संविधान के अनुच्छेद 23 के तहत कल्याणकारी क़दमों के बिना श्रम 'बंधुआ मज़दूरी' है; श्रम क़ानूनों को कमज़ोर करने के ख़िलाफ़ सुप्रीम कोर्ट में याचिका

LiveLaw News Network

23 May 2020 8:00 AM IST

  • संविधान के अनुच्छेद 23 के तहत कल्याणकारी क़दमों के बिना श्रम बंधुआ मज़दूरी है; श्रम क़ानूनों को कमज़ोर करने के ख़िलाफ़ सुप्रीम कोर्ट में याचिका

    सुप्रीम कोर्ट में एक याचिका दायर कर श्रम क़ानूनों के कतिपय प्रावधानों को समाप्त किए जाने के कई राज्यों के क़दमों को चुनौती दी गई है, जिन क़ानूनों को समाप्त किया गया है वे श्रमिकों के काम करने के घंटे, वेतन, स्वास्थ्य, और सुरक्षा स्थितियों के बारे में हैं।

    यह जनहित याचिका क़ानून के छात्र नंदिनी प्रवीण ने एडवोकेट निशे राजेन शोनकर के माध्यम से दायर किया है। इसमें राजस्थान, गुजरात, पंजाब, हिमाचल प्रदेश, उत्तराखंड, हरियाणा, मध्य प्रदेश, उत्तर प्रदेश, गोवा और असम राजयों ने श्रम क़ानूनों में जो बदलाव किया है, उसकी आलोचना की गई है और कहा गया है कि ऐसा क़ानून के किसी अथॉरिटी के बिना किया गया है।

    यह कहा गया है कि केंद्रीय श्रम क़ानूनों को राज्यों द्वारा अध्यादेश जारी कर समाप्त नहीं किया जा सकता। इस तरह, याचिकाकर्ता ने इन अध्यादेशों को रद्द किए जाने का अनुरोध किया है क्योंकि संविधान के कई सिद्धांतों और औद्योगिक विवाद क़ानून, 1947, कारख़ाना अधिनियम, 1948, मज़दूरी संहिता अधिनियम, 2019 जैसे क़ानूनों और श्रम से संबंधित अन्य मुद्दों का उल्लंघन करता है।

    कारख़ाना अधिनियम के तहत यह सार्वजनिक आपातकाल नहीं :

    याचिका में कहा गया है कि कारख़ाना अधिनियम के प्रावधानों को किसी आम आपातकाल में जब देश की भौगोलिक अखंडता पर कोई ख़तरा हो तभी कमज़ोर किया जा सकता है । चूंकि इस तरह की स्थिति नहीं है इसलिए इस तरह का हस्तक्षेप अनावश्यक है।

    श्रमिकों के शोषण का अवसर

    याचिका में कहा गया है कि अगर ये श्रम क़ानून निलंबित रहते हैं तो श्रमिकों का कान करने के घंटे, वेतन, स्वास्थ्य और सुरक्षा की स्थितियों को लेकर हर दिन शोषण होगा।

    यह बंधुआ मज़दूरी है

    याचिका कहती है कि ये संशोधित क़ानून जिसमें श्रमिकों को लाभ पहुंचाने वाले कल्याणकारी और स्वास्थ्य संबंधी बातों को निलंबित कर दिया गया है, और उनके काम करने के घंटे को बढ़ा दिया गया है, बंधुआ मज़दूरी की तरह है और इस तरह यह संविधान के अनुच्छेद 23 का उल्लंघन करता है। इस संदर्भ में पीपुल्स यूनीयन ओफ़ डेमोक्रेटिक राइट्स बनाम भारत संघ, AIR, 1982 SC 1473 मामले में आए फ़ैसले का हवाला भी दिया गया है।

    स्वास्थ्य के अधिकार पर हमला है

    यह भी कहा गया है कि सुनील बत्रा बनाम दिल्ली प्रशासन मामले में सुप्रीम कोर्ट ने कहा है कि स्वास्थ्य का अधिकार अनुच्छेद 21 के तहत जीवन के अधिकार का हिस्सा है और इसको कमज़ोर नहीं किया जा सकता।

    न्यूनतम वेतन का अधिकार

    याचिका का कहना है कि कुछ राज्यों में न्यूनतम वेतन के भुगतान के प्रावधान को ही समाप्त कर दिया है जो कि जीवन के अधिकार का अटूट हिस्सा है। इस संदर्भ में भी पीपुल्स यूनीयन ओफ़ डेमोक्रेटिक राइट्स बनाम भारत संघ, AIR, 1982 SC 1473 मामले में आए फ़ैसले का हवाला दिया गया है और कहा गया है कि यह अनुच्छेद 14, 15 और 21 का उल्लंघन है।

    अंतरराष्ट्रीय क़ानून का उल्लंघन

    याचिकाकर्ता ने कहा है राजयों के ये संशोधन आईएलओ फ़ोर्स्ड लेबर कन्वेंशन, 1930 और आर्थिक , सामाजिक और सांस्कृतिक अधिकारों पर अंतर्राष्ट्रीय क़ानूनों का उल्लंघन भी है।

    यह याचिका एडवोकेट अरुणा ए, तुलसी के राज, मैत्रेयी एस हेगड़े, लैला थस्निम, विनायक जी मेनन ने वक़ील कलीस्वरम राज के माध्यम से दायर की गई है। गत सप्ताह भी सुप्रीम कोर्ट में इन राज्यों के संशोधनों के ख़िलाफ़ याचिकाएं दायर की गईं।

    याचिका पढ़ें



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