुकदमा दायर किया गया, जिसमें प्रतिवादियों को बैलगाड़ी ले जाने के लिए मार्ग 'रस्ता' के उपयोग में बाधा डालने से रोका गया, जो अनादि काल से विद्यमान है।

    याचिकाकर्ता ने तर्क दिया कि उस विशेष दिन वह खराब स्वास्थ्य के कारण अदालत में पेश नहीं हो सके और उनके वकील को भी दूसरी अदालत में रखा गया, इसलिए कोई प्रतिनिधित्व नहीं है।

    यह प्रस्तुत किया गया कि याचिकाकर्ता खराब स्वास्थ्य के कारण समय पर बहाली आवेदन दाखिल करने के लिए अपने वकील को निर्देश नहीं दे सका। याचिकाकर्ता ने बताया कि खराब स्वास्थ्य से उबरने के बाद बहाली याचिका दायर करने में 339 दिनों की देरी को माफ करने के लिए आवेदन दायर किया गया।

    हालांकि, निचली अदालत ने माफी की याचिका खारिज कर दी।

    याचिकाकर्ता के वकील ने तर्क दिया कि निचली अदालत ने इस अवलोकन के साथ आवेदन खारिज कर दिया कि याचिकाकर्ता ने बिना किसी उचित कारण को निर्दिष्ट किए देरी के आवेदन को माफ कर दिया।

    वकील ने आगे तर्क दिया कि 24.07.2017 को गैर-प्रतिनिधित्व जानबूझकर नहीं किया गया। अदालत को याचिकाकर्ता को अपना मुकदमा चलाने का एक और मौका देना चाहिए। हालांकि, याचिकाकर्ता द्वारा दिए गए कारणों पर विचार किए बिना देरी के आवेदन को खारिज कर दिया गया और अदालत यह देखने में विफल रही कि प्रतिवादियों के लिए कोई पूर्वाग्रह नहीं होगा।

    प्रतिवादियों के वकील का मुख्य तर्क यह है कि चूंकि याचिकाकर्ता माफी का अनुरोध करते समय अपने हलफनामे में हर दिन की देरी की व्याख्या करने में विफल रहा, इसलिए निचली अदालत ने सही कारण बताते हुए आवेदन को खारिज कर दिया। याचिकाकर्ता के वकील द्वारा वर्तमान पुनर्विचार आवेदन में अदालत के समक्ष कोई वैध कारण नहीं उठाया गया।

    अदालत ने दोनों पक्षों को सुनने के बाद कहा कि हालांकि याचिकाकर्ता ने उनके आवेदन में देरी के कारणों को नहीं बताया, फिर भी अदालत को कुछ लागतें लगाकर इस पर विचार करना चाहिए।

    इसके अलावा, अदालत ने कहा कि मुकदमेबाजी को वादी या प्रतिवादी दोनों में से किसी के भी डिफ़ॉल्ट रूप से समाप्त नहीं किया जाना चाहिए।

    उपरोक्त के आलोक में आदेश प्राप्त होने की तिथि से दो सप्ताह के भीतर उत्तरदाताओं को 1500 रुपये की लागत के भुगतान की शर्त पर क्षमा की अनुमति दी गई।

    केस टाइटल: पिंजारी खासिम बनाम चंदा साहब व अन्य।

    याचिकाकर्ता के वकील: वाई कोटेश्वर राव और प्रतिवादी के वकील: बी सर्वोत्तम रेड्डी

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