मध्ययुगीन ज़मींदार के रूप में काम किया: जेकेएल हाईकोर्ट ने 2013 में निजी संपत्ति हड़प कर पुलिस स्टेब्लिशमेंट करने पर फटकार लगाई

Shahadat

1 Dec 2022 11:25 AM IST

  • मध्ययुगीन ज़मींदार के रूप में काम किया: जेकेएल हाईकोर्ट ने 2013 में निजी संपत्ति हड़प कर पुलिस स्टेब्लिशमेंट करने पर फटकार लगाई

    जम्मू एंड कश्मीर एंड लद्दाख हाईकोर्ट ने हाल ही में जेके पुलिस को 2013 में अपने उपयोग के लिए एक निजी संपत्ति को "हड़पने" के तरीके पर दुख व्यक्त किया और उस समय से जब से उक्त संपत्ति पुलिस के कब्जे में रही तब साल 2018 तक इसका किराया निर्धारित किया।

    जस्टिस राहुल भारती की सिंगल बेंच ने की टिप्पणी,

    "जम्मू-कश्मीर पुलिस के पास अपने आचरण की व्याख्या करने के लिए बहुत कुछ है, बल्कि वास्तविक रूप में कदाचार है और अभी भी इसे इसमें संशोधन करने के लिए तैयार नहीं किया गया... संबंधित पुलिस अधिकारियों के चूक और कृत्यों पर निजी संपत्ति पर अधिकार करने के लिए मध्ययुगीन ज़मींदार की तरह कार्य किया जा रहा है।"

    हाईकोर्ट ने कहा कि "सरकारी अधिकारियों से बचने वाला कानून" कोयला डंपिंग के उद्देश्य से प्लॉट का उपयोग कर रहा है। भले ही संबंधित संपत्ति विरासत में पाने वाले याचिकाकर्ता इससे अनजान थे, लेकिन तत्कालीन पुलिस अधिकारी की नाराज़गी नहीं लेना चाहते थे।

    पीठ ने आगे उल्लेख किया कि प्रतिवादी जम्मू-कश्मीर पुलिस ने याचिकाकर्ताओं से उनके भूखंड के उपयोग और कब्जे के लिए मासिक किराये की पेशकश के साथ संपर्क किया,

    पीठ के लिए यह रिकॉर्ड करना विडंबनापूर्ण है कि प्रतिवादियों द्वारा किए गए प्रस्ताव के परिणामस्वरूप, सहायक आयुक्त (रेव.) सांबा के राजस्व कार्यालय ने वर्ष 2013-14 और 2014-15 के लिए याचिकाकर्ताओं की संपत्ति का किराया मूल्यांकन भी किया, लेकिन इसे जम्मू-कश्मीर पुलिस मुख्यालय के उच्च अधिकारियों द्वारा खारिज कर दिया गया।

    खंडपीठ ने दर्ज किया,

    "यह जम्मू-कश्मीर पुलिस के अंत में किया गया आधिकारिक उत्तरदायित्व का अंतिम तथाकथित कार्य है और उसके बाद यह तय करने की कवायद को छोड़ दिया गया कि याचिकाकर्ताओं को कितना किराया देय होगा, जिनके प्लॉट की संपत्ति मुफ्त में बिना सोचे-समझे इस्तेमाल की जा रही है। इस तथ्य के बारे में कि प्लॉट की संपत्ति का उपयोग और कब्जा ही नहीं है, बल्कि अतिचार और उसके स्थायीकरण का कार्य है।"

    पीठ ने प्रतिवादी जम्मू-कश्मीर पुलिस के कृत्य पर नाराजगी व्यक्त करते हुए कहा,

    "यह न्यायालय इस पहेली और तथ्य की पीड़ा को सहन करने के लिए छोड़ दिया गया कि किस समय के पुलिस अधिकारी ने याचिकाकर्ताओं की संपत्ति पर जबरदस्ती प्रवेश किया और किस घटना ने संबंधित किसी भी उच्च पुलिस अधिकारी को सूचित नहीं किया। वास्तव में निजी संपत्ति पर अधिकार करने के लिए जम्मू-कश्मीर पुलिस ने मध्ययुगीन ज़मींदार के रूप में काम किया है।"

    स्थिति की गंभीरता की ओर इशारा करते हुए पीठ ने आगे कहा कि प्रासंगिक समय में जब याचिकाकर्ताओं की संपत्ति जम्मू-कश्मीर पुलिस द्वारा हड़प ली गई, तत्कालीन जम्मू-कश्मीर राज्य में संपत्ति का अधिकार अभी भी मौलिक अधिकार है और इसे वापस नहीं लिया गया। संविधान के 44वें संशोधन अधिनियम, 1978 के आधार पर शेष भारत की तरह संवैधानिक अधिकार होना चाहिए।

    लोक प्रशासन/प्राधिकरणों को संवेदनशील बनाने का साहस करते हुए बेंच ने स्पष्ट किया कि नागरिक अपने व्यक्ति और संपत्ति को अपनी संप्रभुता के रूप में धारण करता है और इससे वह राज्य की संप्रभुता का गठन करने के लिए अपने संबंधित हिस्से को जमा करता है और जब किसी नागरिक की सम्प्रभुता आहत होती है तो राज्य की सम्प्रभुता भी प्रभावित होती है।

    पीठ ने जोर दिया,

    "लोक प्रशासन/प्राधिकारियों पुलिस प्रतिष्ठान सहित को खुद को गहरी बैठी हुई विश्वास प्रणाली से मुक्त करने की आवश्यकता है कि उनके पास प्राधिकरण के कानून के संदर्भ में भारत के नागरिक/अनागरिक के व्यक्ति और संपत्ति के संबंध में कार्रवाई की शक्ति है, जबकि संवैधानिक तथ्य और वास्तविकता यह है कि कार्रवाई का उनका कर्तव्य अर्थात नागरिक/गैर नागरिक की व्यक्तिगत और संपत्ति कानून के अधिकार में है।"

    तदनुसार खंडपीठ ने जिला किराया आकलन समिति सांबा द्वारा दिए गए कब्जे के दो साल की अवधि 2013-14 और 2014-15 के लिए किए गए किराए के आकलन को रखा, जो याचिकाकर्ता को प्रतिवादी 3 द्वारा भुगतान किया जाना है।

    केस टाइटल: काला राम व अन्य बनाम जम्मू-कश्मीर व अन्य राज्य।

    साइटेशन : लाइवलॉ (जेकेएल) 228/2022

    कोरम: जस्टिस राहुल भारती

    याचिकाकर्ता के वकील: एके बसोत्रा

    प्रतिवादी के वकील: रमन शर्मा एएजी

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