लॉ स्टूडेंट की आत्महत्या का मामला: पति और परिवार जमानत के लिए केरल हाईकोर्ट पहुंचे
LiveLaw News Network
11 Dec 2021 1:12 PM IST
दो हफ्ते पहले एलएलबी सेकेंड ईयर की स्टूडेंट मोफिया परवीन ने अपने पति और उसके परिवार से घरेलू दुर्व्यवहार और दहेज उत्पीड़न के चलते आत्महत्या कर ली। लॉ स्टूडेंट की आत्महत्या के इस मामले ने इंटरनेट पर तूफान ला दिया था। इसके बाद उसके पति और ससुराल वालों को केरल पुलिस ने गिरफ्तार कर लिया था।
मोफिया के पति और उसके परिवार ने अब इस मामले में नियमित जमानत के लिए केरल हाईकोर्ट का दरवाजा खटखटाया है। उन्हें 25 नवंबर को गिरफ्तार किया गया था और तब से वे न्यायिक हिरासत में हैं।
न्यायमूर्ति कौसर एडप्पागथ ने शुक्रवार को मामले को एक सप्ताह के बाद उठाए जाने के लिए सूचीबद्ध किया। इस समय तक लोक अभियोजक को निर्देश प्राप्त करने का निर्देश दिया गया है।
लॉ स्टूडेंट मोफिया परवीन और उसके पति याचिकाकर्ता की दोस्ती सोशल मीडिया प्लेटफॉर्म पर हुई थी। यहीं से दोनों का प्यार परवान चढ़ा और दोनों इस साल अप्रैल में शादी कर ली। शादी के बाद से वे दोनों साथ रह रहे थे।
मोफिया के अनुसार, उसका पति और उसके माता-पिता ने उसे दहेज में 40 लाख रुपये और सोने की मांग के साथ मानसिक और शारीरिक रूप से प्रताड़ित किया। उसने यह भी आरोप लगाया कि उन्होंने मांग की कि उसके माता-पिता ससुराल वालों के रहने के लिए वैवाहिक जोड़े के घर के बगल में एक और घर संपत्ति खरीद दे।
अभियोजन पक्ष ने यह भी कहा कि दूसरी याचिकाकर्ता सास ने परवीन के साथ एक नौकरानी की तरह व्यवहार किया। उससे घरेलू काम करवाए और सुहैल की शादी एक लेडी डॉक्टर से कराने की धमकी दी। यह भी आरोप है कि वह 21 वर्षीय मोफिया को छोड़ने के लिए अपने बेटे सुहैल पर दबाव बनाती रही।
जल्द ही परवीन को उसके पति द्वारा तलाक का नोटिस दिया गया। अभियोजन पक्ष ने आरोप लगाया कि इन सभी के कारणों चलते उसने एक सुसाइड नोट लिखकर अपनी जान ले ली। वास्तविक शिकायतकर्ता मृतक के असहाय पिता ने ही मोफिया की आत्महत्या के संबंध में पुलिस के समक्ष एक बयान दर्ज कराया।
इनमें से अधिकांश तर्कों को याचिकाकर्ताओं द्वारा खारिज कर दिया गया है। उनके अनुसार, परवीन को शादी से पहले भी व्यवहार संबंधी समस्याएं थीं और इसकी गंभीरता का पता उन्हें शादी के बाद ही चला था।
उन्होंने यह भी आरोप लगाया कि वह याचिकाकर्ता को अपनी जरूरतों को पूरा करने के लिए हर बार आत्महत्या की धमकी देकर डराती थी। इस तरह का व्यवहार सुहैल के लिए एक मानसिक आघात था जिसने उसे मानसिक रूप से मृतक से अलग कर दिया।
याचिकाकर्ता के वकील अभिलाष के.एन. आरोप लगाया कि प्रारंभिक एफआईआर सीआरपीसी की धारा 174 के तहत दर्ज की गई थी, लेकिन बाद में भारतीय दंड संहिता (आईपीसी) की धारा 498ए, 304 बी और 306 आर/डब्ल्यू 34 को शामिल करने के लिए इसे बदल दिया गया।
याचिकाकर्ताओं का तर्क है कि यह परिवर्तन वास्तविक शिकायतकर्ता के बयान का परिणाम है। आगे यह तर्क दिया गया कि हरिकृष्णन और अन्य बनाम केरल राज्य और अन्य [2019 (3) केएचसी 437] के निर्णय के अनुसार उक्त अपराध उनके खिलाफ आकर्षित नहीं होंगे।
उक्त मामले में यह निर्णय लिया गया कि अभियुक्त द्वारा कथित उकसाने के कृत्य और पीड़िता के कृत्य के बीच समय का निकट होना नितांत आवश्यक है।
इस आधार पर यह उल्लेख किया गया कि याचिकाकर्ताओं की ओर से घटना का कोई अनुमानित कारण नहीं था। उन्होंने घटना से पहले कोई मांग की थी और वे इस घटना के चार महीने पहले से अलग रह रहे थे।
आवेदन में आगे कहा गया कि याचिकाकर्ता ने कई दौर की मध्यस्थता के बाद 27 अक्टूबर को मृतक को तलाक दे दिया था। उसने यह भी बताया कि परवीन ने एक पुलिस अधिकारी के सामने बिना किसी स्पष्ट कारण के याचिकाकर्ता को कथित तौर पर थप्पड़ मारा था।
उल्लेखनीय है कि सत्र न्यायालय ने इस सप्ताह की शुरुआत में याचिकाकर्ताओं को जमानत देने से इनकार कर दिया था।
केस शीर्षक: मोहम्मद सुहैल और अन्य बनाम केरल राज्य और अन्य